‘पूज्य काशीनाथ कवटेकरजी कर्नाटक के प्रसिद्ध शिल्पकारों में से एक हैं । उनका जन्म २ जनवरी १९४४ को शिवमोग्गा जिले के शिकारीपुर में हुआ था । उनके पिताजी का नाम कृष्णराव एवं माताजी का नाम पार्वती बाई था । प्राथमिक शिक्षा के उपरांत उन्होंने अपनी पैतृक परंपरा के अनुसार शिल्पकला पर ध्यान केंद्रित किया । १२ वर्ष की आयु में उन्होंने अपने दादाजी परशुराजप्पा से लोहे एवं शिल्पकला की प्राथमिक शिक्षा ली । उसके उपरांत उन्होंने तमिलनाडु जाकर वहां के प्रसिद्ध मंदिरों के गोपुरम का अध्ययन किया । वर्तमान में वे शिवमोग्गा एवं बेंगलुरु में ‘काशीनाथ कला मंदिर’ गुरुकुल पद्धति की शिक्षा संस्था के माध्यम से शिल्पकला की शिक्षा दे रहे हैं । उनका सान्निध्य मिलने पर भक्तों को आनंद एवं उत्साह का अनुभव होता है । पूज्य गुरुजी की साधना एवं शिल्पकला को दिया उनका योगदान कर्नाटक की शिल्पकला परंपरा में सदैव संस्मरणीय रहेगा । पूज्य काशीनाथ कवटेकरजी की आध्यात्मिक साधना एवं भगवान पर उनकी अपार श्रद्धा के कारण ही सनातन संस्था ने वर्ष २०२३ में उन्हें ‘संत’ घोषित किया ।

विशेष सदर
छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी मावले तथा सैनिकों का त्याग सर्वोच्च है, ठीक वैसे ही आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक धर्म-राष्ट्र की रक्षा के लिए ‘सैनिक’ के रूप मे कार्य कर रहे हैं । उनकी तथा उनके हिन्दू धर्म-रक्षण के संघर्ष की जानकारी देने वाले ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’ इस लेखमाला के द्वारा दूसरो को भी प्रेरणा मिलेगी । इन उदाहरणों से अपने मन की चिंता दूर हो कर उत्साह उत्पन्न होगा ! – संपादक
१. शिल्पकला की ओर कैसे बढें ?
पूज्य कवटेकर गुरुजी को बचपन से ही चित्रकला का वातावरण मिला । तभी से उन्हें चित्रकला से प्रेम हो गया । छोटी आयु में ही मंदिर की मूर्तियां उन्हें आकर्षित करती थीं । वे देवालयों की मूर्तियों में रम जाते थे । शालेय शिक्षा लेते समय काशीनाथ गुरुजी को शिक्षा से अधिक चित्रकला में रुचि थी । वे पाठशाला जाने में टालमटोल करते थे, इसलिए उनके पिताजी ने उनकी पिटाई भी की है । उनके पिताजी को लगता था कि वे पढाई पर अधिक ध्यान दें एवं बहुत पढ लिखकर नौकरी करें । इसके विपरीत उनके दादाजी उन्हें चित्रकला के लिए प्रोत्साहित करते थे । काशीनाथ पाठशाला जाते, तब भी बच्चों को हाथी, तोता आदि चित्र निकालकर दिखाते थे । वे जैसे-तैसे चौथी तक पढे । अंततः उन्हें चित्रकला सीखने दादाजी के पास भेजा गया । उनके दादाजी मूर्तियों को रंग देते थे, उस समय वे उनके पास जाते थे ।
पूज्य गुरुजी की शिल्पकला को ईश्वर का अधिष्ठान !
पूज्य गुरुजी के विषय में बात करते समय उनके शिष्य एवं सहकारी बताते हैं कि वे शिल्पनिर्माण करते समय अपने काम से पूर्णतः एकरूप हो जाते हैं, जो उनकी आध्यात्मिक प्रगति का प्रतीक है । वे मूर्ति बनाने से पूर्व जिस स्थान पर मूर्ति की स्थापना होनेवाली है, वहां जाकर बैठते थे एवं ईश्वर द्वारा प्रेरणा मिलने पर ही उसका प्रारूप बनाते थे । वे भगवान से, ‘मैं निमित्त हूं एवं आप ही मेरे हृदय में बैठकर कृति करवा लीजिए’, ऐसी प्रार्थना करते थे ।
बेंगलुरु में पूज्य गुरुजी ने भगवान शंकर की एक मूर्ति बनाई थी । वह मूर्ति देखकर एक महिला का बहुत भाव जागृत हुआ । उसने बताया कि ‘यह मूर्ति इतनी सुंदर है कि यहां साक्षात शिवजी के ही खडे होने की अनुभूति होती है ।’
उनके दादाजी के पिताजी भी बडे चित्रकार थे । उन्होंने चित्रकला के लिए राजे मुम्मडी कृष्णराज वाडियार से स्वर्ण पदक प्राप्त किया था । ‘उनका चित्र राजा के महल में है, साथ ही उनके द्वारा बनाया गया चित्र लंदन तक भी पहुंच चुका है । इसलिए तुम्हें भी वैसे ही प्रयास करने चाहिए’, उनके दादाजी छोटे काशीनाथ को ऐसा बताते थे ।
दादाजी के प्रोत्साहन से उन्होंने १२ वर्ष की आयु में लकडी पर चित्रकारी (नक्काशी) का काम आरंभ किया । उनके दादाजी दिन में लकडी का काम एवं रात्रि में चित्रकला सिखाते थे । उसी समय वे चांदी का पतरा बनाना सीखे । २० वर्ष की आयु में ही उनमें उत्तम गणेशमूर्ति बनाने का आत्मविश्वास जागृत हुआ; परंतु उन पर लोगों का विश्वास नहीं था । एक दिन उन्होंने चित्र से ६ फुट ऊंची सुंदर गणेशमूर्ति ७ दिनों में बनाई । उसके उपरांत समाज में उन्हें मानसम्मान मिलने लगा । तभी से वे मूर्तिकार हो गए ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति पूज्य काशीनाथ कवटेकरजी का भाव !

‘रथ बनाते समय वह परम पूज्य गुरुदेव से पूछ लीजिए । वे जैसा कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे’, रथनिर्माण में लगे साधकों को वे ऐसा बताते थे । इतना ज्ञान होने के उपरांत भी रथ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को अपेक्षित विष्णुतत्त्व आने के लिए रथ के चित्र में परिवर्तन करने पर वे प्रसन्नता से स्वीकार करते थे ।
पूज्य काशीनाथ कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के लिए काष्ठरथ का निर्माण
पूज्य कवटेकरजी के मार्गदर्शन में बनाया गया काष्ठरथ सप्तर्षियों द्वारा नाडीपट्टी में कहे अनुसार सनातन के साधकों ने पूज्य काशीनाथ कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के लिए काष्ठरथ बनाया । ‘रथ कैसे बनाते हैं ?’, साधकों को इस विषय में कुछ भी जानकारी नहीं थी; परंतु पूज्य कवटेकर गुरुजी द्वारा समय-समय पर किए गए मार्गदर्शन के कारण यह रथ साकार हो सका ।
२. शिल्पकला क्षेत्र में पूज्य कवटेकर गुरुजी का बडा योगदान
कर्नाटक के शिल्पकला क्षेत्र में उनका बडा योगदान है । पत्थर, सीमेंट, चांदी एवं सोने का उपयोग कर शिल्पनिर्माण करने में उनकी कुशलता है । मंदिरों के गोपुरम के निर्माण में भी उन्होंने बडा नाम कमाया है । कुंदापुर स्थित श्री कुंदेश्वर मंदिर, आनेगुड्डे श्री गणपति मंदिर, धर्मस्थल स्थित श्री मंजुनाथस्वामी मंदिर जैसे सैकडों मंदिरों की गुडियों, गोपुरम एवं शिखरों के निर्माण में उन्होंने कला को साकार किया है । पूज्य कवटेकरजी ने सैकडों मंदिरों की गुडियों एवं गोपुरम पर अपनी शिल्पकला की मुहर लगाई । विशेषकर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के निकट स्थित सिद्धबारी में ३५ फुट ऊंची वीर आंजनेय मूर्ति, बेंगलुरु विमानतल मार्ग पर केंपफोर्ट स्थित शिवमूर्ति, नेलमंगला स्थित विश्वशांति आश्रम में १०८ फुट ऊंची गीतोपदेश मूर्ति एवं ४० फुट ऊंचा श्रीकृष्ण का विश्वरूप दर्शन ये उनकी महत्त्वपूर्ण शिल्पकृतियां हैं ।
कन्नड भाषा में पूज्य काशीनाथ कवटेकरजी की शिल्पकला संबंधी दो जानकारीपट (डॉक्यूमेंट्रीज) जिज्ञासु देख सकते हैं –♦ Sri Kashinath.K.Shilpi Documentry Part 1← क्लिक करें♦ Sri Kashinath K Shilpi Documentary Part 2← क्लिक करें |
उनकी सर्वोत्तम कलाकृतियों में से एक है, मुरुडेश्वर में स्थापित १२३ फुट ऊंची ध्यानस्थ शिवमूर्ति । यह मूर्ति विश्व के दूसरे क्रमांक की सबसे ऊंची शिवमूर्ति मानी जाती है । यह मूर्ति उनकी अद्वितीय शिल्पकला का प्रतीक है । गुजरात में ८० फुट के मारुति, चित्रकूट में ५० फुट ऊंची मारुति की मूर्ति इत्यादि मूर्तियां बनाकर उन्होंने सर्वत्र मूर्तिकला की छाप छोडी है । रथ एवं देवताओं के मुखौटे के निर्माण में भी उन्हें बडा अनुभव है । बेंगलुरु में वसंत वल्लभराय मंदिर के लिए १५ फुट ऊंचा रथ, उक्कडगात्रे स्थित करिबसवेश्वर मंदिर के लिए १५ फुट ऊंचा रथ, कापू मरिकांबा मंदिर के लिए सोने का मुखौटा इत्यादि कलाकृतियां बनाने के उनके कुछ अद्वितीय उदाहरण बताए जा सकते हैं ।
पूज्य काशीनाथ कवटेकरजी का संदेश !

कोई भी काम करते समय उसमें भाव, भक्ति, श्रद्धा एवं लगन होनी चाहिए । गुरु की कृपा से ही सब कुछ होता है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मुझे पहचाना एवं आध्यात्मिक बल दिया, उसके लिए उनके चरणों में कृतज्ञता !
३. विविध पुरस्कारों से सम्मानित
शिल्पकला में योगदान के कारण पूज्य गुरुजी को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं । वर्ष १९९८ में ‘कर्नाटक शिल्पकला अकादमी गौरव पुरस्कार’, वर्ष २००४ में ‘अमरशिल्पी जकणाचारी पुरस्कार’, ‘शिल्पकला अकादमी पुरस्कार २०००’, कर्नाटक सरकार द्वारा ‘कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार २०१६’ आदि प्रतिष्ठित पुरस्कारों से उनका सम्मान किया गया ।