राजस्थान में अध्यापिका में छात्रों में वितरित हिन्दूद्वेषी पुस्तक ‘हिन्दुइज्म : धर्म या कलंक’ !

  • पुस्तक में हिन्दुओं की देवताओं की घिनौनी भाषा में आलोचना

  • जांच के आदेश

  • राजस्थान में हिन्दूविरोधी कांग्रेस की सरकार होने के कारण क्या ऐसी हिन्दूद्वेषी अध्यापिका की जांच होकर उसे दंड मिलेगा ?, यह प्रश्न ही है ! – संपादक
  • ऐसी अध्यापिकाएं छात्रों के सामने कौनसा आदर्श रखेंगी ? – संपादक

     भीलवाडा (राजस्थान) – भीलवाडा जिले के रूपपुरा के सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय की एक अध्यापिका ने छात्रों को ‘हिन्दुइज्म : धर्म या कलंक’ नाम का हिन्दू धर्म की घिनौनी भाषा में आलोचना करनेवाले पुस्तक का वितरण किया । इस प्रकरण में अभिभावकों द्वारा किए गए विरोध के उपरांत जिला शिक्षा अधिकारियों ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं । यह पुस्तक एल.आर. बाली ने लिखा है तथा उसे नागपुर के ‘समता प्रकाशन’ ने प्रकाशित किया है । इस पुस्तक का छात्रों में वितरण करनेवाली अध्यापिका का नाम निर्मला कामड है । कामड के विरोध में विरोध प्रदर्शन कर उसे निलंबित करने की मांग की गई है, इसके साथ ही सामाजिक माध्यमों पर भी ‘हिन्दू धर्मविरोधी अध्यापिका निर्मला कामड को गिरफ्तार कीजिए’, इस ‘हैशटैग’ के द्वारा ‘ट्रेंड’ चलाया गया प्रसारमाध्यमों पर प्रसारित समाचारों के अनुसार इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक मुकेश कुमार को इस पुस्तक का वितरण किए जाने के विषय में शिकायत मिली; परंतु उसका वितरण किसने किया है, यह अभी तक उन्हें ज्ञात नहीं हुआ है ।

अध्यापिका के द्वारा श्री ब्रह्मदेव एवं श्रीराम के विषय में क्षोभजनक वक्तव्य !

     इस विद्यालय के एक छात्र ने बताया, ‘‘अध्यापिका जब इस पुस्तक का वितरण करती थीं, तब वे हमें ‘आप यह पुस्तक पढिए, उससे जो आपके मस्तिष्क में है, वह चला जाएगा’, ऐसा बताती थीं । वे वर्ग में अन्य धर्म का प्रचार भी करती थीं । वे कहती थीं, ‘ब्रह्मा ने अपने पुत्री के साथ बलात्कार किया है । राम दशरथ के पुत्र नहीं थे ।’’ यह पुस्तक हरे रंग में प्रकाशित किया गया है । उस पर ‘हिन्दू धर्म उदार और सहनशील नहीं है तथा इस विश्व में हिन्दुओं की अपेक्षा अन्य कोई संकीर्ण लोग नहीं हैं’, इस वाक्य को नेहरू के विचार के रूप में छापा गया है ।

पुस्तक में भगवान श्रीविष्णु, ब्रह्माजी एवं विश्वामित्र ऋषि के विषय में घिनौना लेखन !

     जीतमल गुर्जर नाम के एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने इस पुस्तक के पन्नों को सामाजिक माध्यमों पर प्रसारित किया है । उसमें लिखा है कि ‘विष्णु और कुत्ते में कोई भी अंतर नहीं है ।’ इसके साथ ही ब्रह्माजी एवं विश्वामित्र ऋषि के विषय में आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया है । उसमें हिन्दुओं के देवताओं को ‘खलनायक’ कहकर उल्लेख किया गया है ।

‘मैं दलित समुदाय की होने से मुझे लक्ष्य बनाया जा रहा है !’ – निर्मला कापड

     इस संपूर्ण प्रकरण के विषय में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए निर्मला कामड ने कहा, ‘‘मैं निर्दाेष हूं । मैं दलित समुदाय की होने से मुझे लक्ष्य बनाया जा रहा है । मैं चारपहिया वाहन से घूमती हूं, केश खुले छोडती हूं और चश्मा लगाती हूं, इससे कुछ लोगों में बहुत जलन है ।’’ (५.३.२०२२)