DAG On MF Husain Paintings : ( और इनकी सुनिये… ) ‘एक हिन्दू की चिंता पूरे हिन्दू समुदाय की चिंता नहीं हो सकती ! ’

  • हिन्दू विरोधी एम.एफ.हुसेन की ईशनिंदा वाली पेंटिंग्स प्रदर्शित करने वाली दिल्ली आर्ट गैलरी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी !

  • ‘कला को समझने के लिए अपने मस्तिष्क का विकास करना सीखें’ जैसा अपमानजनक परामर्श देने का प्रयास

हिन्दू विरोधी एम.एफ.हुसेन

नई दिल्ली – दिल्ली आर्ट गैलरी के अधिवक्ता मकरंद अडकर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में तर्क दिया कि एम.एफ.हुसैन की कथित आपत्तिजनक पेंटिंग पर एक व्यक्ति की आपत्ति को पूरे हिन्दू समुदाय की चिंता के रूप में नहीं देखा जा सकता । कुछ महीने पहले, एम.एफ.हुसेन के हिन्दू देवता के आपत्ती जनक पेंटिंग्ज का प्रदर्शन इस आर्ट गैलरी में आयोजित किया गया था, अधिवक्ता अमिता सचदेवा ने आपत्तिजनक चित्रों की प्रदर्शनी के विरुद्ध याचिका प्रविष्ट कर आर्ट गैलरी के विरुद्ध मामला प्रविष्ट करने की मांग की है । सुनवाई के दौरान आर्ट गैलरी के अधिवक्ता तर्क कर रहे थे ।

अधिवक्ता अडकर ने अपने तर्क में दावा किया कि,

१. ये चित्र ३० दिनों तक आर्ट गैलरी में प्रदर्शित रहे । हजारों लोगों ने चित्र देखे । शिकायतकर्ता (वकील अमिता सचदेवा) को छोड़कर किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई । उनकी चिंताओं को सम्पूर्ण हिन्दू समुदाय की चिंताओं के रूप में नहीं देखा जा सकता । कला को समझने के लिए आपको अपने मस्तिष्क को थोड़ा बड़ा करना होगा । (यह तर्क इसलिए दिया गया है क्योंकि हिन्दू सहिष्णु हैं । यदि यहां अन्य धर्मों का संदर्भ होता, तो क्या तर्क देने वालों के पास कुछ बुद्धि बचती ? – संपादक )

२. हुसैन ने पहले भी देवताओं के नग्न चित्र बनाए थे । उनके विरुद्ध कई शिकायतें थीं । इसके लिए उनसे कभी माफी नहीं मांगी गयी । (इसमें कोई क्षमा नहीं मांगी गई; परंतु हुसैन को देश छोड़कर कतर भागना पड़ा और वहीं उनकी मृत्यु हो गई, यह भी इतिहास है ! – संपादक ) सनातन धर्म के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए । ( क्या दिल्ली आर्ट गैलरी सनातन धर्म के आस्था स्थानों को अपवित्र करना उचित मानती है ? – संपादक )

इस पर न्यायाधीश दास ने पूछा कि क्या किसी कला गैलरी के परिसर में किसी भी प्रकार की सेंसरशिप लागू होती है ।

३. अधिवक्ता अडकर ने उत्तर दिया कि कानून स्व-सेंसरशिप लागू करता है । कोई भी अश्लील चित्र बनाकर बैग में डाला जा सकता है; लेकिन जैसे ही यह बैग से बाहर आता है, यह सार्वजनिक हो जाता है, यहीं समस्या है । मैं कह रहा हूं कि मेरे देवताओं (हिंदू देवताओं) को छोड़ दो । क्या हम यह मान सकते हैं कि जिस व्यक्ति ने दीवार पर चित्र बनाया था, उसे इसके परिणामों का पता नहीं था ?

इसके बाद न्यायाधीश दास ने मामले की सुनवाई २१ अप्रैल तक स्थगित कर दी ।

क्या है मामला ?

४ दिसंबर, २०२४ को दिल्लीआर्ट गैलरी, कनॉट प्लेस, दिल्ली में एम.एफ.हुसेन की पेंटिंग्ज का प्रदर्शन आयोजित किया था । इसमें आपत्तिजनक चित्र भी सम्मिलित थे । इस मामले में अधिवक्ता अमिता सचदेवा ने थाने में शिकायत प्रविष्ट कराई है । इसकी जानकारी मिलने पर आर्ट गैलरी ने आपत्तिजनक पेंटिंग को प्रदर्शनी से हटा दिया और दावा किया कि इसे कभी प्रदर्शित नहीं किया था । इसके बाद सचदेवा ने पटियाला हाईकोर्ट में याचिका प्रविष्ट की । उन्होंने अपराध की रिपोर्ट करने से मना कर दिया; हालांकि, आपत्तिजनक चित्रों को जब्त करने का आदेश जारी किया गया । इसे चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका प्रविष्ट की गई है तथा केस प्रविष्ट करने की मांग की गई है ।

संपादकीय भूमिका

  • ऐसी असभ्य तथा हिन्दू विरोधी आर्ट गैलरी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए । एक हिन्दू देश में रहते हुए हिन्दू देवताओं के अपमानजनक चित्र प्रदर्शित करके हिन्दुओं की आलोचना करने का आपका साहस कैसे हुआ ?
  • सहिष्णु और न्यायप्रिय होने के कारण, हिन्दू विरोध करने के लिए वैध साधनों का उपयोग करते हैं । अगर यहां मुसलमान होते और उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होतीं तो क्या यह आर्ट गैलरी बची रहती ? उनके पदाधिकारियों को ‘सर तन से जुदा’ की धमकियां मिलतीं !