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फोंडा, गोवा – ‘‘सांप्रतकाल में दैवी बालक पृथ्वी पर जन्म ले रहे हैं । वे ही मानवजाति को सुराज्य की ओर ले जाएंगे’’, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की श्रीमती श्वेता क्लार्क ने किया । श्रीलंका में आयोजित ‘द फोर्थ इंटरनेशनल कॉन्फरेन्स ऑन चिल्ड्रन एंड यूथ २०२२’ इस अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में वे बोल रही थीं । इस परिषद का आयोजन ‘द इंटरनेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ नॉलेज मैनेजमेंट’ (TIKM) ने किया । श्रीमती श्वेता क्लार्क ने ‘दैवी बालक कैसे पहचानें एवं उनका पालन-पोषण कैसे करें ?’ विषय पर शोधनिबंध ‘ऑनलाइन’ प्रस्तुत किया । इसके लिए उन्हें ‘सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुतकर्ता’ पुरस्कर से सम्मानित किया गया । इस शोधनिबंध के लेखक महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले हैं तथा सहलेखक हैं श्री. शॉन क्लार्क एवं श्रीमती श्वेता क्लार्क ।
श्रीमती श्वेता क्लार्क ने आगे कहा,
१. वर्तमान में साधकों की कोख से अनेक उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त बालक जन्म ले रहे हैं; इसीलिए हम उन्हें ‘दैवी बालक’ संबोधित करते हैं । उनमें आज्ञाकारिता, उच्च विचारक्षमता एवं आध्यात्मिक क्षमता, अध्यात्म में रुचि एवं ईश्वर के प्रति भाव दिखाई देता है । जीवन के प्रतिकूल प्रसंगों में वे स्थिर रहते हैं एवं उनका जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण आध्यात्मिक होता है । उनमें सूक्ष्म के सकारात्मक एवं नकारात्मक स्पंदनों को जानने की क्षमता होती है ।
२. ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.)’ के उपयोग से हुई एक जांच के सूक्ष्म परीक्षण द्वारा ज्ञात हुए ८ दैवी बालक एवं ३२ सर्वसामान्य बालकों की सूक्ष्म ऊर्जा मापी गई । तब ऐसा ध्यान में आया कि सामान्य बालकों में अत्यल्प सकारात्मक ऊजा एवं भारी मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा है । इसके विपरीत दैवी बालकों में अत्यल्प नकारात्मक ऊर्जा एवं भारी मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई । इसमें जन्म से ही संतपद के आध्यात्मिक स्तर के दो दैवीय बालकों की (आयु ३ वर्ष) सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल सर्वोच्च अर्थात अनुक्रम में ८२१ एवं ७९३ मीटर था ।
३. अन्य एक परीक्षण में ३ दैवी बालकों को १ घंटा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ नामजप करने के लिए बताया गया । उनमें से मूलत: अल्प नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल नामजप के उपरांत ८६ प्रतिशत न्यून हो गया एवं सकारात्मक ऊर्जा के आभामंडल में ८७ प्रतिशत वृद्धि हुई । दैवी बालकों की सकारात्मकता बढानेवाले एवं नकारात्मकता न्यून करनेवाले उपक्रम सिखाए जाते हैं, उदा. ‘क्रोध’, ‘हठ’, ‘आलस’, जैसे स्वभावदोष दूर करने के लिए स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया, संगीत-नृत्य आदि विविध कलाएं इत्यादि ।
४. अपने बच्चों पर उचित संस्कार करना और आध्यात्मिक दृष्टि से उन्हें पोषक वातावरण उपलब्ध करवाना, ‘ईश्वरप्राप्ति’, मूलभूत ध्येय साध्य करने के लिए अपने बच्चों को दिशा देना, अभिभावकों का दायित्व है ।