रामराज्य होने पर ही न्याय प्रस्थापित होगा ! – शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्‍वरानंद सरस्वती

रायपुर (छत्तीसगढ) – ‘रामराज्य’ कहने में जो बात है, वह ‘हिन्दू राष्ट्र’ कहते हुए नहीं आती । हमें हिन्दू राष्ट्र नहीं चाहिए । हमारी इच्छा तो रामराज्य की है । हिन्दू राष्ट्र रावण एवं कंस के भी थे; परंतु प्रजा को कष्ट हुआ । सबसे आदर्श राज्य रामराज्य था । हमें नया राज्य स्थापित करना है, तब हम रामराज्य के विषय में क्यों नहीं बोलते ? रामराज्य होगा, तब ही न्याय प्रस्थापित होगा, ऐसा विधान ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्‍वरानंद सरस्वती ने यहां पत्रकारों के साथ बोलते हुए किया ।

शंकराचार्य आगे बोले, देश की स्वतंत्रता के समय विद्वानों द्वारा लंबी चर्चा के उपरांत संविधान बनाया । तब धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की संकल्पना मान्य की गई थी । अब यदि जनता को लगता है कि धर्मनिरपेक्ष संकल्पना से अपनी आकांक्षा पूर्ण नहीं हो रही है, तो वे आपस में चर्चा कर उसका स्वरूप निश्चित करें । स्वरूप निश्चित होने पर हम उसके गुण-दोषों पर विचार कर सकते हैं ।

धर्मदंड के अर्थ की उपेक्षा न करें !

धर्मदंड

शंकराचार्य आगे बोले, पुराने संसद भवन में अध्यक्ष के आसन के पीछे ‘यतो धर्म: ततो जयः’ (जहां धर्म होता है, वहां जय होती है) ऐसा लिखा था; परंतु ७५ वर्षों से इस अर्थ की उपेक्षा की गई । उसका विचार नहीं किया गया । अब नई संसद में धर्मदंड रखा गया है; परंतु उसका उद्देश्य एवं अर्थ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के पत्र में अथवा प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में नहीं आया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रतीक का अर्थ पूर्ण कर सके, तो वह ऐतिहासिक होगा, अन्यथा वह केवल कर्मकांड ही होगा ।

हिन्दू समाज को तोडने का षड्यंत्र !

शंकराचार्य अविमुक्तेश्‍वरानंद सरस्वती बोले, राजनीति के कारण ‘आदिवासी ‘हिन्दू’ नहीं’, ऐसा कहा जाता है । हम शहरों में स्थायी हो गए, इसका यह अर्थ नहीं कि हम कभी वनवासी नहीं थे । हमारी जडें जंगल से जुडी हैं । आज भी हमें वृक्ष-पौधे, फल-फूल, प‌त्ते, लकडी की आवश्यकता है । आज हिन्दू समाज में फूट डालने का प्रयत्न किया जा रहा है; परंतु हम सभी को एकजुट रहना चाहिए ।

(सौजन्य: News Nation) 

जनता की इच्छा होगी, तो सरकार दारूबंदी करेगी !

दारूबंदी के विषय में शंकराचार्य बोले, जनता की इच्छा होगी, तो सरकार की सहायता से दारूबंदी हो सकती है । आज होनेवाले सभी अपराधों में दारू का बडा हाथ है । अपराध रोकने हों, तो दारूबंदी होनी चाहिए ।