ऋषिकेश (उत्तराखंड) की हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला द्वारा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का किया विश्लेषण यहां दे रहे हैं । पाक्षिक के २१ वें अंक में प्रकाशित लेख में हमने ‘सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के बाएं हाथ की रेखाओं का विश्लेषण’ पढा । आज हम यहां इस लेख का अंतिम भाग दे रहे हैं –
(भाग २)
भाग १ पढने के लिए क्लिक करें : https://sanatanprabhat.org/hindi/109937.html
१ ऊ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी पर ईश्वर की कृपादृष्टि होना : उनके बाएं हाथ की सूर्यरेखा उनपर ईश्वर की कृपादृष्टि दर्शाती है । पिछले जन्म में उन्हें धन, प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि प्राप्त होने के कारण उनका जीवन अच्छे स्तर का था । उनकी सूर्यरेखा अखंड है तथा उससे एक शाखा निकली है । यह सूर्यरेखा डॉ. पिंगळेजी में युक्त २ कौशल दर्शाती है । इसके कारण उन्हें २ स्रोतों से लाभ मिलता है । (‘विगत २० वर्षाें से गुरुदेवजी की कृपा ही हमारी संपत्ति है ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
१ ए. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी को शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की हृदयरेखा जहां समाप्त होती है, वहां त्रिशुल का एक चिह्न है । यह उनमें शिवजी की ऊर्जा तथा शिवजी की विशेषताएं विद्यमान होने का प्रतीक है । उन्हें शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त था, साथ ही शिवजी उनके मार्गदर्शक थे ।
१ ऐ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का विचारक, अनुभवी एवं परिपक्व व्यक्तित्व : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की मस्तकरेखा तीक्ष्ण एवं स्पष्ट होने के कारण उनके विचारों में स्पष्टता है, उनकी स्मृति प्रबल है । उनका व्यक्तित्व विचारक, अनुभवी एवं परिपक्व है । उनकी मस्तकरेखा भले ही तीक्ष्ण हो, तब भी उसकी लंबाई अल्प है । इससे समझ में आता है कि ‘वे आवश्यकता के अनुसार अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं ।’ उनकी हृदयरेखा मस्तकरेखा की अपेक्षा अधिक स्पष्ट होने के कारण वे भावना के स्तर पर निर्णय लेते हैं । उसके कारण लोग उनसे जुडे हुए हैं । लोग उनका सम्मान करते हैं तथा उनसे प्रेम करते हैं ।
(‘जिस समय कोई व्यक्ति मुझे प्रश्न पूछता है, उसी क्षण मेरे मन में उस प्रश्न का उत्तर प्रकट होता है । मैं सदैव गुरुदेवजी की इस कृपा का अनुभव करता हूं । उस उत्तर से मुझे एक नया सूत्र सीखने को मिलता है तथा अन्यों के लिए भी वह नया होता है । ‘गुरुदेव अंतर्मन से मेरा मार्गदर्शन करते हैं’, इसे मैंने सदैव अनुभव किया है । मैं शरणागत भाव से उनके पावन चरणों से एकरूप होने का प्रयास कर रहा हूं ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
१ ओ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का पिछले जन्म का जीवन परिपूर्ण होना : उनके बाएं हाथ की जीवनरेखा दीर्घ एवं तीक्ष्ण है, साथ ही जीवनरेखा से अनेक छोटी रेखाएं ऊपर की दिशा में जा रही हैं । इससे यह ध्यान में आता है कि उनके पिछले जन्म का जीवन परिपूर्ण था । वे उत्साही एवं दीर्घायु थे । वे आसपास की परिस्थिति से संतुष्ट थे ।
(‘गुरुदेवजी के चरणों में पहुंचने के उपरांत मुझे संतुष्टि है तथा मुझे स्थिर लगता है ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
१ औ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी में विभिन्न कौशल्य एवं अंतर्ज्ञान होना : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के हाथ की बुधरेखा भाग्यरेखा से उदित हुई है । यह दर्शाता है कि सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी को विभिन्न कौशल तथा अंतर्ज्ञान का वरदान प्राप्त है, साथ ही उनकी कल्पना शक्ति भी प्रबल है ।
(‘साधना में मैंने इसे अनुभव किया है; इसलिए गुरुदेवजी के पावन चरणों के प्रति मेरी श्रद्धा अधिकाधिक सुदृढ हो रही है ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
१ अं. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की उंगलियों का विवेचन
१. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ का अंगूठा लचीला है । वे भले ही सभी का सुन लेते हैं; परंतु स्वयं वे प्रत्येक कृति का आंकलन कर उसके अनुसार ही करते हैं ।
(‘साधना के अतिरिक्त उनकी इच्छा के अनुसार मेरे लिए कुछ भी करने की अनुमति मैंने उन्हें दे रखी थी । वर्तमान समय में मैं सनातन के आश्रम में मुझे मिली साधना की शिक्षा तथा सनातन संस्था के मार्गदर्शन के अनुसार आचरण कर रहा हूं ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२. उनके अंगूठे का ऊपरी भाग उनकी प्रबल इच्छाशक्ति को दर्शाता है ।
३. उनके अंगूठे के निचले (तीसरी) भाग में बूटी होने के कारण वे अपने जीवनसाथी से पूर्णतया संतुष्ट हैं ।
(‘जी हां ! मैं केवल संतुष्ट ही नहीं, अपितु मेरी पत्नी द्वारा सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की कृपा से ‘गुरुकृपायोग’ के अनुसार साधना आरंभ करने पर, मुझे कृतज्ञता लगी ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
४. उनके बाएं हाथ की उंगलियों के मध्य की बूटियां उनमें विद्यमान हाथ में लिए हुए कार्य को पूर्णता की ओर ले जाने की शक्ति दर्शाती हैं ।
(‘मुझमें विद्यमान ‘हाथ में लिया हुआ कार्य पूर्ण करने की क्षमता’ तथा अन्य सर्व विशेषताएं गुरुदेवजी की कृपा के फलस्वरूप ही हैं । उससे पूर्व मेरे व्यावहारिक जीवन में ‘मुझे कोई वस्तु खरीदने के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है’, इसलिए मैंने कभी सब्जी अथवा स्वयं के लिए एक ‘शर्ट’ भी नहीं खरीदी थी ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
१ क. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के द्वारा प्रत्येक कृति समर्पित भाव से करना : कुल मिलाकर सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ का विचार किया जाए, तो वे परिश्रमी, व्यवहारिक आचरण करनेवाले हैं तथा उनमें अच्छी निर्णयक्षमता है ।
(‘मेरे विवाह से पूर्व मेरे माता-पिता ही मुझसे संबंधित सभी निर्णय लेते थे तथा विवाह के उपरांत कुछ मात्रा में मेरी पत्नी निर्णय लेती थीं । उसके कारण मुझमें निर्णय क्षमता अल्प थी; परंतु गुरुदेवजी की कृपा से मुझे चरणबद्ध पद्धति से केंद्रसेवक, जिलासेवक, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का संपादक इत्यादि दायित्व लेने पर मुझमें निर्णय लेने की क्षमता निर्माण हुई । अब भी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के माध्यम से गुरुदेव मुझे सिखा रहे हैं ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
उनका व्यक्तित्त्व पारदर्शी है । वे प्रत्येक कृति समर्पणभाव से करते हैं । वे आनंदमय जीवन जी रहे हैं । ईश्वर के साथ एकरूप होने के लिए जीवन एक सीखने की प्रक्रिया है, इसका उन्हें पूर्ण भान है ।
२. सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के दाएं हाथ की रेखाओं का विश्लेषण
व्यक्ति के दाहिने हाथ से उसके वर्तमान जन्म का बोध मिलता है । ‘वर्तमान जन्म में कोई व्यक्ति उसकी क्षमता का कैसे उपयोग करता है ?, वह स्वयं की कमियों को कैसे दूर करता है ? उसकी आध्यात्मिक यात्रा कैसी चल रही है ? उसे किन समस्याओं का सामना करना पड रहा है ?’ इत्यादि बातें दाहिने हाथ की रेखाओं से जानी जा सकती हैं ।
२ अ. पिछले जन्म की तुलना में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के वर्तमान जन्म का जीवन अधिक अच्छा होना : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के दाहिने हाथ की रेखाओं का अध्ययन करने पर यह समझ में आता है कि पिछले जन्म की तुलना में उनके इस जन्म का जीवन अधिक अच्छा है । वे उचित ढंग से अपनी क्षमताओं का उपयोग कर रहे हैं, साथ ही वे स्वयं की कमियां दूर करने का प्रयास कर रहे हैं । (‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के मार्गदर्शन में मेरी साधना हो रही है । ‘वह और अधिक तीव्रता से होनी आवश्यक है’, ऐसा मुझे लगता है ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी) उनके अनेक संस्कार विलुप्त हो गए हैं; परंतु अभी भी वे समूल नष्ट नहीं हुए हैं ।
२ आ. वर्तमान जन्म में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी की साधना विलंब से आरंभ होना : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के दाहिने हाथ पर दो भाग्य रेखाएं (अध्यात्म रेखाएं) हैं । उनमें से एक भाग्य रेखा उनके प्रारब्ध के कारण है तथा दूसरी उनके क्रियमाण के कारण (साधना के कारण) उभरकर आई है । एक भाग्य रेखा शिवजी से तथा दूसरी भाग्य रेखा शक्ति से प्राप्त हुई है । भाग्य रेखाओं का अध्ययन करने पर ‘इस जन्म में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी की साधना विलंब से (आयु के ३८ वें वर्ष में) आरंभ हुई है’, ऐसा समझ में आता है । (‘मेरी आयु के २८-२९ वें वर्ष में मेरी साधना आरंभ हुई ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी) आयु के ३८ वें वर्ष के उपरांत कोई विशेष घटना होने से उनके जीवन में नया मोड आया होगा । (‘इसके कारण थे, व्यवहारिक जीवन के प्रति आरंभ से ही विरक्ति तथा मेरे जीवन में सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का प्रवेश !’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी) उनके पिछले जन्म की साधना तथा शिव-शक्ति के आशीर्वाद से ऐसा हुआ । पिछले जन्म में उनकी खंडित साधना यात्रा इस जन्म में पुनः आरंभ हुई । गुरुदेवजी के आशीर्वाद के साथ ही सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के ‘प्रयास, लगन तथा दृढ निश्चय’ ही इसके कारण हैं ! (‘मुझे ऐसा लगता है कि प्रत्येक जन्म में मैं गुरुदेवजी की सेवा में था ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२ इ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी द्वारा ‘स्वयं को अर्धनारीश्वर’ की भांति संतुलित रखना : उनके दाहिने हाथ की हृदय रेखा अखंड, स्पष्ट तथा घनी है तथा अंत में उसमें ‘त्रिशूल’ का आकार है । यह उन्हें शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त होने का दर्शक है । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के अनाहतचक्र की शुद्धि हो चुकी है तथा उन्होंने स्वयं को ‘अर्धनारीश्वर’ की भांति (टिप्पणी) संतुलित किया है ।
टिप्पणी – ‘अर्धनारीश्वर’ : शरीर के आधे भाग में शिवजी तथा शेष आधे भाग में शक्ति से युक्त शिवजी का एक रूप । (‘साधना से पूर्व नहीं, अपितु वर्तमान समय में मुझे अपना शरीर ‘अर्धनारीश्वर’ की भांति लगता है । अनेक बार मेरा आधा शरीर गर्म (बुखार आने जैसा) तथा आधा शरीर ठंडा होता है । आधे शरीर में पसीना आता है, जबकि आधा भाग सूखा होता है । आयुर्वेद के वैद्यों ने इसका वर्णन ‘अर्धनारीश्वर ज्वर’, ऐसा किया है । गुरुदेवजी ने उस संदर्भ में बताया, ‘‘यह स्थिति एक नाडी की क्रियाशीलता के कारण हुई है । उसके कारण शरीर के दो भागों में उन्हें भिन्न-भिन्न संवेदनाएं प्रतीत होती हैं ।’’ अब अंदर से मुझे ऐसा लगता है, ‘मेरे आधे शरीर में शिवजी अथवा पुरुष है, जबकि आधे शरीर में शक्ति अथवा प्रकृति है तथा मैं स्वयं कोई नर अथवा नारी नहीं हूं, अपितु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अंश हूं ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२ ई. साधना के कारण सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के कर्मबंधन एवं संस्कार क्षीण होना : उनके दाहिने हाथ की हृदय रेखा को छोटी रेखाएं भेदकर निचले भाग में नहीं गई हैं अर्थात साधना के कारण सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के कर्मबंधन एवं संस्कार क्षीण हुए हैं । उनके हाथ के शुक्र ग्रह के उभार की रेखाएं फीकी तथा अल्प हो गई हैं । उनकी हृदय रेखा तर्जनी तक (गुरु ग्रह की उंगली तक) आई है । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी अपनी आध्यात्मिक यात्रा के आनंद का अनुभव कर रहे हैं, यह इसी का दर्शक है । (‘गुरु’ अर्थात सगुण के गुरुदेवजी हैं तथा मेरे जीवन पर उनकी सत्ता है । ‘वे स्वयं में मुझे विलय कर लें’, यह मेरी इच्छा है ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२ उ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का समाज कल्याण हेतु प्रयासरत होना : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की मस्तक रेखा की तुलना में उनके दाहिने हाथ की मस्तक रेखा अच्छी स्थिति में है । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी अत्यंत संतुलित, बुद्धिमान तथा स्मरण-क्षमता प्राप्त, व्यवस्थित एवं विवेकशील हैं, साथ ही वे समाज के कल्याण हेतु प्रयासरत हैं । (‘मैं अध्ययन में, साथ ही चिकित्सकीय क्षेत्र में भी सामान्य ही था; परंतु साधना करते समय गुरुदेवजी की कृपा से मुझे धर्मकार्य एवं अध्यात्मकार्य करना संभव हो रहा है । आपने ऊपर जो विशेषताएं बताई हैं, वे मेरी अनुभूतियां हैं ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२ ऊ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी एक चैतन्यमय एवं उन्नत जीव होना ! : उनके दाहिने हाथ की जीवन रेखाएं भी स्पष्ट, लंबी तथा दोषरहित हैं । इससे यह समझ में आता है कि वे अत्यंत चैतन्यमय एवं उन्नत जीव हैं । उन्हें ९० वर्ष से अधिक आयु प्राप्त है । उनकी आयु के लगभग ६० वें वर्ष में उनके जीवन में कुछ अच्छे परिवर्तन आनेवाले हैं । (‘मुझे चाहे कितनी भी आयु मिले; परंतु ‘मेरा प्रत्येक श्वास, मेरी नाडी तथा मेरे हृदय की प्रत्येक धडकन, गुरुसेवा में व्यतीत हो’, यह प्रार्थना है !’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२ ए. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के दाहिने हाथ की सूर्य रेखा भले ही छोटी हो; परंतु उसके कारण उन्हें कीर्ति एवं समृद्धि प्राप्त होगी ।
२ ऐ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का व्यक्तित्व ‘सादगीपूर्ण जीवन शैली एवं उच्च विचारधारा’, इस वचन के अनुसार होना : सद्गुरु पिंगळेजी के दाहिने हाथ का अंगूठा बाएं हाथ के अंगूठे की तुलना में अच्छी स्थिति में है । यह उनमें विद्यमान प्रबल इच्छा शक्ति, परिस्थिति से मेल कराना तथा निर्णय क्षमता के गुणों का दर्शक है । उनके विचार तर्कशुद्ध हैं । वे समष्टि हेतु स्वयं के धन का व्यय कर रहे हैं । उनमें धन अथवा संपत्ति की अभिलाषा नहीं है । ‘सादगीपूर्ण जीवन शैली एवं उच्च विचारधारा’ उनका व्यक्तित्व है । (‘गुरुकृपा मेरी संपत्ति है, जिसे मैं सभी में बांटने का प्रयास कर रहा हूं ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
२ ओ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के दाहिने हाथ की उंगलियों का विश्लेषण : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के दाहिने हाथ की उंगलियों की बूटियों से समझ में आता है कि उनमें व्यवस्थापन का दायित्व संभालने तथा कार्य को मूर्तरूप देने का कौशल है । वे बहुत ही परिश्रमी हैं । वे पारदर्शी एवं निर्मल मन के हैं ।
२ औ. डॉ. पिंगळेजी का अजातशत्रु (जिसके कोई शत्रु ही नहीं होते, ऐसा व्यक्ति) होना ! : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की तुलना में उनके दाहिने हाथ पर स्थित मंगल का उभार स्पष्ट है । उसके कारण उनमें मंगल ग्रह से संबंधित विशेषताएं जैसे महत्त्वाकांक्षा, ऊर्जा, कार्य तत्परता, योद्धा की भांति किसी भी बाधा पर विजय प्राप्त करने की क्षमता इत्यादि हैं । वे अपने संपर्क में रहनेवाले व्यक्तियों के तथा उनके आसपास की परिस्थिति के संरक्षक ही हैं । (‘वर्ष १९८५ में मैंने १२ वीं कक्षा उत्तीर्ण की । उस समय एक पारिवारिक कार्यक्रम में मेरे एक ज्योतिषी मित्र ने स्वयं ही मेरा भविष्य बताया था । उसने बताया था, ‘‘तुम्हारी जन्मकुंडली में मंगल ग्रह बहुत बलवान होने के कारण तुम सेनाधिकारी अथवा शल्यविशारद वैद्य बनोगे अथवा अध्यात्म में बहुत प्रगति करोगे ।’’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)
– सुनीता शुक्ला, हस्तरेखा विशेषज्ञ, ऋषिकेश, उत्तराखंड. (६.५.२०२४)
(समाप्त)