कठिन स्थानों पर स्थानांतर न चाहनेवाले प्रामाणिक अधिकारी रिश्वत लेने का विचार करते हैं !

‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, उदयपुर’ ने ७ राज्यों में किया शोध !

‘आइ.आइ.एम उदयपुर’ के प्रा. डॉ. सौरभ गुप्ता

उदयपुर (राजस्थान) – पूरे विश्व को ज्ञात है कि सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार होता है, यदि यहां के अधिकारियों ने प्रामाणिकता से काम किया, तो उनका स्थानांतर कठिन स्थान पर होने की संभावना है ।

प्रामाणिकता से काम करने की इच्छा रखनेवाले अधिकारी रिश्वत लेने का विचार करते हैं । दैनिक ‘भास्कर’ के नेतृत्व में ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट’ (आइ.आइ.एम) उदयपुर’ द्वारा किए गए शो में ऐसी जानकारी सामने आई है । इससे ऐसा भी समझ में आया है कि अनेक प्रकरणों में समाज ही प्रामाणिक अधिकारियों की प्रशंसा नहीं करता । यह शोध पंजाब, हरियाना, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ तथा गुजरात राज्यों में किया गया ।

‘आइ.आइ.एम उदयपुर’ के प्रा. डॉ. सौरभ गुप्ता ने अनुमानत: ८६ लोगों का अध्ययन किया । उनमें केद्रीय लोक सेवा आयोग की (‘यू.पी.एस.सी.’ की) पूर्व परीक्षा उत्तीर्ण बिहार के ३६ विद्यार्थियों के अतिरिक्त शेष ६ राज्यों के ५० विद्यार्थी एवं अधिकारी सम्मिलित हैं । प्रायोगिक खेल, गुटचर्चा इत्यादि माध्यमों से उनकी प्रामाणिकता तथा भ्रष्टाचार के संदर्भ में विचारों पर शोध किया गया । इस समस्या पर समाधान भी पूछा गया । इस पर उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कानून हैं; परंतु व्यवस्था ही दोषपूर्ण है ।

भ्रष्टाचार के विषय में ध्यान में आई मानसिकता !

१. रिश्वत की राशि अधिक है तथा उससे जनता की बहुत क्षति होती है, तो अधिकारी रिश्वत लेने में भय खाते हैं; इसलिए कि ऐसी घटना शीघ्र उजागर होती है, इसलिए नौकरी पर भी बहुत बडा संकट आने की संभावना रहती है, तथा संबंधित अधिकारी की अपकीर्ति भी हो सकती है ।

२. प्रकरण यदि जनता से संबंधित न हो, तथा दंड अल्प हो, तो अधिकारी सहजता से रिश्वत ले सकते हैं । ऐसे अनेक प्रकरण सामने आते हैं; परंतु उनमें दंड होने की घटनाएं नगण्य हैं । इसी लिए भ्रष्टाचार का भय नहीं प्रतीत होता ।

३. सरकार कुछ प्रामाणिक अधिकारियों को प्रोत्साहन भी देती है; परंतु सरकार के विषय में जब तक अधिकारियों की भूमिका नरमी एवं सहयोग की होती है, तभी तक सरकार ऐसे अधिकारियों की प्रशंसा करती है ।

संपादकीय भूमिका 

भारत में यदि प्रामाणिक सरकारी अधिकारियों की ऐसी मानसिकता है, तो क्या देश से कभी भ्रष्टाचार नष्ट होना संभव है ? इस स्थिति के कारण धर्माचरणी सरकार तथा जनता का ‘हिन्दू राष्ट्र’ अपरिहार्य है !