तेजस्वी रूप में प्रकट हुए ज्योतिर्लिंग !

१२ ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के कुछ चुनिंदा ज्योतिर्लिंग !

  • श्री केदारनाथ, उत्तराखंड
  • श्री भीमाशंकर, पुणे, महाराष्ट्र
  • श्री नागेश्वर, औंढा नागनाथ, महाराष्ट्र
  • श्री त्र्यंबकेश्वर, नाशिक, महाराष्ट्र

भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग विख्यात हैं । सहस्रों लोग ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए इकट्ठा होते हैं । ‘ज्योतिर्लिंग’’ शब्द का अर्थ है ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ अर्थात ही ‘व्यापक प्रकाश’ !

तैत्तिरीय उपनिषद में ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार तथा पंचमहाभूत, इन १२ तत्त्वों को ‘१२ ज्योतिर्लिंग’ माना गया
है । ‘अरघा’ यज्ञवेदी का दर्शक तथा ‘लिंग’ यज्ञ की ज्योति अर्थात यज्ञशिखा का प्रतीक है । भारत में १२ शिवस्थान अर्थात १२ मुख्य ज्योतिर्लिंग हैं, जो तेजस्वी रूप में प्रकट हुए हैं ।

ये १२ ज्योतिर्लिंग अर्थात प्रतीकात्मक रूप में शरीर है । काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंगों का मस्तक है । ‘दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज शिवजी के अधिपत्य में होते हैं; इसलिए दक्षिण दिशा को शिवजी की दिशा मानी जाती है । ‘अरघा’ का स्रोत यदि दक्षिण दिशा में हो, तो वह ज्योतिर्लिंग दक्षिणाभिमुख होता है तथा ऐसे ज्योतिर्लिंग अधिक शक्तिशाली होते हैं । उज्जैन के भगवान महाकालजी का शिवलिंग इसी प्रकार दक्षिणाभिमुख है । सभी शिवमंदिर दक्षिणाभिमुख नहीं होते ।

ज्योतिर्लिंगों का महत्त्व !

     संत जब समाधि लेते हैं, उसके उपरांत उनके द्वारा सूक्ष्म से अधिक मात्रा में कार्य होता है । संतों द्वारा देहत्याग करने के उपरांत उनकी देह से प्रक्षेपित चैतन्यतरंग अर्थात ही सात्त्विक तरंग अधिक मात्रा में होते हैं । जिस प्रकार संतों की समाधि भूमि के नीचे होती है, उस प्रकार ज्योतिर्लिंग अथवा स्वयंभू लिंग भूमि के नीचे होते हैं । अन्य शिवलिंग की तुलना में इन शिवलिंगों में निर्गुण तत्त्व अधिक मात्रा में होता है; उसके कारण उनसे निर्गुण चैतन्य तथा सात्त्विकता का अधिक मात्रा में निरंतर प्रक्षेपण होता है । इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी का वातावरण निरंतर शुद्ध होता रहता है । ज्योतिर्लिंग तथा संतों की समाधि से पाताल की दिशा में चैतन्य एवं सात्त्विकता का निरंतर प्रक्षेपण होता है । इसके कारण अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से पृथ्वी की रक्षा होती है ।

– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति


नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर तथा उसकी पुण्यकारी यात्रा !

काठमांडू (नेपाल) में स्थित शिवलिंग को ‘पशुपतिनाथ’ कहा जाता है । पशुपतिनाथजी ने महिष का (भैंसे) का रूप धारण किया था, ऐसी मान्यता है । केदारनाथ (हिमालय) भैंस का शरीर तथा पशुपतिनाथ को मस्तक माना गया है । यह शिवलिंग स्वयंभू है । पशुपतिनाथजी शिवलिंग ४ हाथ ऊंचाईवाला है । उसपर चतुर्मुखी शिवलिंग है । उन चारों चेहरों पर मुखौटे लगाए गए हैं । ‘मध्य का मुख पांचवां मुख है’, ऐसा माना जाता है । (ये पांच मुख पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश, इन पंचमहाभूतों से संबंधित हैं, ऐसा माना जाता है । – संकलनकर्ता)

नेपाल के राजा के कुलदेवता पशुपतिनाथजी की प्रतिदिन तीन बार पूजा-अर्चना की जाती है । अभिषेक के उपरांत देवता के मस्तक पर स्थित श्रीयंत्र की पूजा होती है । प्रत्येक पूर्णिमा के दिन मंदिर में विशेष पूजा की जाती है । श्री गुह्येश्वरीदेवी पशुपतिनाथजी की पत्नी हैं । उनका मंदिर मुख्य मंदिर के पास है । पशुपतिनाथजी का समावेश १२ ज्योतिर्लिंगों में न होते हुए भी पशुपतिनाथजी की यात्रा अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है ।

– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
  • बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।