‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ षष्ठम दिवस
रामनाथ (फोंडा), २१ जून (वार्ता.) – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, संत भक्तराज महाराजजी तथा परात्पर गुरु पांडे महाराजजी के मार्गदर्शन में व्यवसाय करते हुए धर्मसेवा कर सकते हैं । परात्पर गुरु पांडे महाराजजी ने मुझे ‘उद्+योजक = उद्योजक’ ऐसी उद्योग की व्याख्या बताई । उन्होंने कहा, ‘जिससे ऐहिक तथा पारलौकिक प्रगति होती है, उसे धर्म कहते हैं । आज कलियुग में अर्थशक्ति का अधिक प्रभाव है । इसलिए अर्थशक्ति की ओर दुर्लक्ष करने से हमारी हानि हो सकती है । आपके आस्थापन के कर्मचारियों की ऐहिक तथा आध्यात्मिक प्रगति करवाकर लेना, यह आपका दायित्व है ।’ हमारा ‘पितांबरी’ पाउडर देवताओं की मूर्ति स्वच्छ करने के लिए उपयोग किया जाता है । उसके उपरांत हमने पूजा से संबंधित विविध उत्पादन निर्माण किए ।
‘जो ईश्वर की जानकारी समाज तक पहुंचाता है, वह ईश्वर को अधिक प्रिय होता है ।’ ‘शनि की साडेसाती दूर करने के लिए शनि की उपासना की जाती है’, यह ध्यान में रखकर हमने ‘शनि उपासना’ उदबत्ती निर्माण की । उसके आवरण पर (कवर पर) ‘शनि की उपासना कैसे करें ?’ इसकी जानकारी दी । हम भी अपने उत्पादनों के आवरण पर (कवर पर) कुलदेवता एवं श्री गुरुदेव दत्त नामजप का महत्त्व बतानेवाली जानकारी दे सकते हैं । जिससे हजारों व्यक्तियों तक साधना पहुंचेगी । अभी प्रत्येक व्यक्ति व्यस्त है । उसे लगता है, ‘साधना वयोवृद्ध होने पर करनी चाहिए । व्यापारियों को यह ध्यान देना चाहिए कि व्यवसाय करते हुए अनेक अडचनें आती हैं । साधना करने से ईश्वर की कृपा होती है तथा वह अडचने छूटने में सहायता हो सकती है । मेरे आस्थापन के सभी १५ विभागों में कर्मचारियों द्वारा प्रतिदिन वैश्विक प्रार्थना तथा मारुतिस्त्रोत्र बुलवाया जाता है । इसके साथ ही १ हजार ५०० कर्मचारियों को सत्संग प्राप्त हो इसका नियोजन किया है । हमारे आस्थापन के कर्मचारी सात्त्विक होंगे, तो वहां भ्रष्टाचार नहीं होगा । उनसे साधना करवाकर लेने से हमे अधिक लाभ होता है, तथा हिन्दू धर्म की सेवा होती है ।