देहली महापौर (मेयर) पद के चुनाव के पूर्व अभूतपूर्व हो-हल्ला !

  • आम आदमी पार्टी एवं भाजपा के नगरसेवकों में मारपीट

  • नगरसेवकों पर ब्लेड द्वारा आक्रमण करने का आरोप

  • कुर्सियां फेंक कर मारपीट की गई

  • चुनाव की तिथि आगे करें

नई देहली – देहली महानगरनिगम के महापौर (मेयर), उपमहापौर एवं स्थायी समिति के ६ सदस्यों के चुनाव पूर्व निगम के सभागृह में आम आदमी पार्टी एवं भाजपा के नगर सेवकों ने हो-हल्ला मचाया । आम आदमी पार्टी के नगर सेवकों ने मनोनीत सदस्यों के शपथ ग्रहण का विरोध किया । इस समय उन्होंने पीठासीन अधिकारी को घेरकर धक्का-मुक्की की । इस समय इन दोनों के मध्य प्रथम तु तु-मैं मैं हुई तदुपरांत मारपीट भी हुई । इस समय एक दूसरे पर कुर्सियां फेंक कर मारपीट की गई । भाजपा ने आरोप लगाया है कि भाजपा के २ नगर सेवकों की हथेलियों पर ब्लेड से आक्रमण किया गया । भाजपा ने कहा है, ‘इस प्रकरण में पुलिस में परिवाद किया जाएगा’ । इस हो-हल्ला के कारण चुनाव स्थगित कर दिया गया है । कांग्रेस ने इससे पूर्व ही इस चुनाव में सहभागी न होने का निर्णय लिया है । महापौर (मेयर) पद के चुनाव में २७३ सदस्य मतदान करनेवाले हैं । बहुमत के लिए १३३ का आंकडा आवश्यक है । आम आदमी पार्टी के पास १५०, जबकि भाजपा के पास ११३ मत हैं ।

१. आम आदमी पार्टी के नगरसेवकों का कहना है कि मनोनीत नगर सेवकों को अवैध रूप से सभागृह में भेजने के कारण उनको शपथ न दिलाई जाए ।

२. आम आदमी पार्टी ने अस्थायी सभापति के लिए मुकेश गोयल का नाम प्रस्तावित किया था; परंतु उप-राज्यपाल द्वारा इस पद के लिए भाजपा के नगर सेवक सत्य शर्मा की नियुक्ति की गई है । केजरीवाल ने इस नियुक्ति पर प्रश्‍न उठाया है । केजरीवाल ने कहा कि निगम का नामांकन देहली के नगर विकास मंत्रियों द्वारा भेजा जाता है; परंतु निगम के आयुक्तों ने सीधे उप-राज्यपाल के पास धारिका (फाईल) भेज दी । उप-राज्यपाल पुनर्विचार करें, इसके लिए मैंने उनको पत्र लिखा है ।

३. भाजपा के नेता श्री. मनोज तिवारी ने आरोप लगाया है कि सभागृह में बहुमत प्राप्त होने पर भी आम आदमी पार्टी को महापौर (मेयर) चुनाव में विजयी होने की निश्‍चिति नहीं है । इसलिए जानबूझकर यह हो-हल्ला किया गया ।

४. आम आदमी पार्टी के नेता श्री. संजय सिंह ने मनोज तिवारी को प्रत्युत्तर देते हुए प्रत्यारोप लगाया है कि भाजपा द्वारा संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन किया जा रहा है तथा चुनाव प्रक्रिया का उपहास उडाया जा रहा है ।

संपादकीय भूमिका

जनता के चयन किए हुए जन प्रतिनिधि जनता के व्यय से चलनेवाले निगम सभागृह में हो-हल्ला कर करोडों रुपए उडाते (फिजूलखर्ची) हैं, यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक ही है ! ऐसे जनप्रतिनिधियों की सदस्यता रद्द करने का अधिकार जनता को मिलना ही चाहिए !