‘ऑनलाइन’ ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के चौथे दिवस का सत्र
फोंडा (गोवा) – ‘‘एक ओर देश को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहते हैं, तो दूसरी ओर अनुच्छेद २९ और ३० के अनुसार अल्पसंख्यकों के पुनरुत्थान के लिए अलग-अलग योजनाएं चलाई जाती हैं । केंद्र सरकार द्वारा केवल मुसलमानों के लिए ५ सहस्र करोड रुपए खर्च करना, यह अनुच्छेद २९ और ३० का उल्लंघन नहीं है ?; क्योंकि ‘अल्पसंख्यकों में जैन, सिख और पारसी भी आते हैं, उनका क्या ? संविधान की मूल अवधारणा परिवर्तित किए बिना संविधान में परिवर्तन किए जा सकते हैं । अब प्रत्येक अधिवक्ता को हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में शिलान्यास की शिला अर्थात पत्थर बनना चाहिए ।’’ सर्वोच्च न्यायालय में हिन्दू महासभा के पक्ष में राममंदिर का पक्ष रखनेवाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने ऐसा प्रतिपादित किया । वे ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना की आवश्यकता एवं दिशा’ विषय पर बोल रहे थे । उन्होंने आगे कहा कि
१. वर्ष २०१५ में सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने मद्रास बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में यह मत व्यक्त करते हुए कहा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा संविधान की प्रस्तावना में घुसाए गए ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ दोनों शब्द अनावश्यक थे ।
२. राजनैतिक दल की स्थापना करते समय संबंधित दल के प्रमुख को ‘हम ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ इन तत्त्वों के अनुसार आचरण करेंगे’, यह घोषणापत्र प्रस्तुत करना पडता है; परंतु ऐसा होते हुए भी ‘ऑल इंडिया मजलीस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM)’ दल के संविधान में ‘हमारा दल केवल मुसलमानों के हित में ही कार्य करेगा’, यह स्पष्टता से उल्लेख है ।
३. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने ग्रंथ ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में लिखा है कि ‘देश को पराधीनता की छाया से मुक्त होने के उपरांत हमें सर्वप्रथम पराधीनता के चिन्ह हटाने चाहिए ।’
४. जो मंदिर तोडे गए हैं, उनका पुनरुत्थान करना संवैधानिक अधिकार है ।
हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के कार्य में छत्रपति शिवाजी महाराज की सहायता
करनेवाले मावलों (सैनिकों) की भांति धर्माचरणी और त्यागी होना आवश्यक ! – श्री. रमेश शिंदे
१. संविधान की प्रस्तावना में न्याय एवं समानता के तत्त्वों का उल्लेख है; परंतु ऐसा होते हुए भी भारत सरकार मुसलमानों को हज यात्रा के लिए अनुदान देती है, आंध्र प्रदेश की सरकार ईसाईयों को जेरुसलेम जाने के लिए अनुदान देती है; परंतु देश की किसी भी राज्य की सरकार हिन्दुआें को तीर्थयात्रा करने के लिए अनुदान नहीं देती ।
२. मस्जिद और चर्च का नहीं, अपितु केवल हिन्दुआें के मंदिरों का सरकारीकरण किया जाता है । यह तो सीधे-सीधे भेदभाव है ।
३. वेब सीरीज के माध्यम से हिन्दू धर्म और हिन्दुआें के देवताआें का खुलेआम अनादर किया जा रहा है; परंतु इसके विपरीत ‘मोहम्मद : द मेसेंजर ऑफ गॉड’ फिल्म के प्रसारण के लिए मुंबई के दंगे भडकाने के आरोपी संगठन ‘रजा अकादमी’ द्वारा विरोध दर्शाए जाने पर महाराष्ट्र सरकार इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाती है ।
४. गोरक्षा, धर्मांतरण, लव जिहाद, मंदिर सरकारीकरण जैसी अनेक समस्याएं हैं; परंतु इन सभी समस्याआें का एकमात्र उपाय है ‘हिन्दू राष्ट्र’ !
५. संतों के वचनानुसार वर्ष २०२३ में हिन्दू राष्ट्र आने ही वाला है । अतः आवश्यकता है, हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के कार्य में छत्रपति शिवाजी महाराज के मावलों की भांति धर्माचरणी व त्यागी प्रवृत्ति की !
हिन्दुआें में जागृति लानेवाली हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यक्रमों में
सम्मिलित हों ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति
हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के संदर्भ में जागृति लाने के उद्देश्य से हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘हिन्दू राष्ट्र संपर्क अभियान’ चलाया जाता है । युवा धर्मप्रेमियों को प्रशिक्षित करने हेतु ‘हिन्दू राष्ट्र संगठक कार्यशालाएं’ आयोजित की जाती हैं । संचार बंदी की अवधि में डॉक्टरों, पत्रकारों, अधिवक्ताआें, उद्योगपतियों, शिक्षकों, मंदिर के न्यासी आदि घटकों के लिए समिति द्वारा ‘ऑनलाइन’ बैठकों का आयोजन किया जा रहा है । ‘फेसबुक’, ‘वॉट्स एप’, ‘ट्वीटर’ आदि माध्यमों से प्रतिमाह ‘ऑनलाइन राष्ट्रीय हिन्दू आंदोलन’ किया जा रहा है । साथ ही ‘ऑनलाइन’ विचारगोष्ठी ‘चर्चा हिन्दू राष्ट्र की’ का आयोजन किया गया । इन उपक्रमों में अधिकाधिक हिन्दू सम्मिलित हों ।
‘धर्मनिरपेक्ष’ देश में हिन्दुआें के साथ अलग और अन्य धर्मियों
के साथ अलग न्याय क्यों ? – श्री. विकास सारस्वत, लेखक, आगरा, उत्तर प्रदेश
१. ईसाई और मुसलमान उनके विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा देते हैं; परंतु हिन्दुआें को उनके ही विद्यालयों में धर्मशिक्षा देने की अनुमति नहीं है; क्योंकि देश धर्मनिरपेक्ष है ।
२. हिन्दुआें के मंदिर सरकारीकृत कर उन्हें नियंत्रण में लिया जाता है, तो मस्जिदों व चर्चों का क्या ?
३. देश यदि धर्मनिरपेक्ष है, तो हिन्दुआें के साथ अलग और अन्य धर्मियों के साथ अलग न्याय क्यों ?
४. अखलाख की हत्या होने पर जितनी चर्चा होती है, उतनी चर्चा हिन्दुत्वनिष्ठ चंदन गुप्ता और प्रशांत पुजारी की हत्याएं होने पर होते हुए दिखाई नहीं देती ।
‘ऑनलाइन’ नवम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का पांचवां दिन
मंदिरों की भूमिरक्षा का कानून बनाकर केंद्रीय स्वायत्त
‘धार्मिक परिषद’ गठित करें ! – टी.एन. मुरारी, शिवसेना राज्यप्रमुख, तेलंगाना
फोंडा (गोवा) – आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘एंडोवमेंट एक्ट’ के माध्यम से मंदिरों की संपत्ति हडपना जारी है । मंदिरों की लाखों एकड भूमि गायब हो गई है अथवा कुछ भूमि का उपयोग सरकारी कामों के लिए किया गया है । मंदिर समितियां राजनेताआें के नियंत्रण में हैं । केंद्र सरकार संसद में कानून बनाकर मंदिरों की भूमिरक्षा के लिए केंद्रीय स्वायत्त ‘धार्मिक परिषद’ का गठन करे । इस परिषद में धर्माचार्यों, पीठाधिपतियों, धर्मरक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों, धर्मशास्त्रज्ञों, पुजारियों का समावेश होना चाहिए । ऐसा होने पर मंदिरों में राज्य सरकार का मनमानी हस्तक्षेप नहीं होगा, यह सुझाव तेलंगाना राज्य के शिवसेना प्रमुख श्री. टी.एन. मुरारी ने दिया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित ‘ऑनलाइन’ नवम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ६ अगस्त को ‘मंदिर रक्षा अभियान’ विषय पर उद़्बोधन सत्र में वे बोल रहे थे । उस समय ओडिशा के भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय सचिव श्री. अनिल धीर, नई देहली स्थित ‘इटर्नल हिन्दू फाउंडेशन’ के श्री. संजय शर्मा तथा राजस्थान की ‘वानरसेना’ संगठन के अध्यक्ष श्री. गजेंद्र भार्गव ने भी विचार व्यक्त किए । उत्तरार्ध में ‘मंदिररक्षा’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
मंदिर समितियां युवा पीढी को मंदिरों से जोडें ! – गजेंद्र भार्गव, ‘वानरसेना’, राजस्थान
आज भारत में अनेक मंदिर ऐसे हैं, जिनके आसपास अन्य पंथियों की बस्ती अथवा घर हैं । मंदिर व्यवस्थापन समितियां मंदिरों के केवल भीतरी कामकाज पर ध्यान देती हैं; मंदिर के बाहर क्या स्थिति है, इस ओर ध्यान नहीं देतीं । प्रत्येक व्यक्ति की किसी-न-किसी देवता के प्रति अथवा मंदिर के प्रति श्रद्धा होती है । वह देखकर, युवा पीढी को मंदिरों के कामकाज से जोडने का प्रयत्न करना चाहिए । हनुमान मंदिरों में व्यायामशाला आरंभ कर, युवकों को मंदिर से जोडने का प्रयत्न किया जा सकता है । ऐसा हुआ, तो युवकों में धर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति उत्पन्न होगी । तब, कोई भी आक्रमणकारी मंदिरों की ओर बुरी दृष्टि से देखने का दुस्साहस नहीं करेगा ।