पहलगाम में हुए आतंकवादी आक्रमण पर प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत का वक्तव्य !
नई दिल्ली – रावण का वध उसके अपने कल्याण के लिए किया गया था । रावण शिव का भक्त, वेदों का ज्ञाता तथा एक श्रेष्ठ प्रशासक था । रावण अत्यंत गुणी था; किन्तु जिस शरीर, मन तथा बुद्धि को उसने अपनाया, उससे वह अच्छे गुण आत्मसात नहीं कर सका । जिसके कारण उसका वह शरीर, मन और बुद्धि नष्ट कर दिये गये । इसी कारण रावण का वध हुआ । रावण का विनाश हिंसा नहीं, अपितु अहिंसा है । अहिंसा हमारा धर्म है; किन्तु नृशंस धर्मांधों से न पिटना तथा गुंडों को सबक सिखाना भी हमारा धर्म है, ऐसा प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा । वह यहां पहलगाम में हुए आतंकवादी आक्रमण की पृष्ठभूमि पर स्वामी विज्ञानंद की पुस्तक हिन्दू घोषणापत्र’ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे ।
“Killing Ravana was for his welfare — that too was non-violence!” 🚩 — H.H. Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat at #TheHinduManifesto launch.
🕊️ Non-violence is our dharma, but punishing evil is also dharma!
🛡️ United and strong, we will defeat every evil force!… pic.twitter.com/N3vGULS4O6
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) April 27, 2025
सरसंघचालक द्वारा प्रस्तुत सूत्र !
१. अहिंसा भारत का एक मूल्य है । यही भारत का विचार है । हमारी अहिंसा का उद्देश्य लोगों को अहिंसक बनाना है । कुछ लोग अहिंसक बनेंगे किन्तु कुछ नहीं बनेंगे । आप जो भी करें; किन्तु वे कभी अहिंसक नहीं होंगे ।
२. पाश्चात्य विचारधारा में हिंसक तथा अहिंसक दोनों बातें एक साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से कार्य नहीं करतीं । पश्चिम में, जब शत्रु कहता है, “उसे समाप्त कर दो”, तो यह नहीं देखा जाता कि वह अच्छा है अथवा बुरा । हम इसे इस प्रकार देखते हैं कि ‘शत्रु अच्छा है अथवा बुरा ?’ जिससे उनका कल्याण हो सके; इसलिए हम उन्हें दण्ड देकर मुक्त कर देते हैं तथा हम संतुलन बनाए रखते हैं ।
३. हम कभी भी पडोसी देशों का अपमान नहीं करते । हम ऐसा कुछ भी नहीं करते जिससे उन्हें क्षति पहुंचे । यदि कोई व्यक्ति इस पर भी अयोग्य व्यवहार करता ही रहे तो इसके अतिरिक्त दूसरा क्या उपाय है ? राजा का कर्तव्य अपनी प्रजा की रक्षा करना है । गीता अहिंसा का उपदेश देती है । यह उपदेश इसलिए दिया गया था ताकि अर्जुन युद्ध करे और शत्रु का वध करे; क्योंकि उस समय अर्जुन के समक्ष ऐसे लोग थे जिनके उत्कर्ष के लिए अन्य मार्ग था ही नहीं । हमारी भूमिका संतुलन बनाए रखना है । हमें उस संतुलन का विस्मरण हो गया है । हमारा धर्म ही हमें संतुलित रखता है ।