संस्कृत को राजभाषा घोषित करें ! – भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस ) शरद बोबडे

धर्मनिरपेक्ष संस्कृत को राजभाषा घोषित करने का वक्तव्य भी !

भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे

नई देहली – अधिवक्ता होने पर सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहने तक संस्कृत भाषा में मेरी लगन एवं रुचि बढती गई । संस्कृत भाषा को अधिकृत भाषा का स्तर देने में कोई अडचन नहीं; क्योंकि ९५ प्रतिशत भाषाओं का किसी धर्म से नहीं, अपितु दर्शन, नीति विज्ञान, साहित्य, शिल्पकला, खगोलशास्त्र आदि से संबंध रहता है, सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस ) शरद बोबडे ने ऐसा कहा । एक अंग्रेजी समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में वे ऐसा बोल रहे थे ।

उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत को धर्म से जोड कर देखा जाता है; क्योंकि सभी धर्मग्रंथ तथा पूजा श्‍लोक संस्कृत में हैं । संस्कृत के लगभग ८० से ९० प्रतिशत साहित्य का धर्म अथवा ईश्‍वर से कोई संबंध नहीं है । इसलिए संस्कृत को राजभाषा घोषित करें । उसे राजभाषा बनाने में धर्म का संबंध नहीं है । एक धर्मनिरपेक्ष भाषा सर्वसाधारण जनता को प्रयोग में लाना चाहिए इस संदर्भ में मैं केवल सुझाव दे रहा हूं; क्योंकि संस्कृत को इंडो-युरोपियन भाषाओं की जननी कहा गया है ।

भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस ) ने आगे कहा कि

१. मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दी के साथ एक अन्य समान भाषा की भी आवश्यकता है, जो सभी को समझ में आए । हमारे यहां अनौपचारिक रूप से अंग्रेजी दूसरी आधिकारिक भाषा हो गई है; परंतु भारत में केवल २-३ प्रतिशत लोग उसे धारा प्रवाह (फ्लुएंटली) बोल सकते हैं ।

२. अधिवक्ताओं के विविध संगठन विविध राज्यों में अपनी भाषा में कामकाज करने की मांग करते आए हैं । विशेषत: भारत में दक्षिण के राज्यों ने अभी भी हिन्दी को स्वीकार नहीं किया है ।

संस्कृत को राजभाषा बनाने के अंबेडकर के प्रस्ताव पर कभी उत्तर नहीं मिला ! – भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस )

संस्कृत को मृत भाषा कहनेवाली कांग्रेस को इसीलिए जनता ने घर पर बैठा दिया है । अब मोदी सरकार इस दिशा में कदम उठाए, हिन्दुओं की ऐसी अपेक्षा है !

इस अवसर पर भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस ) ने कहा कि बाबासाहेब अंबेडकर ने संस्कृत को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था । संविधान सभा के अनेक सदस्यों ने उसका अनुमोदन किया था तथा धारा ३५१ में उनका परामर्श अंतर्भूत भी किया गया । इस पर अंबेडकर के सामने प्रसार माध्यमों ने प्रश्‍न उठाया, तो उन्होंने कहा, ‘इसमें क्या चूक है ?’ आज तक उनके इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है ।

अंत में बोबडे ने कहा कि सरकार को धारा ३४४ के अंतर्गत अधिकारिक भाषा के प्रश्न पर संसदीय समिति अथवा एक आयोग का गठन करना चाहिए ।

संपादकीय भूमिका

  • संस्कृत ईश्‍वर निर्मित भाषा है तथा उसे ‘देवभाषा’ कहा जाता है । सनातन हिन्दू लाखों वर्षों से इस भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं । एक भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस ) की इस मांग पर केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए, संस्कृत प्रेमियों को ऐसा ही प्रतीत होता है !
  • संस्कृत सनातन हिन्दू संस्कृति का अविभाज्य घटक होने से ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ में उसे राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाएगा । इतना ही नहीं, अपितु उसको राज आश्रय भी प्राप्त होगा !