न्यायालय ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस !
लखीमपुर (उत्तर प्रदेश) – अलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम १९३७’ को चुनौती देनेवाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है ।‘हिन्दू पर्सनल लॉ बोर्ड’ की ओर से प्रविष्ट इस याचिका में अनुच्छेद ४९४ संवैधानिक वैधता को ही चुनौती दी गई है । न्यायमूर्ति डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ के समक्ष यह सुनावाई चल रही है । भारत के महाधिवक्ता को इस नोटिस का उत्तर देने के लिए ६ सप्ताह का समय दिया गया है । इस याचिका में मुसलमानों को ४ विवाह की अनुमति निरस्त करने की मांग की गई है ।
१. याचिकाकर्ता के अनुसार, अनुच्छेद ४९४ केवल हिन्दुओं, बौद्धों, सिक्खों और ईसाइयों पर ही लागू होता है । इसके अनुसार एक से अधिक विवाह अमान्य होगा तथा ऐसा करनेवाले को ७ वर्ष का कारावास देने की व्यवस्था इस अनुच्छेद में है । परंतु ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम १९३७’ इससे मुसलमानों को छूट देती है । इस प्रकार, अनुच्छेद ४९४ भारत के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के विरुद्ध होने के कारण इसे निरस्त किया जाना चाहिए । इस अधिनियम के अनुसार मुसलमान पुरुष ४ विवाह कर सकता है ।
२. हिन्दू पर्सनल लॉ बोर्ड ने आगे कहा है कि इससे संपन्न मुसलमान अनेक विवाह करते हैं, तो गरीब मुसलमान लैंगिक अपराध करते हैं । मुसलमानों को प्राप्त इस विशेषाधिकार के कारण ही समाज में बलात्कार की घटनाएं बढी हैं ।
संपादकीय भूमिकाइसके लिए जनता को न्यायालय क्यों मांग करनी पडती है ? सबके लिए समान नागरी कानून लागू कर, इस प्रथा को बंद किया जाना चाहिए’, यह राष्ट्रनिष्ठ जनता को लगता है ! |