‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के संदर्भ में निर्णय लेते समय न्यायालय को मौलानाओं पर विश्वास नहीं रखना चाहिए !- केरल उच्च न्यायालय

मुसलमान महिलाओं को भी तलाक देने का अधिकार होने पर न्यायालय निश्चित !

(मौलाना अर्थात इस्लाम का विद्वान)

थिरूवनंतपुरम (केरल) – मौलानाओं को कानून की शिक्षा नहीं होती । इसलिए उन्हें इस्लामी कानून समझना कठिन है । न्यायालयों को ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के संदर्भ में कानून के प्रकरण में निर्णय लेते हुए इस्लामी विद्वान तथा मौलानाओं पर विश्वास नहीं रखना चाहिए, केरल उच्च न्यायालय ने एक सुनवाई के समय ऐसा कहा ।

१. मुसलमान महिलाओं के ‘खुला’ (मुसलमान महिलाओं द्वारा दिया जानेवाला तलाक) प्रथा के संदर्भ में एक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते समय न्यायमूर्ति महम्मद मुस्ताक तथा न्यायमूर्ति सी.एस. डायस के खंडपीठ ने कहा कि विश्वास एवं प्रथा के संदर्भ में मौलानाओं का मत न्यायालयों के लिए महत्त्वपूर्ण होता है तथा न्यायालयों को उनके विचारों का सम्मान करना चाहिए ।

२. ‘खुला’ प्रथा के विषय में न्यायालय ने कहा, ‘कानून के आधार पर मुसलमान महिलाओं को पति की सम्मति के बिना विवाह समाप्त करने का अधिकार है । यह अधिकार कुरान द्वारा दिया गया है ।’

३. पिछले प्रकरण में केरल उच्च न्यायालय ने यही परिणाम सुनाया था तथा उस पर अब पुनर्विचार याचिका प्रविष्ट की गई है । इस समय न्यायालय ने कहा कि यह पुनर्विचार याचिका दर्शाती है कि ‘खुला’ प्रथा का विरोध करने में मौलाना तथा वर्चस्ववादी पुरुषों का समर्थन है । मुसलमान महिलाओं को ‘खुला’ द्वारा दिए गए अधिकार स्वीकारने में मुसलमान समाज असमर्थ है ।