शासन लोकतंत्र व्यवस्था का आधारस्तंभ है । हमारे देश में प्रत्येक ५ वर्ष में चुनाव होते हैं और शासनकर्ता बदल जाते हैं, तब भी प्रशासकीय कर्मचारी एवं अधिकारी वही होते हैं । शासनकर्ताओं द्वारा लागू की गई योजनाओं को कार्यान्वित करनेवाला प्रशासन ही होता है । अत: ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि वास्तव में प्रशासन ही देश को चलाता है । गत कुछ वर्षाें से हिन्दुओं को प्रशासकीय स्तर पर निरंतर संघर्ष करना पड रहा है । उसका कारण है, ईसाई, इस्लामी आदि का पक्ष लेकर हिन्दुओं को निरंतर नीचा दिखानेवाले प्रशासकीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों की टेढी नजरें हिन्दुत्वनिष्ठों ने अनेक बार अनुभव की हैं । जन्म से हिन्दू होते हुए भी ये लोग ऐसे क्यों बर्ताव करते हैं ? क्योंकी प्रशासकीय अधिकारी होने से पूर्व ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते समय उन्हें वैसी जन्मघुट्टी पिलाई जाती है ! हाल ही में लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं की पूर्वतैयारी के लिए मार्गदर्शन करनेवाले ‘विजन आइ.ए.एस.’ नामक प्रशिक्षण संस्था की एक वीडियो प्रसारित होने से वहां किस प्रकार हिन्दूद्वेष फैलाया जा रहा है, यह सामने आया है । स्मृति शाह नामक मार्गदर्शिका इस्लाम संबंधी सिखाते समय बताती है ‘‘इस्लाम उदारतावादी था । इस्लाम में समानता सिखाई जाती है । इस्लाम में बंधुत्व की भावना है और रूढीवाद-जातीयवाद न होने से वह सभी के आकर्षण का केंद्र बन गया था । उस समय लोग स्वयं ही इस्लाम स्वीकार करने लगे । ऐसे समय पर हिन्दू धर्म इस्लाम से कुछ अलग नहीं, यह जताने के लिए भक्ति आंदोलन आरंभ किए गए ।’’ यह सब स्मृति शाह का अपना एक महान शोध है ।
हिन्दूद्वेष की परिसीमा
स्मृति शाह एवं ‘विजन’ के अन्य मार्गदर्शकों के भी अनेक वीडियो अब सामने आ रहे हैं । उसमें शबरीमला की प्रथाओं के विषय में उपहास, कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों का समर्थन आदि देखने को मिलता है । इससे पूर्व भी वैचारिक जिहादी आतंकवादी डॉ. जाकीर नाईक के ‘जकात फाउंडेशन’ ने यू.पी.एस.सी. परीक्षाओं में मुसलमान विद्यार्थियों की चयन प्रक्रिया में रचा गया षड्यंत्र उजागर हुआ है । एक ओर यह षड्यंत्र रचना कि प्रशासन में मुसलमान ही होंगे, तो दूसरी ओर ऐसी सीख देना कि अन्य किसी भी धर्म के व्यक्ति यदि प्रशासन में आएं, तब भी वे वैचारिक दृष्टि से इस्लामी ही हों ! अब बात आती है कि स्मृति शाह जिस उदारता और समानता का उल्लेख कर रही हैं, वह इस्लाम में उन्हें भला कहां दिखाई दी ? इस्लाम के इतिहास में उसके प्रत्येक पृष्ठ पर हिन्दूद्वेष एवं हिंसा दिखाई देती है । लोग स्वयं ही इस्लाम की ओर आकर्षित हुए, इसका क्या प्रमाण है ? इस्लाम द्वारा तलवार की नोक पर किया धर्मांतर, महिलाओं पर अत्याचार आदि तो इतिहास के प्रत्येक पन्ने पर स्पष्ट दिखाई देता है । सत्ताप्राप्ति के लिए अपने ही पिता की हत्या करनेवाले राज्यकर्ता देनेवाला इस्लाम उदारतावादी कैसे हो सकता है ? स्मृति शाह भला कौनसे इतिहास की अध्ययनकर्ता हैं, जो वे ऐसा विकृत और निराधार इतिहास सिखा रही हैं ? स्मृति शाह गणित की पदवीधर हैं । ऐसा होते हुए भी वे इतिहास सिखा रही हैं, यह बडा विनोद है । स्मृति शाह उसी सेंट स्टीफन्स महाविद्यालय की विद्यार्थिनी हैं, जहां हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता जे. साईदीपक के कार्यक्रम का तीव्र विरोध हुआ था । ऐसे लोगों द्वारा जानबूझकर उन मूल्यों का उदात्तीकरण, जो इस्लाम में कभी भी नहीं देखे गए और इसके साथ ही हिन्दू धर्मियों की श्रद्धाओं का हनन, यह कोई नई बात नहीं । ‘विजन आइ.ए.एस.’ संस्था ने इस पर स्पष्टीकरण दिया है । ऐसा होते हुए भी आजकल उदारता, समानता, धर्मनिरपेक्षता आदि शब्दप्रयोग प्रतिष्ठा के प्रतीक बन गए हैं । सनदी अधिकारी, उच्च आर्थिक उत्पन्नवाले गुट जानबूझकर धर्मनिरपेक्षतावादी भूमिका अपनाते हैं । उसमें भी यदि गलत शिक्षण मिले, तो समाजघातक कार्यवाहियों में वृद्धि ही होती है । स्मृति शाह को इस्लाम में बंधुभाव एवं एकता अनुभव करनी हो, तो वे अवश्य निर्णय लें; केवल यह ध्यान रखें कि ऐसे विधान करते समय उसके साथ प्रमाणों का भी आधार दें । आजकल देशभर में हिजाब का प्रश्न, अत्यंत पेचीदा बन गया है । ऐसे में इस्लाम में कौनसा बंधुभाव एवं एकता दिखाई दे रही है ?
शिक्षा सत्य पर आधारित होनी चाहिए !
प्रश्न हिन्दुओं के हनन एवं इस्लाम के उदात्तीकरण का ही नहीं है । ऐसी विद्वेषी मानसिकता लेकर यह प्रतियोगिता परीक्षार्थी कल जिस स्थान पर नौकरी करेंगे, वहां सर्वत्र सत्य इतिहास बतानेवाले हिन्दुओं के वे बैरी बन जाएंगे और उनसे द्वेष करेंगे । सामाजिक संघर्ष के काल में हिन्दू भले ही कोई भी भूमिका लें, तब भी उन्हें प्रशासन के रोष का सामना करना ही पडता है । उसका कारण है विषैली शिक्षा ! वास्तविक शिक्षा सत्य पर आधारित होनी चाहिए । यदि विद्यार्थियों को भारत का उज्ज्वल इतिहास सिखाया जाएगा, तो वे सुशासन करेंगे । वर्तमान में तो नींव ही असत्य एवं द्वेष की होने से उस पर लगे फल कैसे हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं ! विश्वभर में किसी भी देश में वहां के बहुसंख्य समुदाय के प्राचीन इतिहास का विकृतीकरण नहीं हो रहा होगा । अपने देश की प्राचीन धरोहर कितनी उदात्त है, यह सिखाकर भविष्य उज्ज्वल करने के लिए प्रेरणा दी जाती है । अपना देश कितना सामान्य था और आए हुए आक्रामक ही कैसे महान थे, यह सिखानेवाला एवं ऐसी सीख लेनेवाला ऐसा एकमेव देश है भारत ! शिक्षक जो बताए, उस पर आंखें बंद कर विश्वास रखनेवाले प्रतियोगिता परीक्षाओं के विद्यार्थी भी बहुत छोटे नहीं होते । उन अध्ययनकर्ताओंमें से ही अब ऐसी मानसिकताओं का तत्परता से खंडन करना और सभी के समक्ष लाना, इससे ये अनाचार रोकने में सहायता होगी !