भारत में गैर मुसलमानों का अस्तित्व सुरक्षित रहे; इसके लिए हिन्दुओं को संप्रदाय तथा अन्य मर्यादाओं को भूलकर एकजुट होना ही पडेगा !

भारत में हिन्दू-मुसलमान दंगे का इतिहास बहुत पुराना है । किसी ने यह संपूर्ण इतिहास लिखना चाहा, तो उसका एक बडा ग्रंथ बन जाएगा । भारत में हिन्दू-मुसलमान में किसी न किसी कारण से बार-बार सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं । इस लेख में इन धार्मिक दंगों की समस्या तथा उसके उपाय के विषय में अपने पाठकों के लिए विस्तृत विश्लेषण दे रहे हैं ।

 

१. उत्तर प्रदेश में मुसलमानों ने हिन्दुओं को ‘आतंकी’ प्रमाणित करने के लिए भगवा पगडी पहनकर मजार तोडा

भारत के धर्मांध मुसलमानों के लिए हिन्दुओं के विरुद्ध दंगे भडकाने तथा उनकी हत्याएं करने के लिए नूपुर शर्मा द्वारा दिया गया केवल वक्तव्य ही पर्याप्त है, ऐसा नहीं है; अपितु उन्हें उसके लिए कोई भी सामान्य कारण पर्याप्त होता है । उन्हें यदि कोई भी कारण नहीं मिलता हो, तो धर्मांध मुसलमानों द्वारा उसके लिए योग्य कारण उत्पन्न किया जाता है । इसके संबंध में एक समाचार मेरे पढने में आया । उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के शेरकोट पुलिस थाने के कार्यक्षेत्र में घटित यह घटना है । इस क्षेत्र में स्थित जलाल शाह एवं भुरेशाह,इन २ मजारों में (इस्लामी पीर अथवा फकीर की समाधि) तोड-फोड कर उन पर बिछाई गई चादरें जला दी गईं । जब यह घटना हो रही थी, उस समय कुछ जागृत हिन्दुओं ने तत्काल ही इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस को दी । विशेष बात यह कि पुलिस ने भी बिना समय गंवाए इसका संज्ञान लिया तथा वे घटनास्थल पहुंचे । उन्होंने इन मजारों को तोडनेवाले दो भाईयों को तत्काल बंदी बनाया । उनमें से एक का नाम था आदिल, तो दूसरे का नाम था कमाल ! विशेष बात यह कि इन दोनों मुसलमान भाईयों ने अपने सिर पर भगवा रंग की पगडियां पहन रखी थीं । ‘दो भगवा पगडीधारी हिन्दुओं ने हमारी मजारें तोड दीं’, ऐसी किंवदंती (अफवाह) फैलाकर उन दोनों मुसलमान भाईयों की दंगा भडकाने की योजना थी; परंतु कुछ जागरूक हिन्दुओं एवं पुलिस की तत्परता के कारण यह षड्यंत्र असफल रहा । यदि यह षड्यंत्र सफल हो जाता, तो इस देश के समस्त हिन्दू विरोधी राजनीतिक दलों, समाचार पत्रों, समाचार वाहिनियों एवं पाखंडी धर्मनिरपेक्षवादियों को हिन्दुओं को ‘आतंकी’ प्रमाणित करने का एक बडा कारण मिल जाता तथा वे दिन-रात यही समाचार चलाकर पूरे विश्व में हिन्दुओं को कलंकित कर देते ।

२. मुंबई पर हुए २६/११ के आक्रमण के समय हिन्दुओं को आतंकी प्रमाणित करने के लिए किया गया असफल प्रयास

प्रतिकात्मक छायाचित्र

यह घटना पढने के उपरांत मुझे पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा भारत में रहनेवाले उनके हितैषियों की सहायता से मुंबई पर भीषण आक्रमण कर १७५ निर्दाेष लोगों के प्राण हरण किए थे, उसका स्मरण हुआ । ‘मुंबई पर यह आक्रमण ‘हिन्दू आतंकियों ने’ ही किया था; ऐसा दिखाने के लिए उन मुसलमान आतंकियों ने हिन्दू नाम धारण किए थे । उन्होंने अपने माथे पर तिलक लगाए थे तथा हाथों में भगवे गंडे बांधे थे । इसमें हिन्दुओं का सौभाग्य यह रहा कि तुकाराम ओंबळे नामक शूर पुलिसकर्मी ने प्राणों पर खेलकर अजमल कसाब नामक एकमात्र आतंकी को जीवित पकडा । उसी के कारण सिद्ध हुआ कि यह आक्रमण पाकिस्तान के मुसलमान आतंकियों ने किया था । अजमल कसाब यदि जीवित नहीं पकडा जाता, तो पाकिस्तान तथा भारत में रहनेवाले पाकिस्तान के हितैषियों द्वारा हिन्दुओं को आतंकी प्रमाणित करने का षड्यंत्र सफल हो जाता ।

३. देश में हिन्दू सर्वाधिक असुरक्षित होते हुए भी किया जानेवाला आक्रोश

भारत में होनेवाले सांप्रदायिक दंगों के कारण अभी तक हिन्दुओं की ही असीमित जन एवं धन की हानि हुई है । हिन्दू समाज अपनी ही मातृभूमि में धर्मांध एवं जिहादी प्रवृत्ति के मुसलमानों, वोटबैंक की राजनीति करने में व्यस्त राजनीतिक दलों एवं हिन्दूद्वेषी पाखंडी धर्मनिरपेक्षतावादियों के कारण असुरक्षित हो गया है; परंतु ये सभी सदैव भारत में मुसलमानों के ही असुरक्षित होने का राग आलापते रहते हैं । इस देश का हिन्दू समाज मूल रूप से शांत, संयमित एवं सहिष्णु है । वह दंगे भडकाकर अपने ही प्राणों की एवं आर्थिक हानि कभी नहीं करेगा । जब हिन्दू समाज जागृत होता है, उस समय वह उसकी मुसलमानों के क्रूर कृत्य की प्रतिक्रिया होती है । इस देश में जानबूझकर मूल कृत्य की अनदेखी कर उसकी प्रतिक्रिया देनेवालों को ही आलोचना का लक्ष्य बनाया जाता है ।

४. अन्याय सहन करने की वृत्ति के कारण हो रही हिन्दुओं के प्राणों एवं धन की असीम हानि !

हिन्दू-मुसलमानों के मध्य सांप्रदायिक दंग में सदैव हिन्दुओं के ही प्राण तथा धन की हानि होती है । इस हानि की भरपाई कभी नहीं की जा सकती । सदैव ऐसा ही क्यों होता है ?; क्योंकि हिन्दू समाज सतर्क नहीं रहता ।

अब उसे ऐसी अतार्किक बातों को त्यागना होगा । धार्मिक त्योहार हिन्दुओं के हों अथवा मुसलमानों के; शोभायात्राएं हिन्दुओं की हों अथवा मुसलमानों की; सम्मेलन हिन्दुओं के हों अथवा मुसलमानों के, इन सभी के समय हिन्दू समाज को अपने प्राण एवं धन की सुरक्षा के उपाय सोचकर रखने चाहिए । उसे सरकार, राजनेताओं तथा पुलिस पर पूर्णतया निर्भर न रहकर संगठित होकर अपनी प्रतिकार-शक्ति बढानी चाहिए । दंगे में हिन्दुओं के प्राण एवं धन की हानि हो जाने के उपरांत ही प्रशासन, राजनेता तथा पुलिस दौडे चले आते हैं, यह प्रत्येक दंगे के उपरांत का अनुभव एवं परंपरा रही है । उसके उपरांत इन सभी से दंगाईयों के विरुद्ध कुछ छिटपुट कार्यवाही का नाटक किया जाता है; परंतु तब तक हिन्दुओं के प्राण तथा धन की जो कुछ भी हानि होनी होती है, वह हो चुकी होती है । सरकार की ओर से इस हानि की भरपाई कभी नहीं की जाती । पुलिस की कार्यवाही की एक और विशेषता यह होती है कि उनके द्वारा अपनी निष्पक्षता दिखाने के लिए दंगाई मुसलमानों के साथ कुछ निर्दाेष तथा दंगे का प्रतिकार करनेवाले हिन्दुओं को भी पकडा जाता है । कुल मिलाकर देखा जाए, तो अब हिन्दुओं को निरंतर अन्याय सहन करते रहने की सहिष्णु वृत्ति छोडकर आक्रामक नीति अपनाए बिना नहीं चलेगा । स्वयं का तथा स्वयं के धर्म का अस्तित्व ही जब संकट में होता है, उस समय भी हिन्दू समाज अपनी सहनशील वृत्ति से चिपककर बैठा रहे, तो कोई भी उसे बचा नहीं पाएगा । हिन्दू समाज को ‘जो दूसरे पर निर्भर रहता है, उसका कार्य डूब जाता है तथा जो स्वयं परिश्रम उठाता है, वही सुरक्षित रह पाता है’, समर्थ रामदासस्वामीजी के इस वचन को अपनाकर उसे सदैव ध्यान में रखना चाहिए ।

५. हिन्दुओं को हिन्दुओं का हित साधनेवालों को मतदान करना आवश्यक !

हिन्दुओं को अपनी शक्ति दिखाने के लिए अपने संगठन को शक्तिशाली बनाना होगा । जिस प्रकार मुसलमान समाज संगठित है, उस प्रकार से हिन्दू समाज संगठित नहीं है । उसके कारण ही राजनीतिक दलों एवं प्रशासन से उनकी ओर ध्यान नहीं दिया जाता । मुसलमान समाज जिस प्रकार उनका हित देखनेवालों को मतदान करते हैं, उसी प्रकार हिन्दुओं को हिन्दुओं के हितैषी राजनीतिक दलों एवं नेताओं को मतदान करना चाहिए । हिन्दू समाज को ‘जो हिन्दूहित की बात करेगा, वो ही देश पर राज करेगा’, यह सूत्र अपनाना चाहिए ।

६. हिन्दुओं को संगठित रूप से दंगापीडित अथवा अन्यायग्रस्त हिन्दुओं के साथ खडा रहना अनिवार्य !

श्री. शंकर गो. पांडे

‘किसी दंगे में दंगाईयों द्वारा किसी हिन्दू की हत्या होती है, उस समय हमारे ही घर का एक सदस्य मारा गया अथवा किसी हिन्दू का घर अथवा दुकान जलाई जाती है; उस समय हमारा ही घर एवं दुकान जलाई गई’, प्रत्येक हिन्दू की ऐसी भावना होनी चाहिए तथा उसे प्रचंड संख्या में सडक पर उतरकर ऐसी घटनाओं का विरोध करना चाहिए । दंगापीडित अपने भाईयों की सर्वाेपरि सहायता कर ‘तुम अकेले नहीं हो, अपितु संपूर्ण हिन्दू समाज आपके साथ खडा है’, उसे इसका भान करवाना चाहिए । जब हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की ओर से मुसलमानों के आतंकी कृत्य का विरोध करने के लिए सडक पर उतरने का आवाहन किया जाता है, उस समय बहुत ही थोडी संख्या में हिन्दू सडक पर उतरते हैं; यह केवल मेरा ही नहीं, अपितु अनेक लोगों का अनुभव है । इसके कारण ‘हिन्दू समाज जागरूक एवं संगठित नहीं है’, समाज के सामने ऐसा ही चित्र आता है ।

पीडित हिन्दुओं के साथ खडे रहने के स्थान पर ‘मुझे उससे क्या लेना-देना ?’, इस भावना से अलिप्त रहनेवाले हिन्दुओं को यह सच्चाई समझनी चाहिए कि दंगे में आज किसी अन्य हिन्दू को हानि पहुंची हो तथा हम सुरक्षित हों; परंतु आज न कल हम भी निश्चित रूप से ऐसी किसी घटना के शिकार होनेवाले हैं ! भविष्य में यह स्थिति मुझ पर न आए, ऐसा हिन्दुओं को लगता हो, तो हिन्दू समाज को तत्काल संगठित होकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होगा ।

७. हिन्दू समाज… ऐसे राजनीतिक दलों तथा नेताओं को मतदान क्यों करता है ?

किसी शायर ने कहा है, ‘जब सिद्धांतों (उसूलों) पर आंच आए, तो टकराना आवश्यक है । जब-जब जीवित हों, तो जीवित दिखाना आवश्यक है ।’ मेरे मन में अनेक बार यह प्रश्न उठता है कि ‘हिन्दू समाज मृतक नहीं, अपितु एक जीवित समाज है; हिन्दू समाज कब दिखा पाएगा ?’ राजनीतिक दल एवं नेता हिन्दुओं पर चाहे कितना भी अन्याय क्यों न हो; वे शांत ही रहते हैं । वे हिन्दुओं का न्यायिक पक्ष भी कभी नहीं उठाते । दूसरी ओर मुसलमानों एवं ईसाईयों का पक्ष चाहे कितना भी अन्यायकारी क्यों न हो; परंतु उनका पक्ष लेने के लिए उनमें होड लगी रहती है । तो हिन्दू समाज ऐसे राजनीतिक दलों तथा नेताओं को मतदान क्यों करता है ?, यह प्रश्न मुझे निरंतर सताता रहता है । स्वयं को सदैव लात मारनेवालों, तथा हमारे आस्थाकेंद्रों का अनादर करनेवालों तथा अन्य पंथों के आस्थाकेंद्रों के सामने नतमस्तक होनेवाले लोगों को यदि हिन्दू समाज चुनता हो, तो प्रत्यक्ष परमेश्वर भी उसकी दुर्गति को नहीं रोक पाएंगे ।

८. ‘काफिरों की हत्या करना तथा उनकी संपत्ति लूटना’, धर्मांधों की दृष्टि से यह धर्मसम्मत होता है, हिन्दुओं को इसकी जानकारी होना आवश्यक !

धर्मांध मुसलमान जब किसी सामान्य कारण से गैरमुसलमानों की हत्याएं करते हैं, आत्मघाती आक्रमण एवं बमविस्फोट कर सहस्रों निर्दाेष लोगों के प्राण हरण करते हैं, दंगे में लूटपाट करते हैं; घर, दुकानें एवं वाहन जलाते हैं; उस समय वे सामनेवाला व्यक्ति हिन्दू है, बौद्ध, जैन, सिख, ब्राह्मण, राजपूत अथवा जाट, मारवाडी, मराठा, तेली अथवा चमार; किस जाति का है ?, इसका विचार नहीं करते । उनकी दृष्टि में सभी गैरमुसलमान केवल काफिर अर्थात उनके शत्रु ही होते हैं तथा काफिरों की हत्या करना धर्मांध मुसलमानों की दृष्टि से न्यायिक एवं धर्मसम्मत होता है; परंतु दुर्भाग्यवश भारत के विभिन्न धर्म, जाति एवं संप्रदाय के लोग इस वास्तविकता को समझने के लिए तैयार नहीं है । किसी मुसलमान कट्टरतावादी के द्वारा किसी हिन्दू की हत्या हुई, तो उस समय अन्य धर्म एवं संप्रदाय की जनता शांत रहती है । धर्मांधों ने किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता की हत्या की, तो अन्य राजनीतिक दलों का उससे कोई लेना-देना नहीं होता । कश्मीर में धर्मांधों ने वहां के हिन्दुओं का भगा दिया तथा उनकी लडकियों के साथ बलात्कार किए, तो भारत के अन्य घटक राज्यों की दृष्टि से वह केवल कश्मीर राज्य की समस्या होती है । इस देश के गैरमुसलमान समाज को अपना अस्तित्व बनाए रखना हो, तो उन्हें धर्म, संप्रदाय, जाति जैसे भेद; राजनीतिक एवं वैचारिक मतभेद; पानी, भाषा एवं सीमा के विवाद जैसे एक-दूसरे के मध्य के सभी भेद एवं विवादों को भूलकर एकजुट होना पडेगा, तभी जाकर भारत के गैरमुसलमानों का अस्तित्व शेष रहेगा; अन्यथा आनेवाले कुछ ही शतकों में इस देश में हिन्दू, जैन, बौद्ध एवं सिखों का अस्तित्व मिटकर यह देश इस्लामी देश बने
बिना नहीं रहेगा ।

– श्री. शंकर गो. पांडे, पुसद, जिला यवतमाळ, महाराष्ट्र. (९.१.२०२३)