हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘अभी भी राममंदिर निर्माण का विरोध क्यों ?’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ परिचर्चा का आयोजन !
पुणे (महाराष्ट्र) – राममंदिर ध्वस्त होने से लेकर अब तक उसके पुनर्निर्माण के अनेक प्रयास हुए । उसके लिए न्यायालयीन संघर्ष किए गए; परंतु उसके उपरांत भी हिन्दुआें को अपमानित करने, उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखने, मूल भूमिपुत्रों को वहां से हटाने, देश के टुकडे करने और प्राचीन संस्कृति का नाश करने के मुख्य उद्देश्य से विरोधियों ने उसका विरोध किया । ५ अगस्त के मुहूर्त के संदर्भ में बोलनेवालों ने हिन्दुआें पर हुए अत्याचारों के संबंध में कभी भी मुंह नहीं खोला है । मुहूर्त में कोई बदलाव नहीं होगा । ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ जैसे अनेक संगठन आज कार्यरत हैं । हिन्दू कभी भी स्वाभिमान से न जी पाएं, यह षड्यंत्र इसी के लिए है; परंतु वह कदापि सफल नहीं होगा । अब हिन्दुआें को आगे बढने के लिए तुरंत कदम उठाने पडेंगे । प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरिजी ने यह मार्गदर्शन किया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से २६ जुलाई को ‘अभी भी राममंदिर निर्माण का विरोध क्यों ?’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ परिचर्चा का आयोजन किया था, उसमें स्वामीजी ऐसा बोल रहे थे । उन्होंने आगे कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ‘अयोध्या को विश्ववंदनीय भूमि बनाऊंगा’, ऐसा कहा है । आज इस उपलक्ष्य में मैं सभी हिन्दुआें को यह संदेश देना चाहता हूं कि हम यदि एक लक्ष्य को सामने रखकर संगठित होकर खडे रहे, तो कुछ भी असंभव नहीं है । अयोध्या निश्चित रूप से विश्ववंदनीय होगी ।’’
राममंदिर निर्माण करोडों हिन्दुआें का धार्मिक अधिकार है । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय होने पर भी वामपंथी विचारधारा के लोग और अन्य हिन्दूविरोधियों द्वारा इस पर विवाद उत्पन्न कर इस कार्य में बाधा उत्पन्न करने का प्रयास चल रहा है । इस पृष्ठभूमि पर इस ‘ऑनलाइन’ परिचर्चा का आयोजन किया गया था ।
इस परिचर्चा में अयोध्या के ‘श्रीराम जन्मभूमि न्यास’ के कोषाध्यक्ष तथा न्यासी प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरिजी, अयोध्या संत समिति के महामंत्री महंत पवन कुमार दास शास्त्रीजी, ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ के प्रवक्ता तथा सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी तथा समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे आदि सहभागी थे । इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से श्री. सतीश कोचरेकर, श्री. सुमित सागवेकर तथा सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने मान्यवरों से प्रश्न पूछे । परिचर्चा में ‘विगत ७०० वर्षों से रामजन्मभूमि को मुक्त करने हेतु किए गए प्रयास तथा अभी भी हो रहा विरोध और इसके लिए भविष्य में भी संघर्ष की आवश्यकता’ के विषय पर उद़्बोधक विचारमंथन हुआ ।
गुलामी का एक भी प्रतीक नहीं चाहिए ! – महंत पवन कुमार दास शास्त्रीजी, महामंत्री, अयोध्या संत समितिश्री अयोध्या में ८ चक्र, ९ द्वार और ३६० मंदिर हैं, जो ध्वस्त हो चुके हैं । आज उनके नाम बदलकर उन्हें मुसलमान शासकों के नाम दिए गए हैं । हम यहां गुलामी का एक भी प्रतीक शेष नहीं रहने देंगे । आज ४ चौकों में से केवल एक ही चौक का ‘रामलला’ नाम शेष है । हमारी अस्मिता के लिए नाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं । अन्य चौकों को प्रशासनिक अधिकारियों के नाम दिए गए हैं । ये सब बदले जाएं, प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरिजी से मैं यह प्रार्थना करता हूं । अयोध्या नगरी चातक की भांति मुक्ति की प्रतीक्षा कर रही है । यहां के प्रशासनिक अधिकारी ही इसमें बाधा बन रहे हैं । राममंदिर निर्माण के पश्चात यह स्थान पर्यटनस्थल न बनकर पौराणिक, आध्यात्मिक और उपासना का स्थान बने; इसके लिए न्यायालय से लेकर मार्ग के सर्वसामान्य व्यक्ति साथ दें, यह मेरा विनम्र निवेदन है । |
हिन्दुआें के मंदिरों का कार्य हिन्दुत्वनिष्ठों के पास ही होना चाहिए !
– रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
राममंदिर का विरोध करनेवाले हिन्दू हैं, ऐसा भले ही ऊपर से लगता हो; परंतु उसके पीछे कार्यरत हाथ अलग ही शक्तियों के हैं । किसी भी हिन्दू ने मस्जिद निर्माण का विरोध नहीं किया; परंतु अभी भी विविध पद्धतियों से राममंदिर का विरोध हो ही रहा है । जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा और राममंदिर के लिए कोरोना का नाम आगे बढाया जा रहा है । सलमान खुर्शीद द्वारा लिखित ‘संस ऑफ बाबर’ पुस्तक का हिन्दू जनजागृति समिति ने तीव्रता से विरोध किया । इस पुस्तक में बाबर और औरंगजेब का उदात्तीकरण करने का प्रयास किया गया था । क्या हम उनके आदर्शों पर चलें ? भगवा आतंकवाद और बौद्धभूमि एक व्यापक षड्यंत्र है, जो आज उजागर हुआ है । विगत ७० वर्षों से अनेक मंदिर नवीनीकरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं । इसके लिए अन्यायकारी विधियां रद्द की जानी चाहिए और हिन्दुआें के मंदिर उन्हीं के नियंत्रण में होने चाहिए ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामजी के आशीर्वाद से ही इस कार्य का आरंभ हो रहा है !
|
दोहरी नीतिवाले न्यायतंत्र को बदलने की आवश्यकता है ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन
अधिवक्ता पराशरन ने पहली बार ‘रामलला’ एक सजीव मूर्ति होने का प्रतिपादन कर उनकी ओर से रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए याचिका प्रविष्ट की । इस पर न्यायालय में निरंतर ८ महीने तक सुनवाई हुई । जहां इस याचिका की प्रविष्टि का ही विरोध किया जा रहा था, वहीं न्यायालय ने यह क्रांतिकारी निर्णय दिया कि जब कोई भी व्यक्ति मंदिर निर्माण का संकल्प लेता है, तब वह संकल्प ही याचिका प्रविष्ट करने और न्याय की मांग करने के लिए पर्याप्त है, आज हम इसकी प्रतीति कर रहे हैं । ऐसा होते हुए भी विरोध किया जा रहा है । मुंबई के साकेत गोखले नामक व्यक्ति ने अयोध्या के विरुद्ध याचिका प्रविष्ट की है । जो बात स्कंदपुराण, यात्रियों द्वारा लिखे गए ग्रंथ और कारसेवकों के बलिदान से संबंधित है और जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध हैं, उसका विरोध किसलिए ? ‘प्लेसेस ऑफ वरशिप’ विधि पूर्णतः संविधान के विरुद्ध है । ‘वक्फ बोर्ड’ किसी भी संपत्ति को अपने नियंत्रण में ले सकता है; परंतु हिन्दू अपने ही मंदिर अपने नियंत्रण में नहीं ले सकते । इस दोहरी नीतिवाले न्यायतंत्र को बदलने की आवश्यकता है ।