NEERI Research On River Ganga : प्रयागराज महाकुंभ मेला में आए ४६ कोटि श्रद्धालुओं के स्नान करने पर भी गंगा नदी शुद्ध !

  • राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्था अर्थात् ‘नीरी’ द्वारा किए गए शोध का निष्कर्ष !

  • गंगा नदी के जल में जीवाणु भोजी ‘बैक्टीरियोफेज’ मिले ।

  • अनेक वर्षों तक संचित रखा गंगाजल दूषित नहीं होता !

नागपुर – महाकुंभ में अबतक ४६ कोटि श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं । इसमें प्रतिदिन लाखों लोगों की संख्या जुडती जा रही है । फिर भी, गंगा नदी का जल अशुद्ध नहीं हुआ । इस विषय में शोध नागपुर की संस्था ‘नीरी’ (‘राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्था’) के वैज्ञानिकों ने किया है । यह शोध करते समय यह देखा गया कि करोड़ों लोगों के स्नान करने पर भी, कुछ समय पश्चात गंगा नदी का जल पुनः अपने मूल स्वरूप में आ जाता है । अर्थात, गंगा नदी में स्वयं को स्वच्छ करने की क्षमता है । स्नान स्थल से ५ किलोमीटर दूर तक गंगा नदी का जल शुद्ध और स्वच्छ दिखाई दे रहा है । जहां लोग स्नान करते हैं, वहां गंगा का जल ३ – ४ दिन शुद्ध रहा । यहां संक्रामक रोग कभी नहीं फैलता । गंगाजल अनेक वर्ष संचित रखने पर भी, दूषित नहीं होता ।

१. ‘नेशनल मिशन फॉर क्लिन गंगा’ के अंतर्गत गंगाजल पर शोधकार्य ‘नीरी’ संस्था को सौंपा गया था । लगभग २ वर्ष तक नीरी ने २ हजार ४०० किलोमीटर तक बहने वाली गंगा नदी के जल पर ३ चरणों में शोध किया । गंगा नदी के उद्गम स्थान गोमुख से हरिद्वार, हरिद्वार से पाटलिपुत्र और पाटलिपुत्र से जाफरनगर (बंगाल) ये तीन चरण थे । इनमें से गोमुख से हरिद्वार इस प्रथम चरण में गंगा नदी में ३ प्रमुख घटक पाए गए । इससे गंगा नदी का बहता जल केवल गंगा नदी में शुद्ध नहीं रहता, उसे घर लाकर रखने पर भी कभी खराब नहीं होता ।

२. शोध की अवधि में गंगा नदी के ५० से अधिक स्थानों पर परीक्षण किए गए । वैज्ञानिकों के दल को गंगा नदी के जल में जीवाणु भोजी ‘बैक्टीरियोफेज’ मिले । ये ऐसे विषाणु होते हैं, जिनमें रोग फैलाने वाले विषाणुओं को खाकर समाप्त करने का गुणधर्म होता है ।

३. ‘नीरी’ के वैज्ञानिकों को गंगा नदी के जल में घुला हुआ प्राणवायु (ऑक्सीजन) भी मिला, जो लगभग शुद्धीकरण के निचले तल तक था । इसके अतिरिक्त, गंगा नदी के जल में २० मिलीलीटर तक प्राणवायु पाया गया है । वैज्ञानिकों को इस जल में ‘टर्पीन’ लवण का ‘फाइटोकेमिकल’ भी मिला । गंगाजल के प्राकृतिक शुद्धीकरण में इन ३ घटकों की प्रमुख भूमिका है ।

संपादकीय भूमिका

पवित्र गंगा नदी के विषय में अज्ञान पालने वालों की आंखें अब अवश्य खुलेंगी ऐसी आशा है ! फिर भी, अन्य प्रकार से गंगा नदी को दूषित करने वाले घटकों को रोकने का प्रयास करना आवश्यक है ।