कट्टरवादी विचारधारा की ओर मुड़े ८ सहस्त्र से अधिक युवक-युवतियों को सनातन धर्म में वापस लानेवाले केरल के आचार्यश्री के.आर. मनोज !

आचार्यश्री के.आर. मनोज ने वर्ष १९९९ में सद्गुरु श्री. शंकर गुरुदेव के आशीर्वाद से ‘आर्ष विद्या समाजम्’ की स्थापना की । ‘आर्ष विद्या समाजम्’ यह केरल में तिरुवनंतपुरम में स्थित एक आध्यात्मिक तथा शैक्षिक संस्था है, जो सनातन धर्म के ‘अध्ययन (पद्धति अनुरूप अभ्यास), अनुष्ठान (अभ्यास), प्रचार (प्रोत्साहन), अध्यापन (सिखाना), संरक्षण’ इन पंचकर्तव्यों की पद्धति के अनुसार तथा वैज्ञानिक पूर्ति के लिए प्रयासरत है । ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम् !’ अर्थ : ‘सनातन धर्म द्वारा संपूर्ण जगत् को महान् बनाओ’ इस उद्देश्य से यह संस्था कार्यरत है ।

आचार्यश्री के.आर. मनोज

विशेष लेख

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज हेतु जिस प्रकार उनके सैनिकों एवं सेनापतियों का त्याग सर्वोच्च है, उस प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक हिन्दू धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा हेतु ‘सैनिक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । उनकी तथा हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु उनके संघर्ष की जानकारी देनेवाले ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’ इस लेख द्वारा अन्यों को भी प्रेरणा मिलेगी ! इस उदाहरण से हमारे मन की चिंता दूर होकर उत्साह निर्माण होगा ! – संपादक

संस्थापक तथा मार्गदर्शक

आर्ष विद्या समाजम्, शिवशक्ति योगविद्या केंद्रम्, मनीषा सांस्कारिक वेदी, विज्ञानभारती विद्याकेंद्रम्, विज्ञानभारती एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, विज्ञानभारती चॅरिटेबल ट्रस्ट, आर्ष विद्या समाजम् चॅरिटेबल ट्रस्ट, विश्वभारती चॅरिटेबल ट्रस्ट, विज्ञानभारती लर्निंग सेंटर्स, बौद्धिकम् बुक्स एंड पब्लिकेशन्स, आर्ष ग्लोबल मिशन प्रा.लि., साधना शक्ति केंद्रम्, विज्ञानभारती मासिक

आध्यात्मिक पृष्ठभूमि

छोटी आयु में ही आचार्यश्री के.आर. मनोज को उनके गुरु श्री शंकर गुरुदेव, अत्रेय परंपरा के महा क्रियायोग मार्ग के अवधूत महासिद्धजी से आध्यात्मिक मार्ग की दीक्षा मिली । आचार्यश्री गुरु के सतत् आध्यात्मिक मार्गदर्शन के नीचे रहे । गुरु ने ही उनको ऐतिहासिक क्रांति घटित करने का ध्येय दिया । गुरु के मार्गदर्शन के नीचे आचार्यश्री के.आर. मनोज ने संपूर्ण प्रमुख आर्ष गुरु परंपरा तथा प्रणाली की शिक्षा आत्मसात की । आचार्यश्री ने महर्षि अगस्त्य से आरंभ हुई परंपरा से क्रियायोग का अभ्यास भी किया । यह परंपरा महावतार बाबाजी, श्री लाहिरी महाशयजी, श्री युक्तेश्वर गिरी महाराजजी एवं श्री परमहंस योगानंद के समान गुरुओं की परंपरा है । हिमालय के सिद्धाश्रम परंपरा के श्री सच्चिदानंद परमहंस द्वारा चयनित श्री निखिलेश्वरानंद परमहंसजी से आचार्यश्री मनोज को शक्तिपात दीक्षा प्राप्त हुई है । आचार्यश्री ने छोटी आयु में ही उनकी मां के मामा श्री बोधानंद सरस्वतीजी से ‘हठयोग’ सीखा ।

श्री सत्यानंद सरस्वतजी ने स्थापित किए ‘बिहार स्कूल ऑफ योग’, डॉ. गीतानंद के पांडिचेरी स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय योग शिक्षण तथा अनुसंधान केंद्र’, विष्णुदेवानंदजी इत्यादि ने स्थापित किए ‘वेदांत अंतर्राष्ट्रीय विद्यापीठ’ से शिवानंद योग इस संस्था से योग विद्या अभ्यासक्रमों का अभ्यास भी आचार्यश्री ने किया है । उनके भारत के विविध योग, तंत्र एवं वेदांत गुरुओं तथा आश्रमों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध हैं । आचार्यश्री के.आर. मनोज ने अपना जीवन योग विद्या, अध्यात्म विज्ञान, भारतीय संस्कृति तथा विद्यार्थी उत्कृष्टता के प्रसार के लिए समर्पित किया है । उन्होंने मलयाळम् भाषा में ‘भारत प्रभावम्’ नामक पुस्तक लिखी है ।

आचार्यश्री के.आर. मनोज तथा उनकी संस्था को मिले पुरस्कार

१. वर्ष २०१९ में उनको हिन्दू संसद के आत्मीय सभा की ओर से ‘कर्मरत्न पुरस्कार’

२. ‘शाश्वत सनातन प्रतिष्ठान’ की ओर से वर्ष २०२३ में ‘धर्माचरण’ श्रेणी का ‘अरबिंदो सन्मान’

३. अप्रैल २०२४ में ‘सनातन धर्म परिषद्’ से ‘स्वामी मृडानंद स्मारक आध्यात्मिक पुरस्कार’

४. ‘अणियुर श्री दुर्गा भगवती क्षेत्रम्’ से ‘१०वां श्री चट्टम्पी स्वामी श्री नारायण गुरु प्रथम संगम स्मृति पुरस्कार’

५. धर्म जागरण के लिए १९ मई २०२४ के दिन पुणे में दूसरा ‘अक्षय हिन्दू पुरस्कार’

६. ‘आट्टिंगल करिचियिल श्री गणेशोत्सव मंदिर ट्रस्ट’ तथा ‘श्री गणेशोत्सव समिति’ से संयुक्त रूप से १४ जुलाई २०२४ के दिन, वर्ष २०२४ का ‘गुरु श्रेष्ठ पुरस्कार’

७. केरल के कोलाथूर स्थित ‘गणेश साधना सेवा समिति’ द्वारा ११ फरवरी २०२५ के दिन ‘२०२५ श्री वेळ्ळक्काट्ट गोपाल कुरुप कीर्ति पुरस्कार’

८. इंडियन मार्शल आर्ट्स अकादमी से ‘तीसरे डॅन’ का ‘ब्लैक बेल्ट’ मिला ।

९. वर्ष २०२३ में थाईलैंड के बैंकॉक में हुए तीसरे ‘विश्व हिन्दू कांग्रेस’ में उन्होंने ‘लव जिहाद’ से हिन्दू युवकों का बचाव तथा आर्ष विद्या समाज का महत्त्व’ इस विषय पर भाषण दिया । इस कार्यक्रम के समापन समारोह में स्वामी मित्रानंद ने आचार्यश्री मनोज के ‘लव जिहाद’ के विरोध में कार्य का संज्ञान लेते हुए उनका तथा उनके दल का विशेष सत्कार किया । ‘उत्राटम् तिरुनाल संस्कृति संस्थान’ ने ‘१०वें उत्राटम् तिरुनाल संस्मरण कार्यक्रम’ में धर्म की निःस्वार्थ और अतुलनीय सेवा के लिए आचार्य मनोज को सम्मानित किया ।

१०. ‘आर्ष विद्या समाजम्’ को केरल क्षेत्र संरक्षण समिति ने धर्मरक्षा कार्य में अतुलनीय योगदान देने के लिए ‘माधवजी पुरस्कार २०२४’ से सम्मानित किया ।

देश में रामराज्य अथवा सुशासन स्थापित करने के लिए चल रहे प्रयत्न


‘रामो विग्रहवान् धर्मः ।’ अर्थात् अवतारित पुरुष श्रीराम यह धर्म के मूर्त स्वरूप हैं । उनका ‘रामराज्य’ का सिद्धांत सनातन धर्म के मूलभूत तत्त्वों पर आधारित है । धार्मिक भविष्य के लिए पात्र नेता तथा लोग तैयार करने के लिए आर्ष विद्या समाजम् सनातन धर्म की शिक्षा का प्रसार प्रत्यक्ष तथा ऑनलाइन वर्ग, सामाजिक माध्यम इन माध्यमों द्वारा कर रहा है ।

आर्ष विद्या समाजम् ने सुव्यवस्थित परियोजनाओं द्वारा वर्ष २०४७ तक संपूर्ण भारत में तथा जगत् में रामराज्य स्थापित करने का ध्येय रखा है ।

‘एक कथा प्रत्यावर्तनाची – ओ. श्रुति’ इस पुस्तक का मुखपृष्ठ

आचार्यश्री के.आर. मनोज का उल्लेखनीय कार्य !

आचार्यश्री के.आर. मनोज ने उनके अद्वितीय आध्यात्मिक मार्गदर्शन द्वारा लाखों लोगों को ज्ञान दिया है । कट्टरवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुए ८ सहस्र से अधिक युवक-युवतियों को उन्होंने सनातन धर्म में पुन: प्रवेश कराया है । उसके साथ समाज में धर्म तथा सांस्कृतिक जागृति करनेवाले ३० से अधिक युवकों को उन्होंने सनातन धर्म के ‘पूर्णकालिक प्रचारक’ के रूप में प्रशिक्षित किया है ।

१. ‘लव जिहाद’ के प्रकरणों से युवक एवं युवती को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास

धर्मांतरण के प्रकरणों को संभालने के लिए आर्ष विद्या समाज द्वारा दोहरी रणनीति अपनाई जाती है ।

१ अ. दीर्घकालीन परियोजना (शिक्षा तथा प्रतिबंध)

दीर्घकालीन अभियान के अंतर्गत विभिन्न आयु वर्ग तथा स्तरों के लिए ‘ऑनलाइन’ एवं प्रत्यक्ष इन दोनों पद्धतियों से पद्धति अनुरूप, वैज्ञानिक अभ्यासक्रम उपलब्ध कराए गए हैं ।

१. आध्यात्मिक शास्त्र (सनातन धर्म, अन्य धर्म इनका तुलनात्मक अभ्यास, अन्य तत्त्वज्ञान, तर्कशास्त्र)

२. भारतीय संस्कृति (भारत का खरा तथा अखंड इतिहास, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहलू, स्वतंत्रता संग्राम, प्रमुख व्यक्तित्व, आंदोलन, समकालीन समस्याएं तथा उनका निराकरण)

३. आर्ष योग विद्या (षोडश तत्त्व योग विद्या)

४. विद्यार्थी उत्कृष्टता कार्यक्रम

५. सुदर्शनम् (सभी प्रकार के ‘ब्रेनवॉशिंग’ प्रभावों के विरुद्ध एक प्रभावी वैचारिक उपाय)

६. मृत्युंजयम् (समग्र स्वास्थ्य तथा कल्याण कार्यक्रम)

७. विद्याज्योती छात्रवृत्ति कार्यक्रम

यह अभ्यासक्रम समाज में प्रचलित सभी अपसमझ, प्रश्न तथा झूठी अवधारणाओं को दूर करते हैं एवं सनातन धर्म का खरा ईश्वर दर्शन (तत्त्वज्ञान) तथा जीवन दर्शन (तत्त्वज्ञान) सिखाते हैं । उसके साथ सनातन धर्म का खरा इतिहास, संस्कृति तथा विरासत भी सिखाई जाती है । लोगों को भ्रमित करने के लिए तथा उनका ‘ब्रेनवॉश’ करने के लिए कार्यरत शक्तियों द्वारा उपयोग किए जाने वाली कथाएं तथा फैलाया जाने वाला झूठ व्याख्यानों द्वारा उजागर किया गया ।

‘सनातन धर्म सिखाने के लिए योग्य अभ्यासक्रम तथा प्रणाली का अभाव’ यह हिन्दू समाज की अनेक आंतरिक तथा बाह्य समस्याओं का मूल है । सनातन धर्म पर एक व्यापक अभ्यासक्रम, उसकी मूलभूत शब्दावली यह अपने प्राचीन इतिहास तथा वर्तमान समस्याओं के विषय में जागरूकता निर्माण कर सकेगा । उससे ही स्वाभिमानी तथा उत्तरदायी व्यक्ति निर्माण हो सकते हैं ।

इस्लामी शक्ति युवकों को फंसाने के लिए अनेक प्रकार की जिन पद्धतियों का उपयोग करती हैं, उनमें से ‘लव जिहाद’ एक पद्धति है । अपने अभ्यासक्रमों द्वारा हम विद्यार्थियों का बौद्धिक तथा नैतिक धैर्य विकसित करके उन्हें सक्षम बनाते हैं । इससे युवा पीढ़ी सभी आध्यात्मिक तथा तात्विक विचारधाराओं का गंभीरता से परीक्षण कर सकेगी तथा वे अनुकरण करने योग्य तथा स्वीकार करने योग्य हैं यह निर्धारित कर सकेंगी । वह विचारधारा स्वयं के साथ साथ समाज तथा संपूर्ण मानवता के लिए लाभदायक है क्या ? इतिहास तथा वर्तमान घटनाओं के प्रमाण, उसका स्वयं के वर्तमान तथा भविष्य के जीवन पर, उनकी भावी पीढ़ियों पर, राष्ट्र पर तथा कुल विश्व पर होनेवाले परिणाम, हम उन्हें इस माध्यम से समझाकर बताते हैं । इस पद्धति से उन्होंने सहस्रों युवाओं तथा वृद्ध व्यक्तियों को, महिलाओं को तथा पुरुषों को शिक्षित किया है । परिणामस्वरूप धर्मांतरण रुकेगा तथा ईश्वर की सच्ची संकल्पना तथा सनातन धर्म की उचित शिक्षा दी जाएगी ।

आचार्यश्री के.आर. मनोज (बाईं ओर) को वर्ष २०२३ में ‘धर्माचरण’ श्रेणी का ‘अरबिंदो पुरुस्कार’ दिया गया ।

१ आ. अल्पकालीन उपाय योजना

जिन युवकों ने पहले ही अन्य धर्मों में धर्मांतरण किया है अथवा जिनका विविध प्रकार से ‘ब्रेनवॉशिंग’ हुआ है, उनके लिए आर्ष विद्या समाजम् आध्यात्मिक शास्त्र पर आधारित ‘डी-ब्रेनवॉशिंग’, मतारोपण का विरोध (अँटीइंडॉक्ट्रिनेशन) / ‘डी-रैडिकलायझेशन’ (मूलगामी विचारणाधारणा नष्ट करना) आदि प्रकार का समुपदेशन (काउंसलिंग) प्रदान किया जाता है । यह आध्यात्मिक, वैचारिक तथा मानसिक समुपदेशन की एकत्रित पद्धति है । वैचारिक समुपदेशन यह तर्कशास्त्र के तत्त्वों के अनुसार वाद-विवाद पर आधारित होता है ।

१. सामान्य ज्ञान का उपयोग

२. चर्चा तथा वाद-विवादों में सहभागी होने का उत्साह

३. प्रमाण मिलने पर सत्य स्वीकार करने की सच्चाई

उपरोक्त ३ शर्तें पूरी करने वाले किसी भी व्यक्ति को सत्य का ज्ञान होता है, इसकी निश्चिति आर्ष विद्या समाजम् देता है ।

जो लोग प्रेम संबंधों के कारण धर्मांतरण कर रहे हैं, उन्हें संतुलित भावनात्मक स्थिति में तार्किक चर्चा द्वारा उचित निर्णय तक पहुंच सकें, ऐसा योग्य वातावरण उपलब्ध कराया जाता है ।

आचार्यश्री के.आर. मनोज का युवकों के लिए संदेश

आचार्यश्री के.आर. मनोज


मैं प्रत्येक व्यक्ति से सनातन धर्म के ५ महान् कर्तव्यों का पालन करने का आह्वान करता हूं ।

अभ्यास : स्वअध्याय पद्धति के अनुसार आधारित नियोजनबद्ध रीति से अभ्यास करें ।

अनुष्ठान : किसी भी अनैतिकता, दुर्व्यवहार अथवा दमन बिना सनातन धर्म के तत्त्वों (जीवन सिद्धांत), पद्धतियों (प्रथा) तथा नियमों (सूचना) का पालन करें ।

प्रचार : लोगों के सभी प्रकार के प्रश्न, शंका तथा भ्रम दूर करके खरे सनातन धर्म का प्रचार करें ।

अध्यापन : एक निश्चित अभ्यासक्रम के आधार पर सनातन धर्म का वैज्ञानिक तथा पद्धतिअनुरूप शिक्षा दें ।

संरक्षण : हिन्दू धर्म, ज्ञान, संस्कृति, समाज, राष्ट्र तथा विश्व का सभी प्रकार के आह्वानों से रक्षण करें ।

आर्ष विद्या समाजम् अपने सभी विद्यार्थियों को उनका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक कौशल्य, प्रतिभा, क्षमता तथा बल बढ़ाने में सहायता करेगा तथा उनकी निर्बलता, भय, असुरक्षा इन पर मात करके, आदर्श मानव बनाने के लिए प्रयत्न करता है । सामाजिक दबावों का सकारात्मक पद्धति से सामना करने के लिए सक्षम बनाया जाता है । इससे वे अन्यों के लिए प्रेरणा बनकर सनातन धर्म के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा सकेंगे ।

इस पद्धति से आर्ष विद्या समाजम् ने मार्च २०२५ तक ८ सहस्र से अधिक युवक-युवतियों को उचित मार्ग पर लाने में सफलता प्राप्त की है । सीरिया, अफगानिस्तान तथा इराक यहां ‘मानवी बम’ बने लोगों को उचित मार्ग पर वापस लाकर आर्ष विद्या समाजम् ने सहस्रों परिवारों के साथ समाज, राष्ट्र तथा संपूर्ण जगत को भी बचाया है ।

आर्ष विद्या समाजम ने अब तक १ सहस्र से अधिक लोगों में विविध प्रकार की कट्टरपंथी विचारसरणियों के विरुद्ध लड़ने की क्षमता विकसित की है । सनातन धर्म सीखने के लिए केवल आए हुए ही नहीं, अपितु धर्म का तीव्र विरोध करनेवाले तथा सनातन धर्म का त्याग करना चाहनेवाले भी आज सनातन धर्म का ध्वज फहराते हुए आर्ष विद्या समाजम् के प्रमुख योद्धा बन गए हैं । ३० से अधिक लोग पूर्णकालिक सनातन धर्म के प्रचारक बन गए हैं । उनमें से ४ लोगों ने उनके धर्मांतरण तथा स्वधर्म में वापसी की यात्रा इन अनुभवों पर पुस्तकें लिखी हैं ।

‘ओरु परवर्तनाथिंते कथा – ओ. श्रुति’, ‘इरुलील निन्नू वेलिचत्तीलेक्कू – चित्रा जी. कृष्णन्’, ‘पुनरजनी – संथी कृष्ण’, ‘जन अथिरा- एस्. अथिरा’ यह पुस्तकें मलयाळम् में उपलब्ध हैं । इनमें से ‘स्टोरी ऑफ रिर्व्जन – ओ. श्रुति’, ‘रिबॉर्न’, ‘आय अथिरा’ यह ३ पुस्तकें अंग्रेजी में, ‘एक कथा प्रत्यावर्तनाची – ओ. श्रुति’ यह मराठी में अनुवादित पुस्तक, हिंन्दी भाषा में ‘एक प्रत्यावर्तन की कहानी – ओ. श्रुति’ तथा कन्नड़ में ‘ओंडु परावर्तनेया कथे – ओ. श्रुति’, ‘पुनराजनि – संथी कृष्ण’ यह पुस्तकें उपलब्ध हैं ।

२. समाज को धर्मशिक्षित करने के लिए हाथ में लिए गए उपक्रम

आर्ष विद्या समाजम की सनातन धर्म प्रचार की एक पद्धति है, जिसका उद्देश्य विश्व भर में सनातन धर्म का प्रसार करना है । भारत में तथा विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं द्वारा सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए प्रशिक्षित तथा पात्र व्यक्ति तैयार करके उनकी नियुक्ति की जाती है ।

प्रत्येक घर जाकर शैक्षिक तथा सेवात्मक उपक्रम चलाएंगे तथा प्रत्येक परिवार को सनातन धर्म की महानता दिखाएंगे, ऐसे धर्मप्रचारक निर्माण करना, स्वामी विवेकानंद की इस संकल्पना को आधार मानकर धर्मप्रचारक तैयार किए जाते हैं । यह धर्मप्रचारक हिन्दुओं में ‘धर्मांतरण के संकट तथा उसके दुष्परिणाम तथा निर्माण किया जाने वाला मानसिक प्रभाव’ के विषय में जागरूकता निर्माण करके सावधान करते हैं । विविध भाषाओं में ‘ऑनलाइन’ तथा प्रत्यक्ष पद्धति से सभी अभ्यासक्रमों के प्रचार द्वारा विश्वभर में सनातन धर्म का प्रचार करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं ।

३. हिन्दुओं को धार्मिक शिक्षा के साथ स्वसंरक्षण अथवा अन्य कौशल्य सिखाना

स्वसंरक्षण प्रशिक्षण आर्ष विद्या समाजम् के अभ्यासक्रम का तथा दैनिक दिनचर्या का एक आवश्यक भाग है । सभी विद्यार्थी तथा शिक्षक, महिला-पुरुष, शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य तथा स्वसंरक्षण के लिए प्रशिक्षित हैं । उसमें पारंपरिक तथा आधुनिक दोनों ‘मार्शल आर्ट्स’ का समावेश है ।

– आचार्यश्री के.आर. मनोज

संपादकीय भूमिका

युवा पीढ़ी का बौद्धिक तथा नैतिक धैर्य विकसित किए जाने पर ही वह सभी प्रकार के संकटों का सामना कर सकती है !