भारत का शत्रु : भ्रष्टाचार

पानी में रहनेवाली मछली पानी कब पीती है, यह हम नहीं समझ सकते, उसी प्रकार सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार कब करते हैं, इसे हम नहीं पहचान सकते’, ऐसा आर्य चाणक्य ने भ्रष्टाचार के विषय में लिख रखा है । लगभग २ सहस्र वर्ष पूर्व की स्थिति के आधार पर उन्होंने ऐसा लिखा है । उसे यदि आज की स्थिति से जोडकर देखा जाए, तो आज कौन ? कब ? तथा कैसे भ्रष्टाचार कर रहा है ?, यह सर्वविदित है । इसलिए इसे भ्रष्टाचारियों द्वारा की गई ‘प्रगति’ ही कहना पडेगा । यह बताने का उद्देश्य है कि जो सर्वविदित है, वही भारत के सर्वोच्च न्यायालय को भी कहना पडा है । सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘भ्रष्टाचारी लोग भारत को लूट रहे हैं । प्रत्येक सरकारी कार्यालय में क्या चल रहा होता है ?, यह आप देखते ही हैं । ऐसे लोगों पर प्रशासन की ओर से किसी प्रकार की कठोर कार्यवाही नहीं की जाती । इस कारण वे अपने भ्रष्टाचार के कृत्य जारी ही रखते हैं । यही भ्रष्टाचार का मूल है ।’’ न्यायालय का यह वक्तव्य कितने समाचारपत्रों ने प्रकाशित किया तथा कितने लोगों ने उसे पढा ? इसका महत्त्व अल्प है; क्योंकि उसमें नया कुछ नहीं है । यह तो सभी को ज्ञात है । प्रश्न यह है कि इस परिस्थिति को कौन और कैसे बदलेगा ? मगध के राजा धनानंद की भ्रष्टाचारी वृत्ति के कारण ही आर्य चाणक्य ने उसे अपदस्थ किया । विश्व में आज अनेक सरकारें भ्रष्टाचार के कारण सत्ता से अपदस्थ हुई हैं और आगे भी होती रहेंगी; किंतु भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा । इसका कारण है ‘मानव का स्वभाव’ । मानव का स्वभाव यदि त्यागी, निरपेक्ष एवं विरक्त होगा तथा ऐसे स्वभाववाले व्यक्ति सत्ता में होंगे, तभी जाकर भ्रष्टाचार रहित राजव्यवस्था चलेगी; परंतु ऐसे स्वभाववाले व्यक्ति का होना दुर्लभ है । इससे पूर्व जो ऐसे लोग हुए, ऐसे दुर्लभ व्यक्तियों के नाम भी सहजता से किसी के स्मरण में नहीं रहेंगे । विगत कुछ शताब्दियों में इस वृत्ति का शासनकर्ता हुआ है, ऐसा हम बता नहीं सकेंगे । ‘पैसों के लिए सत्ता तथा सत्ता के लिए पैसा’, यही समीकरण आज विश्व में चल रहा है । उसके करण अनेक देशों का अधःपतन हुआ है अथवा हो रहा है । इसमें अतिशयोक्ति नहीं है । संपूर्ण विश्व में इस पर उपाय कर उसे रोकने का प्रयास होता है; परंतु भ्रष्टाचारी लोग उनसे भी आगे हैं । इसलिए वे उस स्थिति में भी भ्रष्टाचार करते ही हैं, ऐसा दिखाई देता है । सर्वोच्च न्यायालय ने इसी भ्रष्टाचार के कारण भारत की लूट होने की बात कही; परंतु उसके लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं ? अथवा किसी को क्या करना चाहिए ?; ऐसा कुछ आदेश नहीं दिया है, इसे ध्यान में लेना होगा । इस विषय में न्यायालय की भी मर्यादाएं हैं । ‘न्यायालय में भी भ्रष्टाचार चलता है’, ऐसे आरोप लगते रहते हैं । अतः नियम, कानून, ध्यान रखना आदि कितने भी उपाय किए गए, तब भी मूल प्रकृति एवं वृत्ति में परिवर्तन आने से ही भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है ।

(प्रतिकात्मक छायाचित्र)

संस्कारों की आवश्यकता !

कहावत है, ‘यथा राजा तथा प्रजा’ । इस कहावत के अनुसार यदि राजा स्वयं विरक्त, त्यागी एवं निरपेक्ष हो, तो प्रजा भी वैसे बन सकती है । इसके उत्तम एवं लगभग एकमात्र उदाहरण भगवान श्रीराम हैं ! उसके कारण आज भी रामराज्य की अपेक्षा की जाती है; परंतु उसके लिए राजा राम होने भी आवश्यक हैं । ऐसे राजा अर्थात शासनकर्ता को लाने के लिए उस दृष्टि से जनता को संस्कार दिए जाने आवश्यक हैं । वैसे संस्कार आजकल मिलते हुए दिखाई नहीं देते, यह वास्तविकता है । इस प्रकार के संस्कार देने का दायित्व अभिभावकों एवं शिक्षकों का है; परंतु आजकल कहीं भी वैसा होता हुआ दिखाई नहीं देता । सरकारी अथवा किसी भी बडे पद पर विराजमान अपना बेटा, पति, पिता यदि उन्हें मिलनेवाले वेतन से अधिक पैसे अर्जित कर रहे हों, तो उस विषय में मां, पत्नी अथवा बच्चे उनसे स्पष्टीकरण पूछते हुए कभी दिखाई नहीं देते । इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति ही इस भ्रष्टाचार को ‘मम’ बोलता हुआ दिखाई दे रहा है । ऐसी स्थिति में संस्कार तथा उनका पालन कैसे होगा ? तथा नैतिक आचरण कब होगा ? राजनीति में कार्यरत लोगों के पास नौकरी अथवा व्यवसाय न होते हुए भी उनके पास करोडों की संपत्ति होती है । यह किस कारण होता है ?, यह बात भारत के प्रत्येक नागरिक को ज्ञात है; परंतु ऐसे लोगों पर कार्यवाही कौन  करेगा ?, ये प्रश्न हैं ।

साधना करने पर सफलता !

किसी भी मंडल में, संगठन में, राजनीतिक दल में अथवा किसी सरकार में १० में से ७ लोग भ्रष्टाचारी हों, तब भी २ – ३ लोग प्रामाणिक होते हैं तथा वे प्रामाणिकता के साथ कार्य करने का प्रयास करते हैं । उक्त ७ में से कुछ लोग भ्रष्टाचार करने में कुशल होते हैं, तो कुछ लोग परिस्थिति के कारण वैसा आचरण करते हैं । इसका अर्थ यदि हमने सच्चे भ्रष्टाचारियों की संख्या देखी, तो वह अल्प है; परंतु उनके पास अधिकार एवं संगठन होने से वे सदैव ही सब पर हावी होते हैं । इसे ही तोड डालने की आवश्यकता है । यदि प्रमुख व्यक्ति ही प्रामाणिक हो, तो वह प्रामाणिकता के साथ कार्य कर सकता है तथा करवा ले सकता है । आज जनता को ऐसा लगता है कि पहले की कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे । उनका भ्रष्टाचार उजागर हो रहा था; परंतु आज के मोदी सरकार के कार्यकाल में तो किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं । इसका अर्थ भ्रष्टाचार नहीं हो रहा होगा, ऐसा कहना भी साहसिक होगा, यह जनता को भी ज्ञात है । भारत को इससे बहुत आगे ले जाना पडेगा । प्रत्येक क्षेत्र को भ्रष्टाचार मुक्त करना पडेगा । आज सब्जीवाले, किराने की दुकान चलानेवाले आदि नाप में भ्रष्टाचार करते हुए दिखाई देते हैं । छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया था, ‘किसान की सब्जी के डंठल को भी हाथ न लगाएं ।’ इसका अर्थ उस समय में भी भ्रष्टाचार चल ही रहा था, इसे ध्यान में लेना पडेगा; परंतु महाराज ने उस पर लगाम लगाने का प्रयास किया; क्योंकि वे धर्माचरणी, न्यायप्रिय एवं विरक्त थे । ऐसे शासनकर्ता लाने के लिए जनता को संघर्ष करना पडेगा तथा उस प्रकार से संघर्ष करने की शक्ति साधना से ही मिलती है । साधना करनेवाले को भगवान की सहायता मिलती है और वह सफल होता है । भ्रष्टाचार को सचमुच ही नष्ट करना है, तो उसके लिए जनता को साधना ही करनी होगी !