महाराष्ट्र राज्य के गृहनिर्माण मंत्री की गिरफ्तारी एवं मुक्ति और इस प्रक्रिया की गोपनीयता !

पू. (अधिवक्ता) सुरेश कुलकर्णीजी

१. अनंत करमुसे मारपीट प्रकरण में महाराष्ट्र के गृहनिर्माणमंत्री को गिरफ्तार किया जाना और जमानत पर उन्हें मुक्त करना

     ‘१५ अक्टूबर को सभी समाचारपत्रों और जालस्थलों पर ऐसा समाचार था कि ‘महाराष्ट्र राज्य के गृहनिर्माणमंत्री तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता जितेंद्र आव्हाड को सवा वर्ष पूर्व ठाणे के अभियंता अनंत करमुसे से की गई मारपीट के प्रकरण में गिरफ्तार किया गया । न्यायालय ने १० सहस्र रुपए की सुरक्षा पर उन्हें जमानत दी ।’ १४ अक्टूबर को एक भी समाचार संस्था ने इस समाचार को ‘ब्रेकिंग न्यूज’ के रूप में नहीं दिखाया और समाचारपत्रों में भी यह समाचार प्रकाशित नहीं किया गया । भाजपा नेता किरीट सोमय्या ने सर्वप्रथम ‘ट्विटर’ के माध्यम से यह समाचार दिया । उसमें उन्होंने उल्लेख किया कि ‘इस घटना के संबंध में बहुत गोपनीयता रखी गई है ।’ केवल इतना ही नहीं, अपितु न्यायालयीन समाचारों का वार्तांकन करनेवाले संवाददाता भी शांत थे । एक वर्ष पूर्व इस प्रकरण में पुलिस प्रशासन की कार्यपद्धति और मंत्री की उद्दंडता की आलोचना हुई थी । इसके सवा वर्ष उपरांत यह गिरफ्तारी की गई अथवा दिखाई गई । त्योहार से एक दिन पूर्व एक विशिष्ट व्यक्ति किसी सामान्य व्यक्ति की भांति पुलिस थाने जाता है, पुलिस तत्परता से उनका कथन (गवाही) पंजीकृत करती है और उन्हें न्यायालय के समक्ष उपस्थित करती हैं । उसके उपरांत न्यायालय उन्हें तत्काल ही प्रतिभू (जमानत) दे देता है । यह सब किसी फिल्मी कहानी की भांति घटित हुआ । कुल मिलाकर जो भी घटित हुआ, वह किसी स्वप्न के समान और विश्वास करने योग्य नहीं था ।

२. एक अभियंता के साथ अमानवीय पद्धति की मारपीट से आधुनिकतावादी महाराष्ट्र के मंत्री द्वारा अपना पुरुषार्थ दिखाना

     अनंत करमुसे एक अभियंता है और वे घोडबंदर, ठाणे में रहते हैं । कोरोना काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ५ अप्रैल २०२० को समस्त भारतीयों को अपने घरों के सामने दीपप्रज्वलन करने का आवाहन किया था । संपूर्ण भारत में अधिकांश नागरिकों ने अपने घरों के बिजली के दीप बंद कर अटारियों और आंगन में तेल-घी के दीप जलाए । सायंकाल में तुलसीजी के पास दीप जलाना तो हिन्दुओं की पुरानी परंपरा है ।

     भारत में किसी भी बात को राजनीतिक दृष्टि से ही देखा जाता है । तो इसमें स्वाभाविक रूप से आधुनिकतावादी महाराष्ट्र के राजनेता कैसे पीछे रहेंगे ? महाराष्ट्र के गृहनिर्माण विभाग के मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने स्वयं तो दीप नहीं जलाए; परंतु उसके विपरीत प्रधानमंत्री का उपहास हो, इस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त की । उस पर करमुसे ने सामाजिक जालस्थल पर आव्हाड पर टीका-टिप्पणी करनेवाला लेखन प्रसारित किया ।

     उसके उपरांत ६ लोग करमुसे के घर आए । उनमें पुलिस की वेशभूषा में २ लोग थे । उन्होंने करमुसे को निकट के पुलिस थाने में ले जाने का आग्रह किया । उस पर करमुसे ने कहा, ‘‘आप अपने वरिष्ठों को दूरभाष कीजिए । मैं अपनी गाडी से आता हूं ।’’ परंतु वे लोग करमुसे को घसीटते हुए स्कॉर्पियो गाडी में बिठाकर ले गए । वे लोग करमुसे को पुलिस थाने न ले जाकर सीधे महाराष्ट्र के मंत्री जितेंद्र आव्हाड के आवास पर ले गए । उस समय वहां मंत्री आव्हाड के साथ अन्य १० से १५ लोग पहले से ही उपस्थित थे । उन सभी ने फाइबर की लाठियों से करमुसे को पीटा, साथ ही पुलिसकर्मियों ने भी चमडे के पट्टों (बेल्ट) से अनंत करमुसे से अमानवीय मारपीट की ।

     उस समय आव्हाड ने करमुसे से कहा, ‘‘मुझसे क्षमा मांगो और तुमने सामाजिक माध्यमों पर मुझ पर जो टीका-टिप्पणी की है, उसे हटा दो ।’’ करमुसे ने यह आरोप लगाया है कि मंत्री के आदेश पर उनकी सुरक्षा में नियुक्त पुलिसकर्मियों और सुरक्षारक्षकों ने मारपीट की है ।

     इस प्रकार आधुनिकतावादी महाराष्ट्र के मंत्री ने करमुसे के साथ मारपीट कर अपना पुरुषार्थ दिखाया । उसके उपरांत बहुत दिनों तक करमुसे के शरीर पर मारपीट के चिन्ह और उनके काले-नीले दाग दिखाई दे रहे थे । अनंत करमुसे नाम के एक अभियंता के साथ पशुवत मारपीट की गई और वह भी मंत्री के बंगले पर ! इस मारपीट में पुलिसकर्मी भी सम्मिलित थे । इस प्रकरण में १०-११ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें कुछ पुलिसकर्मी भी सम्मिलित हैं ।

३. संविधान में केवल मंत्रियों को ही नहीं, अपितु प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है !

     संविधान ने केवल मंत्रियों को ही नहीं, अपितु प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है, इस पर भी विचार होना आवश्यक है । यदि किसी मंत्री को प्रधानमंत्री जैसे अति विशिष्ट व्यक्ति की आलोचना करना संविधान द्वारा प्रदान की गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लगती हो, तो करमुसे ने संगणकीय सहायता से उस मंत्री को अलग चेहरा देकर (‘मॉर्फड फेस’ प्रौद्योगिकी की सहायता से) सामाजिक जालस्थल पर दिखाया, तो उससे मंत्री महोदय को इतना आहत होने की क्या आवश्यकता है ? किसी मंत्री ने यदि प्रधानमंत्री जैसे अति विशिष्ट व्यक्ति के प्रति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अपना मत प्रकट किया हो, तो अनंत करमुसे नाम के व्यक्ति के द्वारा उस पर दी गई प्रतिक्रिया के विषय में भी उसी दृष्टिकोण से ही देखा जाना आवश्यक है, इस प्रकार भारतीय संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सिखाता है । यह ध्यान देना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल मंत्रियों को ही नहीं, अपितु प्रत्येक नागरिक को है ।

४. एक मंत्री के आदेश पर मारपीट की गई है, यह स्पष्टता से दिखाई देते हुए भी पुलिस द्वारा अज्ञात लोगों के विरोध में अपराध पंजीकृत करना

     इस अन्याय के विरुद्ध शिकायत पंजीकृत कराने के लिए करमुसे निकट के पुलिस थाने गए । वहां उन्होंने मांग की, ‘मारपीट करनेवाले व्यक्तियों और मंत्री के विरुद्ध अपराध पंजीकृत किया जाए ।’ सामान्य जनता को जिस प्रकार से पुलिस थाने का अनुभव मिलता है, वही अनुभव करमुसे को भी मिला । उस समय पुलिस प्रशासन ने अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध अपराध पंजीकृत किया । एक मंत्री के आदेश पर, उनके निर्देश पर, उनके घर पर और उनकी उपस्थिति में तथा उनकी सुरक्षा में नियुक्त पुलिसकर्मियों और सुरक्षाकर्मियों ने करमुसे के साथ मारपीट की, यह स्पष्ट होते हुए भी अज्ञात लोगों के विरुद्ध कैसे अपराध पंजीकृत हो सकता है ?, यह प्रश्न पीडित और न्यायप्रिय व्यक्तियों के मन में उत्पन्न हो सकता है ।

५. करमुसे के साथ की गई मारपीट की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए, इस मांग को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की जाना

     कुछ महिने पूर्व मुंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका प्रविष्ट की गई थी । ‘महाराष्ट्र पुलिस की निष्क्रियता को ध्यान में लेते हुए इस प्रकरण की जांच केंद्रीय अन्वेषण विभाग (सीबीआई) को हस्तांतरित की जाए’, इस मांग को लेकर यह जनहित याचिका प्रविष्ट की गई । इस प्रकरण में कई बार सुनवाई हुई । माननीय न्यायालय ने गृहनिर्माण मंत्री का घर, करमुसे का घर, वर्तकनगर पुलिस थाना और परिसर, इन स्थानों का ‘सीसीटीवी फुटेज’ प्रस्तुत करने का आदेश दिया ।

     अतः मंत्री महोदय की गिरफ्तारी तो इस जनहित याचिका की हवा निकालने की दिशा में किया गया प्रयास ही था । इसके पीछे ‘यह प्रकरण सीबीआई के पास न जाकर वर्षाें तक वैसे ही पडा रहे’, क्या यह उद्देश्य हो सकता है ? इस प्रकरण में मंत्री को सुरक्षा दी गई । उसके कारण ही मंत्री को त्यागपत्र नहीं देना पडा, साथ ही अन्य प्रकरणों में अपराधियों के साथ जो व्यवहार किया जाता है, वह उनके साथ नहीं हुआ ।

६. एक अभियंता के साथ मारपीट होकर भी पुलिस द्वारा कुछ न करना, यह स्वयं को ‘आधुनिकतावादी’ कहलानेवाले महाराष्ट्र के लिए लज्जाजनक !

     इस गिरफ्तारी के उपरांत राजनीतिक दृष्टिकोण से आलोचनाएं हुईं । सर्वप्रथम किरीट सोमय्या ने ट्वीट किया, ‘गृहनिर्माण मंत्री की गिरफ्तारी हुई है; परंतु सरकार द्वारा उन्हें सुरक्षा दिए जाने के कारण बहुत दिन उपरांत हुई है ।’ विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष प्रवीण दरेकर ने भी इसकी आलोचना की । अन्य समय हम राजनेताओं के मुंह से उठते-बैठते ‘मूलभूत अधिकार’, ‘स्वतंत्रता का हनन’, ‘लोकतंत्र में अपना मत व्यक्त करने की स्वतंत्रता’ जैसे बडे-बडे शब्द सुनते हैं । यहां तो एक कार्टून पोस्ट करने के कारण एक मंत्री के घर पर पुलिसकर्मियों की संलिप्तता में एक अभियंता के साथ मारपीट की जाती है और इस प्रकरण में पुलिस के द्वारा कुछ भी कार्यवाही नहीं की जाती, यह स्वयं को ‘आधुनिकतावादी’ कहलानेवाले महाराष्ट्र राज्य के लिए लज्जाजनक है ।

७. पीडितों को न्याय मिलने हेतु न्यायालय जाकर प्रयास करने चाहिए !

     एक अभियंता अपने साथ की गई मारपीट के विरोध में न्यायालय का द्वार खटखटाता है और संपूर्ण घटना बताकर मंत्री की पोल खोलता है और इस प्रकरण को सीबीआई को सौंपने की मांग करता है । उसके उपरांत भी निरंतर समीक्षा करने के उपरांत और याचिका पर बार-बार की गई सुनवाई के उपरांत मंत्री को गिरफ्तार किया गया है, यह ध्यान में आता है । इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उसके साथ अन्याय करनेवाला कितना बडा है, इसकी चिंता न करते हुए लोकतंत्र के सभी स्तंभों तक जाकर न्याय मांगना चाहिए । उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय निर्भीक होते हैं; इसलिए पीडित लोगों को ऐसी प्रवृत्तियों से न डरते हुए न्यायालय में जाकर न्याय प्राप्त करने हेतु प्रयास करने चाहिए ।’

।। श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।’

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद तथा अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय. (१८.१०.२०२१)