कोई महिला यदि अंगप्रदर्शनवाले वस्त्र परिधान करे, तब भी पुरुषों को असभ्य बर्ताव की अनुमति नहीं मिल जाती ! – केरल उच्च न्यायालय

थिरूवनंतपूरम् (केरल) – किसी भी प्रकार के वस्त्र परिधान करने का अधिकार संसद द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए स्वतंत्रता के अधिकार का एक भाग है । संविधान के अनुच्छेद २१ द्वारा प्रदत्त (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण), यह नागरिकाें का मूलभूत अधिकार है । यदि कोई महिला अंगप्रदर्शनवाले वस्त्र परिधान करे, तब भी पुरुषाें को असभ्य बर्ताव करने की अनुमति नहीं मिल जाती, ऐसा केरल उच्च न्यायालय द्वारा एक प्रकरण की सुनवाई में कहा गया ।

लैंगिक अत्याचार प्रकरण में लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता सिविक चंद्रन् को बंदी बनाने के पूर्व प्रतिभूति (जमानत) अर्ज (निवेदन) को चुनौती देनेवाली याचिका की सुनवाई के समय उच्च न्यायालय ने उपरोक्त मत व्यक्त किया । सिविक चंद्रन् की बंदी के पूर्व प्रतिभूति निवेदन के विरोध में राज्य सरकार के साथ अन्य परिवादकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की थी । उच्च न्यायालय ने कहा कि कोजिकोडे सत्र न्यायालय ने बंदी के पूर्व प्रतिभूति देने के लिए बताया कारण अनुचित था ।

इस प्रकरण में १२ अगस्त को कोजिकोडे सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश पर बडा वाद-विवाद निर्माण हो गया था । कोजिकोडे सत्र न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि ‘यदि उस महिला ने अंगप्रदर्शनवाले कपडे पहने हों, तो भारतीय दंड संहिता की ३५४ धारा नहीं लागू होती । इसलिए संबंधित आरोपी पर असभ्य बर्ताव का अभियोग प्रविष्ट नहीं किया जा सकता ।’, राज्य सरकारने ऐसा ठप्पा लगाते हुए कि ‘यह आदेश असंवेदनशील है’, केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया । न्यायालय ने सिविक चंद्रन् को बंदी बनाने से पहले प्रतिभूति स्वीकार की थी । कनिष्ठ न्यायालय का निर्णय केरल उच्च न्यायालय ने यथावत (कायम) रखा है ।