संविधान में बालकों के संन्यास लेने पर कोई बंधन नहीं है ! – न्यायालय ने किया स्पष्ट
बेंगलुरू (कर्नाटक) – कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है, कि अल्पायु बालक बाल संन्यासी बन सकता है और उस पर किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती । मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायाधीश सचिन शंकर मकदूम के खंडपीठ ने यह आदेश दिया । १६ वर्षीय अनिरुद्ध सरलतया (अब वेदवर्धना तीर्थ) को उडुपी के शिरूर मठ के मठाधिपति बनाने को चुनौती देनेवाली याचिका, न्यायालय में प्रविष्ट की गई थी । इस पर उक्त निर्णय देकर न्यायालय ने यह याचिका अस्वीकार की ।
Can A Minor Become A Swami? Karnataka High Court To Examine Legality Of ‘Bala Sanyasa’ @plumbermushi https://t.co/I6YQbboEeA
— Live Law (@LiveLawIndia) September 14, 2021
१. न्यायालय ने कहा, कि अन्य धर्मों में, जैसे बौद्धों में छोटे बच्चे भिक्षु बनते हैं, वैसे ही संन्यासी बना जा सकता है । अमुक आयु के व्यक्ति को ही संन्यास लेना चाहिए अथवा दीक्षा लेनी चाहिए, ऐसा कोई भी नियम नहीं है । १८ वर्ष के कम आयु वालों को संन्यास देने से रोका जाए, ऐसा कोई भी कानून नहीं है । धर्मग्रंथ में दी गई जानकारी के अनुसार, धर्म किसी भी व्यक्ति को १८ वर्ष की आयु से पूर्व संन्यास लेने की अनुमति देता है । यह प्रथा गत ८०० वर्षों से चली आ रही है ।
२. बाल संन्यास के विरोध में प्रविष्ट याचिका में कहा गया था, अल्पायु बालक को भौतिक जीवन त्यागने के लिए बाध्य करना, संविधान के अनुच्छेद २१ का उल्लंघन है । अनुच्छेद २१, भारतीय नागरिक को व्यक्ति-स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है ।