सनातन के ग्रंथ : न केवल ज्ञान, अपितु चैतन्य के दिव्य भंडार !

सनातन संस्था द्वारा पूरे भारत में चलाए जा रहे ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ के निमित्त…

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

     सनातन के ग्रंथ अर्थात ईश्वरीय चैतन्य, साथ ही आनंद और शांति की अनुभूति देनेवाली सामग्री । सनातन के ग्रंथों में दिया दिव्य ज्ञान समाज तक पहुंचाने के लिए सनातन द्वारा पूरे भारत में ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ चलाया जा रहा है । सनातन के ग्रंथ समाज के प्रत्येक जिज्ञासु, मुमुक्षु इत्यादि जीवों तक पहुंचें तथा उन्हें भी ज्ञानशक्ति का लाभ हो, यह इस अभियान का उद्देश्य है । इस पृष्ठभूमि पर सनातन के ग्रंथों की विशेषता बतानेवाली जानकारी इस लेख में दी गई है । इस जानकारी के अध्ययन से यह अभियान अधिक परिणामकारक होने में साधकों को सहायता होगी ।

पू. संदीप आळशीजी

१. अनुभवसिद्ध ज्ञान निर्माण करनेवाली मौलिक विचारसंपदा !

     ‘अनुभवसिद्ध साहित्य के कारण संस्कृति जीवित रहती है ! अनुभव युक्त साहित्य आगामी अनेक पीढियों का उद्धार करता है । अनुभवसिद्ध साहित्य-संस्कृति का जिन्होंने जतन किया, उनका नाम अजर अमर हुआ और वे दीपस्तंभ के समान इस विश्व के मार्गदर्शक बन गए । आद्य शंकराचार्य, संत एकनाथ महाराज, समर्थ रामदासस्वामी इत्यादि के चरित्र और साहित्य उनके अनुभवों से ओतप्रोत भरा है । इन विभूतियों के समान ही परात्पर गुरु डॉक्टरजी का चरित्र और उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ भी मार्गदर्शक है; क्योंकि संतों द्वारा विविध प्रसंगों में सिखाया गया अध्यात्म, अध्यात्म का आचरण करते हुए स्वयं को हुए अनुभव, उन अनुभवों का विश्लेषण, प्रयोगशीलता द्वारा अर्जित ज्ञान इत्यादि से वे समृद्ध है । अध्यात्म अनुभूति का शास्त्र होने से अनेक बार अध्यात्म के नवीनतम सूत्र ईश्वर अनुभूति के माध्यम से सिखाता है । इन सूत्रों का भी ग्रंथों में समावेश है ।

२. सर्वांगस्पर्शी ग्रंथसंपदा !

     सनातन की ग्रंथसंपदा सर्वांगस्पर्शी है । कर्मकांड के प्रति श्रद्धा रखनेवालों के लिए धर्मशास्त्र प्रतिपादित करनेवाले ग्रंथ उपयुक्त हैं । उपासनाकांड के साधकों के लिए भक्ति में वृद्धि करनेवाले ग्रंथ मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं । कला में रुचि रखनेवालों को ‘सात्त्विक कला किस प्रकार संवर्धित करें ?’, इस विषय में नया दृष्टिकोण सीखने को मिलता है । राष्ट्ररक्षा और धर्मजागृति के विषय से संबंधित ग्रंथ हिन्दू समाज को सभी दृष्टि से आदर्श हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के विषय में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं । बालसंस्कार, बच्चों का विकास, आयुर्वेद जैसे जीवन और साधना के प्रत्येक अंग के विषय में व्यापक एवं गहन मार्गदर्शन करनेवाले ये ग्रंथ हैं ।’

३. अध्यात्म की प्रत्येक कृति के विषय में ‘क्या और कैसे’ प्रश्नों के शास्त्रीय उत्तर !

     वर्तमान विज्ञानयुग की पीढी को अध्यात्म की प्रत्येक कृति के विषय में ‘क्यों एवं कैसे’, यह जानने की जिज्ञासा होती है । उन्हें अध्यात्म की किसी कृति का अध्यात्मशास्त्रीय आधार समझाकर बताने पर, उनका अध्यात्म पर शीघ्र विश्वास स्थापित होता है और वे साधना पथ पर मार्गक्रमण करते हैं । इसीलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने आरंभ से ही प्रत्येक ग्रंथ में अध्यात्मशास्त्र बताने को प्रधानता दी है । इसका एक उदाहरण निम्नानुसार है ।

     शिवपिंडी पर बेल चढाने की दो पद्धतियां हैं । पहली पद्धति अर्थात पत्तों का सिरा स्वयं की दिशा में करके बेल चढाना और दूसरी पद्धति अर्थात पत्तों का डंठल अपनी ओर रखकर बेल चढाना । जिज्ञासुओं के मन में प्रश्न निर्माण हो सकता है कि ‘दो भिन्न पद्धतियां क्यों ?’ इसका शास्त्र ऐसा है कि – बेल के पत्ते तारक शिवतत्त्व के वाहक हैं तथा बेल के पत्तों का डंठल मारक शिवतत्त्व का वाहक है । सामान्य उपासक की प्रकृति तारक स्वरूप की होने से शिव की तारक उपासना ही उसकी प्रकृति हेतु अनुकूल और आध्यात्मिक उन्नति हेतु पूरक होती है । ऐसे उपासकों को शिव के तारक तत्त्व का लाभ होने के लिए पत्तों का सिरा अपनी ओर तथा डंठल पिंडी की ओर रखकर बेलपत्र चढाएं । इसके विपरीत, शाक्तपंथीय (शक्ति की उपासना करनेवाले) शिव के मारक रूप की उपासना करते हैं । ऐसे उपासकों को शिव के मारक तत्त्व का लाभ लेने के लिए बेल के पत्तों का छोर भगवान की ओर तथा डंठल अपनी ओर रखकर बेलपत्र चढाएं ।’

– (पू.) संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के संकलनकर्ता (२३.४.२०१७)

सनातन के ग्रंथों का महत्त्व !

पू. रमानंद गौडा

१. ‘श्रीमद्गवद्गीता, महाभारत आदि धर्मग्रंथ ईश्वरीय वाणी द्वारा साकार हुए हैं; इसलिए उनमें चैतन्य है, उसी प्रकार सनातन के ग्रंथ भी ईश्वरीय संकल्प द्वारा साकार हुए हैं । वेदों के समान महतीवाले ये ग्रंथ स्वयंभू चैतन्य के स्रोत हैं । ग्रंथों का अध्ययन करनेवालों ने उनमें बताए अनुसार कृति की, तो वे साधक और शिष्य स्तर से आगे बढकर भविष्य में संत भी हो सकते हैं ।

२. ग्रंथों से घर में सात्त्विकता निर्माण होकर वास्तुशुद्धि होती है ।

३. इन ग्रंथों के अध्ययन से अंतर्मन में साधना का संस्कार होता है । इन ग्रंथों का अध्ययन कर उन्हें कृति में लाना साधना ही है । ऐसा करने से साधकों का उद्धार होगा ।

४. विद्यालय में सिखाते थे, ‘ग्रंथ ही गुरु हैं ।’ तब मुझे इसका अर्थ समझ में नहीं आया । सनातन के ग्रंथ पढने पर उससे ज्ञान प्राप्त हुआ और ‘ग्रंथ ही गुरु हैं’, इसका प्रकर्षता से बोध हुआ ।

५. सनातन के ग्रंथ ज्ञान के भंडार हैं, ज्ञान का सागर हैं; इसीलिए हमारे गुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ज्ञानगुरु हैं । परात्पर गुरुदेवजी ने ही सिखाया है कि ‘ज्ञान के अनुसार कृति एवं आचरण करने पर हमें मोक्षप्राप्ति होगी ।’ अर्थात वही हम साधकों को मोक्ष तक ले जा रहे हैं । वे ही मोक्षगुरु हैं ।’

– पू. रमानंद गौडा, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था, कर्नाटक

     ‘पू. रमानंद गौडाजी के कारण मुझे सनातन के ग्रंथों का महत्त्व ज्ञात हुआ । इसलिए मैं उनका आभारी हूं ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले