संस्कृत को देश की अधिकृत भाषा बनाएं ! – भूतपूर्व सरन्यायाधीश शरद बोबडे

नागपूर – डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने संस्कृत भाषा को देश की अधिकृत भाषा बनाने का प्रयास किया था । ११ सितंबर १९४९ के समाचारपत्रों मे ऐसा प्रसारित हुआ था । संस्कृत भाषा के शब्द अपने देश के अनेक भाषाओं में हैं । ‘डॉ. अंबेडकर को जिस प्रकार प्रतीत होता था, उस प्रकार संस्कृत अधिकृत भाषा क्यों नहीं बनाई जा सकती ? यह भाषा उत्तर अथवा दक्षिण की नहीं है । भाषा धर्मनिरपेक्षता के लिए यह भाषा पूर्ण रूप से सक्षम है,’, भूतपूर्व सरन्यायाधीश शरब बोबडे ने ऐसा कहते हुए संस्कृत को देश की अधिकृत भाषा बनाने की मांग की । संस्कृत भारती द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विद्यार्थी संम्मेलन में वे बोल रहे थे । इस अवसर पर उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संस्कृत को अधिकृत भाषा के रूप में स्वीकारना एक रात्रि में संभव नहीं है । इसके लिए कुछ वर्ष लग सकते हैं ।

भूतपूर्व सरन्यायाधीश बोबडे द्‍वारा प्रस्तुत सूत्र

१. कानून के अनुसार न्यायालय की अधिकृत भाषा के रूप में हिन्दी तथा अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है । अनेक बार सरन्यायाधीश को प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करने के विषय में निवेदन दिए जाऐ हैं । अभी कुछ जिलों तथा उच्च न्यायालयों में प्रादेशिक भाषाओं का उपयोग किया जा रहा है ।

२. मैं चाहता हूं कि यह सूत्र प्रलंबित नहीं रहना चाहिए । शासन एवं प्रशासन के मध्य संवाद न  होने के कारण यह पूर्ण होने में अडचन है ।

३. संस्कृत को अधिकृत भाषा बनाने के पीछे किसी भी धर्म का लेन-देन नहीं है; क्योंकि ९५ प्रतिशत भाषाओं का संबंध धर्म से नहीं; अपितु दर्शन, कानून, साहित्य, शिल्पकला, खगोलशास्त्र आदि से रहता है ।

४. अमेरिका की अंतराल संशोधन संस्था के शास्त्रज्ञों ने भी इस भाषा को संगणक के लिए उपयुक्त माना है । उन्होंने‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संदर्भ में संस्कृत पर संशोधन किया है तथा कहा है कि अल्प शब्दों में संदेश भेजने हेतु इस भाषा का उपयोग हो सकता है ।

५. देश के ४३.६३ प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते हैं, जबकि केवल ६ प्रतिशत नागरिक अंग्रेजी बोलते हैं । सर्वेक्षण से यह सामने आया है । ग्रामीण भाग में तो ३ प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी बोलते हैं। ४१ प्रतिशत सधन लोग अंग्रेजी बोलते हैं एवं निर्धनों में अंग्रेजी बोलनेवाले केवल २ प्रतिशत ही है ।

६. संस्कृत ही ऐसी एकमात्र भाषा है जो प्रादेशिक भाषाओं के साथ रह सकती है । भाषाविशारदों से चर्चा करने के उपरांत ही मैं यह दावा कर रहा हूं; क्योंकि प्रादेशिक भाषा में बोलते समय अनेक संस्कृत शब्दों का प्रयोग किया जाता है । उर्दू भाषा के साथ अनेक भाषाओं में संस्कृत के शब्द हैं । मराठी, आसामी, हिन्दी, तेलुगु, बंगाली तथा कन्नड आदि भाषाओं ६० से ७० प्रतिशत संस्कृत शब्द हैं ।

संपादकीय भूमिका 

देश के एक भूतपूर्व सरन्यायाधीश इस प्रकार का वक्तव्य दें, यह बडी बात है । केंद्र सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, धर्माभिमानी हिन्दुओं को ऐसा प्रतीत होता है !