जगविख्यात भारतीय संगीतकार द्वारा श्रीरामजन्मभूमि की प्रशंसा करने पर धर्मांध मुसलमानों को हुई पीडा !

(गंगा-जमुनी तहजीब अर्थात गंगा एवं यमुना नदियों के तट पर वास्तव्य करनेवाले हिन्दू एवं मुसलमान में कथित एकता दर्शानेवाली संस्कृति !)

संगीतकार एवं पर्यावरणवादी रिकी केज

नई देहली – संगीत क्षेत्र में प्रतिष्ठित समझे जानेवाले जगविख्यात ‘ग्रैमी पुरस्कार’ से दो बार सम्मानित संगीतकार एवं पर्यावरणवादी रिकी केज ने कुछ समय पूर्व ही अयोध्या की रामजन्मभूमि को भेट दी । उन्होंने ट्वीटर पर वीडियो प्रसारित कर इस भव्य मंदिर के हो रहे निर्माणकार्य के विषय में बताया । वे बोले, ‘मैं रामजन्मभूमि गया । यहां का निर्माणकार्य देखकर मैं भावविभोर हो गया । श्रीराममंदिर बनने के पश्चात वह १ सहस्र वर्ष टिकेगा ।’ केज आगे बोले, ‘राममंदिर देखने का मुझे अवसर मिला, यह मेरा सौभाग्य है । वह अत्यंत सुंदर स्थान है । वहां चारों ओर निर्माणकार्य हो रहा है । जगभर के लोगों को इस मंदिर में आकर श्रीराम का आशीर्वाद लेना चाहिए ।’

केज के इस ट्वीट पर धर्मांध मुसलमानों ने विरोध दर्शाते हुए केज का निषेध किया है । खान नामक एक व्यक्ति ने कहा, ‘मंदिर को भूमि (मुसलमानों द्वारा) दान स्वरूप में मिली है । बाबरी मस्जिद के संदर्भ में हुआ अन्यायपूर्ण इतिहास हम भूलेंगे नहीं !’ (‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का आक्षेप लेनेवाले इस देश से चलते बनें’, ऐसा यदि कोई कहे तो उसमें गलत क्या होगा ? – संपादक)

साम्यवादियों को भी केज के इस वीडियो से पीडा हो रही है । ‘द हिन्दू’ नियतकालिक की महिला पत्रकार सुचित्रा कार्तिकेयन ने कहा, ‘कुछ भी अंट-शंट मत बडबडाएं ! ग्रैमी पुरस्कार एक से अधिक बार जीतनेवाला एकमेव भारतीय एकाएक ‘भक्त’ कैसे बन गया ?’ (हिन्दूद्वेषियों द्वारा रा.स्व.संघ एवं हिन्दुत्व के समर्थक हिन्दुओं को ‘भक्त’ शब्द द्वारा उपरोधिक (व्यंगात्मक) टीका की जाती है ।)

संपादकीय भूमिका

  • ‘गंगा जमुनी तहजीब’ इस लुभावने नाम से हिन्दुओं को एकता और सौहार्दता की घुट्टी पिलानेवाले कथित धर्मनिरपेक्षतावादी अब मुसलमानों को क्यों उपदेश नहीं देते ?
  • बहुसंख्य हिन्दुओं की श्रद्धाओं का आदर न रख पानेवालों को क्या लोकतंत्र भारत में रहने की पात्रता है ?