सहस्त्र वर्षों से संघर्ष कर रहे हिन्दुओं का आक्रामक होना स्वाभाविक है ! – सरसंघचालक

नई देहली – विगत १००० वर्षों से हिन्दू समाज विदेशी आक्रमणों, विदेशी प्रभावों और विदेशी षड्यंत्रों के विरुद्ध युद्ध लड़ रहा है। इसीलिए हिन्दू समाज अब जागा है । युद्ध लड़ने वाले का आक्रामक होना स्वाभाविक है । अब यह युद्ध हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज के विरुद्ध नहीं, भारत में बाहर से आए लोगों के विरोध में नहीं, अपितु अपने ही आंतरिक शत्रुऒं के विरुद्ध है । यद्यपि अब विदेशी आक्रमणकारी नहीं हैं, किन्तु उनका प्रभाव और षड्यंत्र अभी है । यह एक युद्ध है, भले ही यह थोड़ा अति-उत्साही हो, आक्रामक भाषा का उपयोग करना उचित नहीं है, सर सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने ‘द ऑर्गेनाइजर’ और ‘पांचजन्य’ पत्रिकाऒं को दिए एक साक्षात्कार में कहा ।

सरसंघचालक ने कहा कि हिन्दू ही एक मात्र ऎसा समाज है जो आक्रामक नही है । इसलिए अहिंसा, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को संरक्षण देने की आवश्यकता है । भारत अखंड था किन्तु इस्लामी आक्रमण और अंग्रेजों के कारण इस राष्ट्र का विभाजन हो गया । हमने बहुत सी त्रासदियों को सहा है । यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हमें हिन्दू भावनाओं का विस्मरण हो गया ।

मुसलमानों को यह अहंकारी धारणा छोड़ देनी चाहिए कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं !

सरसंघचालक ने आगे कहा कि भारत में रह रहे मुसलमानों को कोई खतरा नहीं है। यदि वे अपने रीति-परंपराऒं का पालन करना चाहते हैं, तो वे उनका अनुसरण कर सकते हैं । यदि वे अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित रीतियों को पुन: से अपनाना चाहें तो ऐसा भी कर सकते हैं । यह पूरी तरह उनका निर्णय है । हिन्दू समाज इतना कठोर नहीं है किन्तु साथ ही मुसलमानों को अपनी यह अहंकारी धारणा छोड़ देनी चाहिए कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं । उन्हें (मुसलमानों को) ‘हम एक उच्च वंश के हैं, हमने पहले भी इस देश पर शासन किया है और फिर से करेंगे , केवल हमारी पद्धति ही योग्य तथा अन्य निम्न  हैं, हम अलग हैं और इसलिए दूसरों के साथ नहीं रह सकते, यह दुराग्रह छोडना होगा ‘। यदि कोई हिन्दू है जो ऐसा सोचता है तो उसे भी उसे छोड़ना होगा । यदि वह कम्युनिस्ट हैं तो उन्हें भी यह विचार त्यागना होगा ।

हिन्दुओं के उत्थान में ही सबका उत्थान है !

जनसंख्या नीति पर प्रश्न का उत्तर देते हुए सरसंघचालक ने कहा कि सबसे पहले हिन्दुओं को यह समझना चाहिए कि वे बहुसंख्यक हैं और उनके ही उत्थान से इस देश के अन्य लोग सुखी होंगे । जनसंख्या बोझ भी है और उपयोगी भी । इस विषय पर में दूरगामी और गहन विचार के बाद एक नीति तैयार की जानी चाहिए । यह नीति सभी पर समान रूप से लागू होनी चाहिए । इसके अनुपालन में कोई विवशता नहीं होनी चाहिए। इसके लिए समाज को शिक्षित करना होगा । जनसंख्या असंतुलन अव्यावहारिक है, क्योंकि जहां भी असंतुलन हुआ, देश का पतन हो गया । विश्व में प्रत्येक जगह ऐसा हुआ है ।

समलैंगिकों को भी है जीवनयापन का अधिकार !

समलैंगिकता को लेकर सरसंघचालक ने कहा कि समलैंगिकों को भी जीने का अधिकार है । हमने बिना किसी होहल्ला किए मानवीय दृष्टिकोण से उन्हें समायोजित करने की पद्धति अपनाई है । हमारे पास एक तृतीयपंथियों का अंगीकृत समाज है । हम इसे एक समस्या के रूप में नहीं देखते हैं । उनके अपने अलग देवता हैं । अब उनके अपने महामंडलेश्वर है । कुंभ मेले में उनका अलग स्थान है । समलैंगिकता के लक्षण कई जानवरों में भी पाए गए हैं । यह पूरी तरह जैविक शास्त्र अनुरूप है ।