धर्मनिरपेक्षता के चाहे कितने भी ढोल पीटे जाएं; परंतु भारत की आत्मा, जो सनातन धर्म वह कभी भी परिवर्तित नहीं होगी ! – अधिवक्ता (डॉ.) एस्.सी. उपाध्याय, सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता (डॉ.) एस्. सी. उपाध्याय

विद्याधिराज सभागार, १८ जून (संवाददाता) – संविधान की मूल प्रति के पृष्ठों पर कहीं पर भी मोहम्मद पैगंबर एवं यीशू के चित्र नहीं थे; अपितु केवल श्रीराम, श्रीकृष्ण एवं बुद्ध के चित्र थे । कुरुक्षेत्र पर गीतोपदेश देनेवाले श्रीकृष्ण का चित्र था । तत्कालीन संसद ने उस संविधान का सर्वसम्मति से स्वीकार किया था । इसका अर्थ यह है कि भारत के आत्मा सनातन धर्म को मान्यता ही मिली थी; इसलिए धर्मनिरपेक्षता के कितने भी ढोल पीटे जाए, किंतु तब भी सनातन धर्म, जो भारत की आत्मा है, वह परिवर्तित नहीं होगी, ऐसा प्रतिपादन सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता (डॉ.) एस्. सी. उपाध्याय ने किया ।

भारत ‘हिन्दू राष्ट्र’ है । सर्वोच्च न्यायालय का घोषवाक्य ‘यथो धर्म: ततो जय: ।’ है । सर्वोच्च न्यायालय कहता है, ‘जहां धर्म है, वहां सत्य है तथा जहां सत्य है, वही विजय है ’

हिन्दू जनजागृति समिति बहुत अच्छा कार्य कर रही है । इसी प्रकार से हिन्दुओं को संगठित करना होगा । भारत की गली-गलियों में जागृत हिन्दू हैं । उन्हें संगठित करना होगा । धर्मांध सैकडों की संख्या में हिन्दुओं पर आक्रमण करते हों, तो उनका सामना करने के लिए हिन्दुओं के भी सहस्रों स्वयंसेवक तैयार रखने पडेंगे ।