महाशिवरात्रि (१८ फरवरी) के निमित्त भगवान शिव की उपसना का अध्यात्मशास्त्र
फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी पर एकभुक्त रहें । चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल व्रत का संकल्प करें । सायंकाल नदी पर अथवा तालाब पर जाकर शास्त्रोक्त स्नान करें । भस्म और रुद्राक्ष धारण करें । प्रदोषकाल में शिवजी के मंदिर जाएं । शिवजी का ध्यान करें । तदुपरांत षोडशोपचार पूजा करें । भवभवानी प्रीत्यर्थ (यहां भव अर्थात शिव) तर्पण करें । नाममंत्र जपते हुए शिवजी को एक सौ आठ कमल या बिल्वपत्र अर्पित करें । पुष्पांजलि अर्पित कर, अर्घ्य दें । पूजासमर्पण, स्तोत्रपाठ तथा मूलमंत्र का जाप हो जाए, तो शिवजी के मस्तक पर चढाए गए फूल लेकर अपने मस्तक पर रखें व शिवजी से क्षमायाचना करें ।
महाशिवरात्रि को हर एवं हरि एक होते हैं; इसलिए शंकर को तुलसी तथा विष्णु को बेल चढाते हैं । (संदर्भ – सनातन का ग्रंथ ‘भगवान शिव’)
शिवतत्त्व आकर्षित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां
यहां दी रंगोलियां भगवान शिव का तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करती हैं, जिससे वातावरण शिवतत्त्व से भारित होता है तथा सबको उसका लाभ होता है । (संदर्भ : सनातन का लघुग्रंथ ‘सात्त्विक रंगोलियां’)
मध्यबिदु से अष्टदिशाओं में, प्रत्येक दिशा में ४ बिंदु बनाएं ।
शक्ति के स्पंदन निर्माण करनेवाली रंगोली के केवल बाह्य गोलसदृश
आकार में परिवर्तन करने पर, उससे शांति के स्पंदन निर्माण होते हैं ।