आज से पढिए विशेष स्तंभ !
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज के लिए जिस प्रकार उनके सैनिकों तथा सेनापतियों द्वारा किया गया त्याग सर्वोच्च है, उस प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ तथा राष्ट्रप्रेमी नागरिक हिन्दू धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा हेतु ‘सैनिक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । धर्मनिरपेक्षतावादी सरकारों से, साथ ही प्रशासन एवं पुलिस से होनेवाला उत्पीडन सहन करते हुए वे निस्वार्थ भावना से केवल राष्ट्र-धर्म की रक्षा के लिए दिनरात संघर्ष कर रहे हैं ।
वर्तमान समय में जहां राष्ट्रविरोधी शक्तियां धर्मनिरपेक्षतावादियों के समर्थन से बलवान होकर हिन्दूविरोधी तथा राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र रच रहे हैं, वहां हमारे मन में ‘आगे जाकर हिन्दुओं का तथा इस राष्ट्र का क्या होगा ?’, इसकी चिंता होती है । उस समय हिन्दुत्व की तथा राष्ट्र की रक्षा हेतु लडनेवाले इन सैनिकों के संघर्ष के उदाहरण पढने से निश्चित ही हमारे मन की चिंता दूर होकर उत्साह आएगा । इसीलिए हम ऐसे सैनिकों की तथा हिन्दू धर्मरक्षा हेतु संघर्ष की जानकारी करानेवाला ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’, यह स्तंभ आज से आरंभ कर रहे हैं । इस माध्यम से भारत में सुराज की स्थापना करने हेतु प्रयासरत सैनिकों की सभी को जानकारी मिलेगी तथा उस परिप्रेक्ष्य में कार्य करने की प्रेरणा भी मिलेगी ! – संपादक
पुणे के लेफ्टनंट जनरल (डॉ.) डी.बी. शेकटकर (सेवानिवृत्त) (आयु ८२ वर्ष) एक अत्यंत सम्मानित तथा अनुभवी सैन्य अधिकारी, वैज्ञानिक तथा नीतिनिर्धारक हैं । उन्होंने ४ दशकों तक भारतीय सेना में सेवाएं दी हैं । उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा नियोजन एवं आतंकवादविरोधी कार्यवाहियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । आज भी वे विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए युवकों के उद्बोधन के लिए प्रयासरत हैं । आज हम उनके विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी जान लेते हैं ।

१. लेफ्टनंट जनरल (डॉ.) डी.बी. शेकटकर (सेवानिवृत्त) के जीवन के महत्त्वपूर्ण चरण
अ. सैनिकी सेवाएं : वर्ष १९६५ में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय (कश्मीर), वर्ष १९७१ के युद्ध के समय (पश्चिमी क्षेत्र) तथा वर्ष १९९९ के कारगिल युद्ध के समय, साथ ही वर्तमान में जिस पर चीन दक्षिणी तिब्बत पर दावा कर रहे हैं, ऐसे अरुणाचल-चीन सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षा के संबंध में व्यवस्थापन का उत्तरदायित्व निभाया था ।
आ. सीमा सुरक्षा : उन्होंने अरुणाचल प्रदेश, म्यांमार, भूटान एवं बांग्लादेश इन कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा के व्यवस्थापन का उत्तरदायित्व निभाया ।
इ. देशविरोधी उग्रवादी गुटों के विरोध में कार्यवाही : असम, नागालैंड, मणीपुर, मिजोरम, त्रिपुरा तथा ईशान्य भारत के अन्य क्षेत्रों में विद्रोहियों के विरुद्ध लडने में बडे स्तर पर काम किया । उन्हें गुजरात एवं उत्तरप्रदेश में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को नियंत्रण करने का अनुभव प्राप्त है ।
ई. ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ एवं आतंकवादविरोधी अभियान : उन्होंने पंजाब में चलाए गए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’में (‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ अर्थात खालिस्तानी आंदोलन के विरोध चलाया गया सैन्य अभियान) में भाग लिया । उसके पश्चात पंजाब में ‘ब्रिगेडियर’ पद पर, कश्मीर में ‘मेजर जनरल’ के पद पर तथा असम एवं ईशान्य भारत के अन्य क्षेत्रों में ‘लेफ्टनंट जनरल’ जैसे विभिन्न पदोंपर कार्य करते हुए आतंकवादविरोधी अभियान चलाए ।
उन्होंने नई देहली के सेना के मुख्य कार्यालय में सैन्य अभियानों में (चीन एवं दक्षिण एशिया से संबंधित) उपमहानिदेशक, अतिरिक्त महानिदेशक तथा रणनीति से संबंधित नियोजन के महानिदेशक के रूप में उत्तरदायित्व निभाया है ।
उ. भारत-चीन एवं भारत-पाकिस्तान के सीमाविवाद पर चर्चा : भारत-चीन सीमाविवाद पर सुंयक्त कार्यंसमूह एवं विशेषज्ञ गुट के वे सदस्य थे । कांग्रेस के तत्कालिन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के कार्यकाल में संपन्न शांति एवं ‘शांति समझौते’ के मसौदा दल के वे सदस्य थे । सीमा से संबंधित सूत्रों पर चीन के साथ हुई चर्चा में उन्होंने भाग लिया है, साथ ही सियाचीन-ग्लेशियर विवाद पर पाकिस्तान के साथ हुई चर्चा में भाग लिया ।
ऊ. रक्षा नीति एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग : लेफ्टनंट जनरल (डॉ.) डी.बी. शेकटकर (सेवानिवृत्त) ने भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग एवं नीतिजन्य भागीदारी के कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
ए. आतंकवाद निर्मूलन : अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में प्रशिक्षित १ सहस्र २६७ आतंकियों को हिंसा का मार्ग छोडकर सामान्य जीवन जीने के लिए बाध्य बनाया । दूसरे विश्वयुद्ध के उपरांत कदाचित यह विश्व कीर्तिमान होगा । इसके कारण धार्मिक मूलतत्त्ववाद की शिक्षा लिए आतंकियों ने हिंसा का मार्ग छोड दिया ।
युवक विभिन्न विषयों का अध्ययन कर अवसर का उपयोग देशकार्य के लिए करें !

राष्ट्र की वर्तमान स्थिति में युवकों का बडा महत्त्व है । वर्तमान समय में हमारे देश की युवापीढी को भारतसहित विभिन्न देशों में बहुत अवसर हैं । युवक विभिन्न शैक्षणिक उपक्रम सीखकर अध्ययन करें । वर्तमान में महाविद्यालयीन शिक्षा लेते समय राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर ध्यान बनाए रखें तथा उससे सीखें । इस शिक्षा से प्राप्त अवसर का उपयोग वे देशकार्य के लिए करें । वर्तमान समय में विश्व में सर्वाधिक विश्वविद्यालय भारत में तथा उसमें भी पुणे में सबसे अधिक हैं । पुणे विद्या का तथा सांस्कृतिक केंद्र है । पुणे में शिक्षा के विभिन्न अवसर तथा विभिन्न प्रकार के महाविद्यालय, साथ ही विश्वविद्यालय हैं, इसीलिए पुणे को ‘सांस्कृतिक एवं विद्या की नगरी’ कहा जाता है । वर्तमान समय में पुणे की भांति गोवा, केरल, कर्नाटक, ओडिशा, उत्तर भारत जैसे क्षेत्रों में विश्वविद्यालयों की स्थापना होना आवश्यक है । आज भी मैं अनेक विश्वविद्यालयों में अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहा हूं । मैं मेरा समय युवकों को शिक्षित करने के लिए दे रहा हूं तथा आगे भी देता रहूंगा । हम सभी मिलकर हमारा राष्ट्र उज्ज्वल बनाने का प्रयास करेंगे !
– लेफ्टनंट जनरल (डॉ.) डी.बी. शेकटकर (सेवानिवृत्त)
२. लेफ्टनंट जनरल (डॉ.) डी.बी. शेकटकर (सेवानिवृत्त) को प्राप्त पुरस्कार एवं सम्मान

अ. भारतीय सेना में निभाए गए विशेषतापूर्ण कार्य के लिए वर्ष १९८१ में उन्हें भारत के तत्कालिक राष्ट्रपति की ओर से ‘विशिष्ट सेवा पदक (वी.एस्.एम्.)’, वर्ष १९९७ में ‘अतिविशिष्ट सेवा पदक (ए.वी.एस्.एम्.)’ तथा वर्ष २००२ में ‘परमविशिष्ट सेवा पदक (पी.वी.एस्.एम्.) इन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ।
आ. कुछ विश्वविद्यालयों ने उन्हें ‘डॉक्टरेट’ (विद्यावाचस्पति) की उपाधि से भी सम्मानित किया है । उन्होंने वाणिज्य शाखा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है तथा रक्षा के विषय में ‘एम्.एस्.सी.) तथा ‘एम्.फील.’ उपाधियां प्राप्त की ।
आ १. इसके साथ ही उन्होंने पुणे के ‘सिंबायोसिसक विश्वविद्यालय’ से व्यवस्थापन शास्त्र में ‘२१ वीं शताब्दी में सफल होने हेतु आवश्यक नेतृत्वगुण’ विषय पर पहली ‘डॉक्टरेट’ उपाधि प्राप्त की ।
आ २. उसके उपरांत उन्होंने ‘रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन’ के अंतर्गत ‘साम्यवाद पर आधारित आतंकवाद तथा भारत की सुरक्षा पर उसका परिणाम’ विषय पर दूसरी ‘डॉक्टरेट’ उपाधि प्राप्त की । पुणे के सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय के ‘रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन’ विभाग के प्रमुख प्रा. विजय एस्. खरे ने उनका मार्गदर्शन किया ।
आ ३. उसके उपरांत ‘सामाजिक माध्यमों के संदर्भ में २१ वीं शताब्दी का मानसिक युद्ध’ विषय में तीसरी ‘डॉक्टरेट’ उपाधि प्राप्त की है । पुणे के सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय ने उन्हें यह उपाधि प्रदान की । ३ डॉक्टरेट उपाधियां प्राप्त करनेवाले संभवतः वे पहले सेना अधिकारी होंगे ।
आ ४. उन्होंने ‘पर्यावरणशास्त्र, हथियार एवं उपकरण’ के विषय में स्नातकोत्तर स्नातक की उपाधि प्राप्त की है ।
३. शैक्षणिक एवं बौद्धिक योगदान
अ. उन्होंने सुरक्षा, आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा एवं बुद्धिमत्ता इन विषयों पर १७ पुस्तकों का सहलेखन किया है । ब्लूमिंग्टैन के ‘इंडियाना विश्वविद्यालय’ के ‘सेंटर फॉर अमेरिकन एंड ग्लोबल सिक्युरिटी’ने अमेरिका में उनका एक पुस्तक प्रकाशित किया है ।
आ. पुणे के सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय के ‘रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन’ विभाग के छत्रपति शिवाजी अध्यासन’ के वे अध्यक्ष एवं प्रमुख प्राध्यापक रहे हैं ।
इ. उन्होंने ‘सिंबायोसिस विश्वविद्यालय’ में प्राध्यापक, साथ ही सलाहकार के रूप में काम किया है । पुणे विश्वविद्यालय के ‘रक्षा एवं नीतिगत अध्ययन’ विभाग में वे अध्यक्ष एवं प्राध्यापक थे, साथ ही उन्होंने सिंबायोसिस विश्वविद्यालय के सलाहकार के रूप में काम किया है ।
ई. आज भी वे भारत के अनेक शिक्षा संस्थानों की सलाहकार समितियों तथा व्यवस्थापक समूहों से संलग्न हैं, साथ ही वे भारत के ‘एकात्मिक सुरक्षा मंच’के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । नई देहली के संयुक्त युद्ध केंद्र के वे प्रतिष्ठित सदस्य हैं । वर्ष २०१९ से २०२४ की अवधि में वे ‘सिक्कीम केंद्रीय विश्वविद्यालय’के ‘कुलपति’ थे ।
उ. उन्होंने भारत सरकार की विशेषज्ञ समिति का (जिसे ‘शेकटकर समिति’ भी कहा जाता है) अध्यक्षपद निभाया । इस समिति के माध्यम से उन्होंने ‘रक्षा व्यवस्थापन सुधार एवं रक्षा अर्थसंकल्प संतुलन’के विषय में अनुशंसाएं की ।
ऊ. ‘फोरम फॉर इंटिग्रेटेड सिक्युरिटी ऑफ इंडिया (फिंस)’के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । वे ‘सेंटर फॉर जॉईंट वॉरफेअर, नई देहली’ के प्रतिष्ठित ‘फेलो’हैं । वे सलाहकार परिषद एवं ‘गवर्निंग काऊंसिल’ में समाहित शिक्षा संस्थानों से संबंधित कार्य कर रहे हैं ।