‘रूस-यूक्रेन युद्ध : क्या तृतीय विश्वयुद्ध का आरंभ है ?’, इस विषय पर ‘ऑनलाइन’ विशेष परिसंवाद !
मुंबई – अनेक पश्चिमी देश बता रहे थे कि रूस-यूक्रेन में युद्ध हुआ तो यूक्रेन की पूर्णतया सहायता करेंगे; परंतु वास्तव में रूस द्वारा यूक्रेन की सेना के साथ नागरी क्षेत्रों पर आक्रमण करने पर भी किसी भी देश ने यूक्रेन की सहायता हेतु प्रत्यक्ष कोई भी सैनिकी कार्यवाही नहीं की । इस कारण युद्ध में यूक्रेन अकेला पड गया है । इन सब के परिणामस्वरूप कल चीन भी अमेरिका एवं पश्चिमी देशों की धमकियों से बिना डरे सीधे ताइवान को अपने नियंत्रण में लेने हेतु युद्ध कर सकता है । तैवान के पश्चात चीन का अगला लक्ष्य भारत हो सकता है । गत ८ वर्ष चीन ने ‘ग्रे वॉरफेअर जोन’ (प्रत्यक्ष में युद्ध न करते हुए निरंतर युद्धजन्य परिस्थिति निर्माण करना) निर्माण किया है । इसमें चीन रूस से भी अधिक आगे है । साथ ही रूस चीन का सब से बडा मित्र होने के कारण भारत को भी आगामी काल में किसी पर भी निर्भर न रहते हुए अपने बल पर लडना होगा । इसलिए भारत को अपनी सैनिकी क्षमता एवं युद्ध सामग्री के आधुनिकीकरण पर ध्यान देना चाहिए । ऐसा प्रतिपादन (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन ने किया है । हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘रूस-यूक्रेन युद्ध : क्या तृतीय विश्वयुद्ध का आरंभ है ?’ विषय पर २६ फरवरी को ‘ऑनलाइन’ विशेष परिसंवाद में वे बोल रहे थे । रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता श्री. नरेंद्र सुर्वे ने (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर महाजनजी से वार्तालाप किया ।
‘नाटो’ के सदस्य देश केवल धमकियां देते हैं’, ऐसी परिस्थिति का निर्माण होने की संभावना !
यूक्रेन की सहायता हेतु ‘नाटो’ (उत्तरी अटलांटिक करार संगठन) की सदस्यता प्राप्त देश उनकी सेना भेजने के लिए तैयार नहीं हैं । ‘नाटो’ सेना विश्व की सब से सक्षम एवं आधुनिकीकरण से युक्त सेना है । यह सेना कोई भी युद्ध लडने के लिए सक्षम है; परंतु पश्चिमी देश वैज्ञानिक प्रगति कर अनेक बातों में आधुनिक हुए हैं, तो भी उनमें युद्ध लडने का साहस नहीं है । इसलिए पूरे विश्व में ‘नाटो’ के सदस्य देश केवल धमकियां देते हैं; परंतु प्रत्यक्ष में कुछ नहीं करते’, ऐसा चित्र निर्माण होनेवाला है ।
देश को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सब को एक होकर आतंकवाद की कमर तोड देनी चाहिए !
रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय हाट (बाजार) में तेल की कीमतें बढी हैं । अन्य वस्तुओं के भाव भी बढने की संभावना है । इस कारण भारत में हमें अंतर्गत वादविवाद, राजकीय आरोप-प्रत्यारोप रोककर देश को आत्मनिर्भर बनाने हेतु एकत्रित आना चाहिए । कश्मीर में होनेवाली आतंकी कार्रवाइयां, नकली नोटों का कारोबार, पाक एवं बांग्लादेशी घुसपैठ, नार्काे टेरेरिजम (नशीले पदार्थाें द्वारा किया जानेवाला जिहाद) आदि के विरोध में कार्रवाई कर उनकी कमर तोड देनी चाहिए । तत्पश्चात पाक अधिकृत कश्मीर लेने में हमें समय नहीं लगेगा ।
भारत द्वारा अमेरिका के बदले रूस की सहायता करने से भारत पर भविष्य में क्या परिणाम हो सकते हैं ?
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में अमेरिका ने एक विधेयक रखा था । उस विधेयक को भारत ने मत नहीं दिया एवं रूस को अप्रत्यक्ष सहकार्य किया । इससे रूस का निषेध करनेवाला यह विधेयक पारित नहीं हो सका । इस घटना का भारत पर भविष्य में क्या परिणाम होगा, इस विषय का विश्लेषण देखते हैं ।
१. भारत के सुरक्षा क्षेत्र में स्वयंपूर्ण बनने से युद्धजन्य परिस्थिति में उसकी अन्य देशों पर निर्भरता घटेगी !
अ. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप एवं अमेरिका रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लाद रहे हैं । भारत भी रूस के साथ आर्थिक संबंध घटाकर उसका बहिष्कार करे, इसलिए यूरोपीय देश एवं अमेरिका दबाव बनाना आरंभ कर सकते हैं । इसमें भारत हेतु अनेक बातें हैं । एस् ४९० नामक ‘एयरक्राफ्ट डिफैन्स सिस्टिम’ है । उसकी ५ बैटरियां भारत रूस से लेनेवाला था । उनमें से १ बैटरी हमें मिली है एवं ४ बैटरियां अभी मिलनी बाकी हैं । उसे अभी ३-४ वर्ष लग सकते हैं । अब यह करार ही धोखे में आ जाएगा । इससे पूर्व भारत रूस से कोई भी शस्त्र न खरीदे, इस हेतु अमेरिका ने दबाव बनाया था; परंतु पश्चात उन्होंने इस ओर अनदेखी की ।
आ. भारत की अणु-पनडुब्बी को युद्ध के लिए तैयार होने में देरी हो रही है । इससे भारतीय सेना का प्रशिक्षण हो और उसकी उन्हें आदत बनें, इस हेतु एक अणु-पनडुब्बी रूस से किराए पर लेनेवाला था । अब यह पनडुब्बी मिलेगी या नहीं ? इस विषय में संदेह निर्माण हुआ है ।
इ. वर्तमान में भारत रूस द्वारा बनाए अनेक शस्त्रों का उपयोग कर रहा है, उदा. कुछ वर्ष पूर्व भारत ने रूस से हवाई दल के सबसे महत्त्वपूर्ण ‘सुखोई’ लडाकू हवाई जहाज लिए हैं । ये हवाई जहाज अब भारत में ही बनाए जा रहे हैं । उसके पुर्जाें का बडा प्रश्न निर्माण हुआ है । रूस से संबंधित कई पनडुब्बियां भारत की नौसेना में हैं । ऐसी परिस्थिति में रूस पर आर्थिक बहिष्कार डालना हो, तो भारत को ये संबंध बनाए रखना क्या संभव होगा ? इसलिए अमेरिका हम पर दबाव बनाएगा या नहीं ? और रूस हमें सहायता करेगा या नहीं ? यह आनेवाला समय ही बता सकता है ।
ई. भारतीय थल सेना के आधुनिक टी-७० या टी-९० टैंक रूस से आए हैं । इसके अलावा इसके आगे की बख्तरबंद गाडियां भी रूस से लेने के प्रयास चल रहे हैं । अब वे भी मिलने में बाधा निर्माण हो सकती है ।
ये वस्तुएं भारत को न मिलने पर हमें ‘आत्मनिर्भर भारत’ या ‘मैक इन इण्डिया’ यही एकमात्र उपाय है । इसके चलते भारत को आवश्यक सभी महत्त्वपूर्ण शस्त्र एवं उनका आधुनिकीकरण भी देश में ही होना होगा । नहीं तो युद्धजन्य परिस्थिति में शस्त्रों की आपूर्ति में बाधा आ सकती है । इसलिए आगामी २-३ वर्षाें में शस्त्रास्त्र निर्मिति अंतर्गत ‘आत्मनिर्भर भारत’ यह अभियान पूरा करना होगा ।
२. अमेरिका क्या भारत के विरोध में कार्यवाही कर सकेगा ?
अमेरिका भारत से संबंधित व्यापार घटाने की संभावना अत्यंत अल्प है । इसके विपरीत अमेरिका आज भी भारत को कच्चा तेल देने के लिए तैयार है । साथ ही तंत्रज्ञान भी अच्छे से दे रहा है; क्योंकि अमेरिका को ज्ञात है कि एशिया में चीन का मुकाबला करना है, तो अमेरिका को सहायता कर सकनेवाला भारत ही इकलौता देश है ।
रूस ने यूक्रेन के विरोध में दादागिरी की है । इससे अन्य राष्ट्रों ने उसके विरोध में आर्थिक निर्बंध लादे हैं; परंतु उसका रूस पर कोई भी परिणाम दिखाई नहीं देता । रूस के यूक्रेन में विजय के अनेक परिणाम होनेवाले हैं, जिसका भारत को भी कष्ट होने की आशंका है । अमेरिका एवं यूरोप अन्य स्थानों पर भारत को कष्ट नहीं देंगे । साथ ही ‘क्वाड्रिलैटरल को-आपरेशन’ में (चतुर्भुज सहकार्य में) भारत, अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया ये देश हैं तथा उनके आपसी संबंध बढते जाएंगे ।
भारत अमेरिका के माध्यम से शस्त्रों की निर्यात भी बढाएगा । इसके विपरीत भारत रूस से कोई भी शस्त्र न ले, इसलिए चीन हम पर दबाव बना सकता है ।
३. सोविएत संघ से निकल कर विलग हुए राष्ट्रों द्वारा ‘नाटो’ का सदस्यत्व स्वीकार करने के कारण उनकी सुरक्षा का दायित्व ‘नाटो’ को लेना पडेगा
वर्ष १९९० में सोविएत संघ का विघटन हुआ । इससे १५ देश बाहर निकलकर विलग हुए । तब तक सोविएत संघ विश्व की एक महाशक्ति था । उसे अमेरिका की बराबरी का माना जाता था । विघटन होने पर उसमें से ११ देश ‘नाटो’ में सहभागी हुए । परिणामस्वरूप ‘अपने अन्य देशों को भी तोडने का प्रयास हो सकता है’, ऐसा रूस को भय लगा । इस कारण उसने वर्ष २०१४ में क्रिमिया पर कार्रवाई की और अब यूक्रेन पर कार्रवाई की है ।
पुतिन अत्यंत महत्त्वाकांक्षी नेता है । उन्हें इतिहास में सोविएत संघ के सबसे बडे नेता के रूप में स्थान स्थायी बनाना है । इससे टूटे हुए देश सोविएत संघ के आगे निकल जाने पर उन पर इस प्रकार की कार्रवाई हो सकती है, ऐसा भय निर्माण किया जा रहा है ।
ये ११ देश अत्यंत छोटे हैं । उनकी लडने की क्षमता अधिक नहीं है । उनकी आर्थिक क्षमता भी अधिक नहीं है । अधिकांश देश ‘नाटो’ के सदस्य बने हैं । इस संगठन ने कहा है कि ‘उनकी रक्षा करने का दायित्व ‘नाटो’ का है । इस कारण ‘नाटो’ ने बहुतसी सेना एवं लडाकू हवाई जहाज इन देशों की सीमाओं पर तैनात किए हैं । रूस ने इन देशों के विरोध में कुछ कार्रवाई की, तो ‘नाटो’ की सेना उसकी कार्रवाई को सैनिकी प्रत्युत्तर दे सकती है । और भी कुछ देश हैं, जो ‘नाटो’ के सदस्य नहीं हैं । उनका क्या होगा ? विशेषतः जो देश यूक्रेन के समीप हैं । उनकी रक्षा करने का काम भी ‘नाटो’ को करना होगा । अन्यथा पुतिन उनकी विस्तारवादी नीति वेग से काम में ला सकते हैं और उन्हें भी रूस की कार्रवाई का सामना करना पड सकता है । इसलिए आगामी काल में रूस की कार्रवाई पर भारत को ध्यान रखकर घटनेवाली घटनाओं का उचित विश्लेषण समय समय पर करना होगा ।
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे.