नई देहली – मंदिर तथा उनकी धनदौलत की सुरक्षा की चिंता करना आवश्यक है, सर्वोच्च न्यायालय केमुख्य न्यायाधिपति संजीव खन्ना की अध्यक्षता में खंडपीठ ने ऐसा कहा है । केरल ओअचिरा मंदिर व्यवस्थापन के विवाद के विषय में एक याचिका पर ३ दिसंबर को सुनवाई करते समय उन्होंने यह टिप्पणी की । सर्वोच्च न्यायालय नेे मंदिर के कार्यक्षम प्रशासन के लिए तथा व्यवस्थापन समितियों के चुनाव के लिए प्रशासक के रूप में केरल उच्च न्यायालय के एक निवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति की । मंदिर प्राचीन तथा अद्वितीय होने की वस्तुस्थिति पर सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर रूप से ध्यान केंद्रित किया।
१. केरल के कोल्लम जिले का ओअचिरा मंदिर देश का इस प्रकार का एकमात्र मंदिर है जिसमें गर्भगृह तथा मूर्ति दोनों नहीं है । इस मंदिर में परमब्रह्म की पूजा की जाती है ।
२. इस मंदिर की ओर से अनेक चिकित्सालय तथा विश्वविद्यालय चलाए जाते हैं ।
३. इस मंदिर के व्यवस्थापन के विषय में विवाद है । मंदिर के नियमाें के अनुसार उसका नियंत्रण ३ स्तरों पर अलग-अलग समितियों द्वारा किया जाता है ।
४. वर्ष २००६ में मंदिर के व्यवस्थापन के विरोध में कनिष्ठ न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट (दाखिल) किया गया था । इस पर न्यायालय ने निर्णय देते समय कहा था कि सभी पक्षों को मंदिर व्यवस्थापन हेतु एक योजना सिद्ध करनी चाहिए ।
५. मंदिर के पुश्तैनी सदस्य कनिष्ठ न्यायालय के इस निर्णय के विरोध में उच्च न्यायालय पहुंचे । उच्च न्यायालय ने वर्ष २०१० में केरल उच्च न्यायालय के एक निवृत्त न्यायाधीश की मंदिर के प्रशासक के रूप में नियुक्ति की ।
६. तत्पश्चात वर्ष २०१७ में इस मंदिर का प्रतिदिन काम संभालनेवाली समिति का चयन किया गया । वर्ष २०२२ में उच्च न्यायालय ने एक आदेश द्वारा इस समिति को विसर्जित कर दूसरी समिति स्थापित की गई । इस चुनाव प्रक्रिया के विरोध में दो चुन कर आए प्रतिनिधि सर्वोच्च न्यायालय मेंं गए ।
७. सर्वोच्च न्यायालय ने इस संपूर्ण प्रकरण की सुनवाई की । सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश के. रामकृष्णन् को मंदिर के प्रशासक के रूप में नियुक्त किया तथा आदेश में कहा कि प्रशासक रामकृष्णन् ४ महीने में चुनाव का आयोजन करेंगे एवं न्यायिक पद्धति से मंदिर का प्रशासन चलाएंगे ।