भगवत गीता पढ़ाने के विरुद्ध याचिका निरस्त !
कर्णावती (गुजरात) – भगवद गीता किसी भी धार्मिक सिद्धांत का समर्थन नहीं करती है । भगवद गीता की शिक्षा, ‘फल की आशा किए बिना कर्म करने में विश्वास करना चाहिए’, एक मौलिक नैतिक सिद्धांत है। गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा है कि स्कूलों में भगवद गीता पढ़ाना नैतिकता सिखाने के समान है। गुजरात उच्च न्यायालय ने विद्यालयों में भगवद गीता पढ़ाने के राज्य सरकार के अभी के निर्णय के विरुद्ध ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ द्वारा प्रविष्ट एक जनहित याचिका पर उपरोक्त निर्णय सुनाया है। गुजरात उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और प्रणव त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि भगवद गीता की शिक्षा के विरुद्ध जनहित याचिका केवल एक ‘प्रचार’ और एक ‘स्टंट’ है और कुछ नहीं।
गुजरात राज्य विधानसभा ने फरवरी २०२४ में राज्य में कक्षा ६ से १२ तक के बच्चों को भगवद गीता के सिद्धांतों, श्लोकों और प्रार्थनाओं को पढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। इसके बाद राज्य सरकार ने विद्यालयों में भगवत गीता पढ़ाने का निर्णय लिया था । इसके विरुद्ध कोर्ट में याचिका प्रविष्ट की गई थी ।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, सभी धर्मों के सिद्धांतों को धर्मनिरपेक्षता की भावना से स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। ये सिर्फ एक धर्म पर आधारित नहीं होने चाहिए । उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस दलील से असहमति जताई कि सरकार के निर्णय का कोई धार्मिक रंग है । साथ ही, नई शिक्षा नीति एक समय में एक ही स्रोत से पढ़ाने पर रोक नहीं लगाती है, मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल ने कहा।