‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार संपन्न विवाह ‘पॉक्सो’ कानून की परिधि से बाहर नहीं ! – केरल उच्च न्यायालय

नाबालिग के साथ संबंध रखना ही अपराध है !

थिरूवनंतपुरम (केरल) – मुसलमानों का ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अंतर्गत संपन्न विवाह ‘पॉक्सो’ कानून की परिधि के बाहर नहीं है, ऐसा महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए केरल उच्च न्यायालय ने खालिदूर रहमान (वय ३१ वर्ष) की जमानत याचिका अमान्य (खारिज) कर दी है । न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार विवाह भले ही वैध हो, परंतु यदि एक पार्टी नाबालिग हो, तो यह प्रकरण ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत अपराध माना जाएगा’ । ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत अल्पवयीन व्यक्तियों के प्रत्येक यौन शोषण को निश्चित अपराध माना गया है । इसलिए (यदि ऐसा अपराध कर ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार अधिकृत विवाह करें, तो भी) ऐसा विवाह ‘पॉक्सो’ कानून की परिधि से बाहर नहीं हो सकता ।

रहमान ने एक १६ वर्ष की लडकी का बंगाल से अपहरण कर उस पर बलात्कार किया । तदुपरांत अपने बचाव के लिए उसने ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार उससे विवाह कर लिया । ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के अनुसार युवान लडकी से विवाह करने की अनुमति है । इसलिए ऐसा दावा किया जा रहा था कि इस प्रकार विवाह करनेवाले पुरुष पर ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत बलात्कार का अपराध प्रविष्ट नहीं हो सकता । इस पर न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो कानून का उद्देश्य ही विवाह की आड में नाबालिगों का हो रहा यौन शोषण रोकना है । बाल विवाह मानवाधिकारों का उल्लंघन है तथा वह सामाजिक अभिशाप है । इसलिए बालकों के विकास के साथ खिलवाड होता है ।

पंजाब-हरियाणा एवं देहली उच्च न्यायालय के निर्णय पर हम सहमत नहीं हैं !

इस समय न्यायमूर्ति थॉमस ने स्पष्ट किया कि हम पंजाब-हरियाणा एवं देहली उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं । उन्होंने कहा, ‘‘इन न्यायालयों ने अपने आदेश में एक १५ वर्ष की मुसलमान लडकी को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार प्रदान किया था । इसके साथ एक पति के नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध रस्थापित करने के उपरांत भी उसे ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत छूट दी गई थी । इसके साथ ही कर्नाटक के एक प्रकरण में १७ वर्ष की लडकी से विवाह करनेवाले मुहम्मद वसीम अहमद पर प्रविष्ट हुआ फौजदारी परिवाद रद्द करने का कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस निर्णय से भी मैं सहमत नहीं हूं’’ ।