सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परीक्षा में मिले अंकों की तुलना में साधना के कारण निर्माण हुए सद्गुण महत्वपूर्ण !

‘परीक्षा में मिले अंकों से एक परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं । इसके विपरीत, साधना से निर्माण हुए सद्गुणों से जीवन की परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं !’


जीवन के आरंभिक काल से साधना करने का महत्त्व !

‘अनेक पति-पत्नी पूरा जीवन लडते-झगडते रहते हैं और आगे बुढापे में उन्हें समझ में आता है कि ‘इस कष्ट का उपाय केवल साधना करना ही है ।’ उस समय ‘पूरे जीवन में कभी साधना नहीं की’, इसका पश्चाताप करने के अतिरिक्त उनके पास कोई विकल्प नहीं होता ।’


शासनकर्ताओं द्वारा साधना न सिखाकर सर्वधर्म समभाव सिखाने का दुष्परिणाम !

‘जनता को साधना सिखाकर उसे सात्त्विक बनाना, शासनकर्ताओं का कर्तव्य है । इसका पालन करने के स्थान पर नेताओं ने जनता को सर्वधर्म समभाव सिखाया । इस कारण सामान्य व्यक्ति अपना धर्म भूल गया और धर्म द्वारा सिखाए नैतिक मूल्य भी भूल गया । इसके परिणामस्वरूप जनता को अनुभव होता है कि अनेक सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हैं ।’


पश्चिमी संस्कृति एवं दर्शन तथा हिन्दू संस्कृति एवं दर्शन !

‘पश्चिमी संस्कृति एवं दर्शन केवल भौतिक एवं सामाजिक विषयों का अध्ययन करते हैं । इसके विपरीत हिन्दू संस्कृति और दर्शन भौतिक एवं सामाजिक विषयों के साथ ही आध्यात्मिक विषयों का अध्ययन करते हैं तथा ईश्वरप्राप्ति के ध्येय के विषय में मार्गदर्शन करते हैं ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले