चरखी दादरी (हरियाणा) के बालसाधक मा. योगेश प्रसाद (आयु ९ वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर

मा. योगेश प्रसाद

     चरखी दादरी (हरियाणा) – यहां के सनातन के साधक श्री. रंजीत प्रसाद के पुत्र मा. योगेश प्रसाद (आयु ९ वर्ष) ने ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त किया है । हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी ने ‘ऑनलाइन’ सत्संग में यह घोषणा की । इस ‘ऑनलाइन’ सत्संग में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी की वंदनीय उपस्थिति थी । उन्होंने मा. योगेश की प्रशंसा कर साधना के संदर्भ में साधकों का मार्गदर्शन किया । श्री. रंजीत प्रसाद ने मा. योगेश प्रसाद को भेंटवस्तु दी ।

बालसाधक मा. योगेश प्रसाद की गुणविशेषताएं

१. साधना की लगन : आश्रम में आने पर वह स्वयं अपनी साधना का ब्यौरा एक साधिका को दे रहा था । चूक होने पर वह प्रायश्‍चित भी करता है । उसमें सेवा करने की लगन है । एक सेवा समाप्त होने पर तुरंत आकर दूसरी सेवा के लिए पूछता था । सेवा न मिलने पर उसे बुरा लगता था । साप्ताहिक आश्रमसेवा का नियोजन होने पर उसमें अपना नाम देखकर उसे बहुत आनंद हुआ । आश्रम सेवा का जो समय निश्‍चित है, वह उसी समय सेवा करता था । एक बार सवेरे ही हमारा गंगास्नान करने का नियोजन हुआ, तब उसने पूछा, ‘‘क्या मैं रात को ही अपनी आश्रमसेवा कर सकता हूं ?’’ गुरुदेवजी की कृपा से सेवा में उसकी रुचि-अरुचि नहीं है । उसे जो सेवा बताई जाती है, वह सेवा करता है । गुरुपूर्णिमा की प्रसारसेवा में भी वह उत्साह से जाता है ।

२. तत्त्वनिष्ठता : एक साधक की चूक होने पर उसने विनम्रता से उस साधक को भान करवाते हुए कहा कि ‘‘यह आपकी चूक है, आपने फलक पर लिखी है क्या ?’’ – श्रीमती सानिका सिंह (मा. योगेश की बुआ), वाराणसी सेवाकेंद्र

३. बुद्धिमान : गुरुदेवजी की कृपा से योगेश पढाई में निपुण है और कक्षा में सर्वाधिक अंक अर्जित करता है । उसकी समझने की क्षमता अच्छी है । वह कराटे का एक प्रकार ‘ताईक्वांडो’ सीख रहा है । उसमें उसको राज्यस्तरीय रजत पदक मिला है । प्रश्‍नोत्तर प्रतियोगिता, कथाकथन इत्यादि में भी उसे पुरस्कार मिले हैं । उसके शिक्षक भी उससे प्रेम करते हैं ।

४. कृतज्ञताभाव : जो कुछ भी हो रहा है, वह गुरुदेवजी की कृपा से हो रहा है, इसका उसे भान रहता है ।

५. साधना में रुचि उत्पन्न होना : योगेश को साधना में रुचि है । वह प्रतिदिन ५ माला नामजप, प्रार्थना, कृतज्ञता, स्वसूचना सत्र, कर्पूर-इत्र के उपाय, आवरण हटाना आदि करने का प्रयास करता है । रविवार को होनेवाले भावसत्संग में सम्मिलित होकर स्वयं की अनुभूतियां बताता है । भावसत्संग के सूत्र भी व्यवस्थित बताता है ।

६. प्रामाणिकता : आश्रम में आने पर स्वयं की चूक फलक पर लिखता है । परीक्षा परिणाम आने पर अथवा प्रतियोगिता में उत्तीर्ण होने पर उससे जब मैं कृतज्ञता व्यक्त करने के संबंध में पूछती हूं, तब यदि उसने कृतज्ञता व्यक्त नहीं की हो, तो प्रामाणिकता से बताता है कि उसने कृतज्ञता व्यक्त नहीं की है तथा पूछने के कितने समय पश्‍चात की है, यह भी बताता है ।

७. जन्मदिन पर सात्त्विक भेंट मांगना : उसके जन्मदिन पर मैंने पूछा, ‘‘क्या उपहार चाहिए ?’’ तब वह बोला ‘‘सनातन का पंचामृत साबुन चाहिए ।’’ इस बार घर जाते समय मैं उसके लिए दो साबुन ले गई थी ।

८. त्याग का महत्त्व समझने पर उपहार में दिए हुए साबुन अन्यों को सहजता से दे पाना : मुझे अन्य एक को साबुन देना पडा, तब उसे एक ही साबुन दे पाई । उस समय उसे बहुत बुरा लगा । इस पर मैंने उसे त्याग का महत्व बताया । कुछ समय पश्‍चात दूसरा साबुन भी अन्य किसी को देना पडा, तब उसने वह दे दिया । मैंने उससे पूछा, ‘‘तुम्हें अब बुरा लगा क्या ?’’ तब उसने उत्तर दिया, ‘‘पहला साबुन देते समय मुझे बहुत संघर्ष करना पडा; परंतु आपने त्याग का महत्व बताया, तब दूसरा साबुन देते समय मन का संघर्ष नहीं हुआ ।’’

९. अन्यों की चिंता करना : आश्रम मे एक साधिका का स्वास्थ्य ठीक नहीं था । तब उसने साधिका से पूछा ‘‘मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं ?’’ उस साधिका के मना करने पर उसने उत्तरदायी साधक को साधिका के स्वास्थ्य के संबंध में बताया ।

१०. तत्त्वनिष्ठता : एक साधक की चूक होने पर उसने विनम्रता से उस साधक को भान करवाते हुए कहा कि यह आपकी चूक है, आपने फलक पर लिखी है क्या ?

११. कार्यपद्धति का पालन करना : योगेश आश्रम की कार्यपद्धति का पालन करता था । सेवा समय पर करना, सेवा होने पर चिन्हित करना, समय से भोजन करना, स्वयं के बर्तन धोना आदि कार्यपद्धतियों का वह पालन करता था ।

१२. सीखने की वृत्ति होना : योगेश ने आश्रम में सामग्री पर लिखा हुआ नाम पढकर साधिका को उस संबंध में पूछा । तत्पश्‍चात उसने उपायों की सामग्री पर अपना नाम लिखा । गंगास्नान करने के उपरांत आश्रम लौटते समय हम उसकी मनपसंद खाने की वस्तु लेकर आए थे; परंतु वह सीधा कक्ष में नहीं आया, अपितु पहले अपने साथ लाए गंगाजल की बोतल पर ‘गंगाजल’ लिखकर चिपकाया । उसने उत्तरदायी साधक से पूछा, ‘‘क्या मैं भी सीखने के उद्देश्य से ब्यौरे में बैठ सकता हूं ?’’

१३. स्वभावदोष : मुझे महत्व मिले, कर्त्तापन, अव्यवस्थितपन, मां की बात न सुनना

– श्रीमती सानिका संजय सिंह (योगेश की बुआ), वाराणसी आश्रम (२६.६.२०१९)