रामनाथ (फोंडा), २१ जून – ईसामसीह के समय उसके शिष्य ने भारत में आकर यहां ईसाई धर्म का प्रचार किया, ऐसा झूठा प्रचार ईसाइयों द्वारा किया जा रहा है । प्रत्यक्ष में १६ वें शतक तक भारत में ईसाई धर्म अस्तित्व में नहीं था । ईसाई धर्म में सर्वाधिक अंधश्रद्धा है । विदेश में बडे विश्वविद्यालयों की स्थापना होने के उपरांत पहले १०० वर्ष वहां ईसाई धर्म की शिक्षा दी गई । उसके उपरांत विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र, गणित आदि विविध विषय सिखाए जा रहे हैं । इसके विपरीत भारत के विश्वविद्यालयों में धर्म की शिक्षा नहीं दी जाती । ईसाई धर्मप्रचारक राष्ट्रविरोधी प्रचार कर रहे हैं । जब तक भारत का भूभाग ईसाइयों के लिए नहीं दिया जाएगा, तब तक उनके द्वारा हिन्दुओं का धर्मांतरण होता रहेगा । इस प्रकार ईसाई मिशनरियों का प्रचार चल रहा है । ऐसा होते हुए भी ईसाई धर्मप्रचारकों पर कोई कार्यवाही नहीं होती । ईसाई धर्मप्रचारकों को प्रचार करने से पूर्व हिन्दू धर्म के संबंध में शिक्षा देकर शत्रुभेद सिखाया जाता है । सभी हिन्दुओं को ईसाइयों के प्रचार की प्रणाली समझ लेनी चाहिए । हिन्दुओं को इसका अध्ययन करना आवश्यक है । हिन्दू इसका अध्ययन करेंगे, तब ही वे ईसाई धर्मप्रचारकों का प्रतिवाद कर पाएंगे, ऐसा वक्तव्य तेलंगाना के भारतीय स्वाभिमान समिति के परामर्शदाता एस्थर धनराज ने वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के छठवें दिन के सत्र में किया ।