सत्र एवं उच्च न्यायालय ने २७ वर्षों पूर्व हत्या के प्रकरण में उम्रकैद का दंड भुगत रहे आरोपी को सर्वोच्च न्यायालय ने ठहराया निर्दोष !

सर्वोच्च न्यायालय

नई देहली –  सर्वोच्च न्यायालय ने २७ वर्षों पूर्व के एक हत्या प्रकरण में पिता एवं पुत्र को निर्दोष घोषित किया । इससे पूर्व सत्र न्यायालय एवं उच्च न्यायालय ने उन्हें दोषी बताते हुए उम्रकैद का दंड सुनाया था । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन दोनों को वादी (फिर्यादी) पक्ष द्वारा उन पर आरोप स्पष्ट न कर पाने से एवं संशय (benefit of doubt) के लाभ के कारण निर्दोष मुक्त कर दिया ।

उत्तरप्रदेश के एक गांव में अल्ताफ हुसेन की भूमि पर मुहम्मद मुस्लिम एवं शमशाद से वाद-विवाद था । वर्ष १९९५ में एक दिन अल्ताफ हुसेन अपने बेटे एवं भतीजे के साथ साइकल से जा रहा था, तब मुहम्मद मुस्लिम एवं शमशाद ने हुसेन की कुल्हाडी से वार कर हत्या कर दी । इस प्रकरण में सत्र न्यायालय ने उन दाेनों को दोषी बताते हुए उम्र कैद सुनाई और उसे उच्च न्यायालय ने भी कायम रखी थी ।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मृत हुसेन के पुत्र और भतीजे ने हुसेन को बचाने का कोई भी प्रयत्न नहीं किया अथवा आक्रमण में घायल होने के पश्चात उसे अस्पताल भी नहीं ले गए । इससे संशय निर्माण होता है । पुलिस ने साइकल एवं आरोपियों की कथित ब्लैंकेट न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया । अन्य छोटी-छोटी बातों में भी संदिग्धता होने से उसका लाभ आरोपियों को देते हुए उन्हें निर्दोष बताया जा रहा है ।

संपादकीय भूमिका 

  • सत्र एवं उच्च न्यायालयों का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय गलत ठहराता है, इससे जनता का क्या निष्कर्ष होना चाहिए ? ऐसी घटनाओं के कारण जनता को न्याय के विषय में संभ्रम निर्माण हो रहा हो, तो आश्चर्य नहीं लगना चाहिए !
  • २७ वर्षों के उपरांत किसी प्रकरण में अंतिम निर्णय मिलता हो तो वह न्याय नहीं, अपितु उसे अन्याय ही कहेंगे !