हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला द्वारा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी की हस्तरेखाओं का किया गया विश्लेषण !

ऋषिकेश (उत्तराखंड) की हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला के द्वारा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी की हस्तरेखाओं का किया गया विश्लेषण यहां दे रहे हैं –

(भाग १)

सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

१. सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के बाएं हाथ की रेखाओं का विश्लेषण

‘व्यक्ति के बाएं हाथ की रेखाओं से उसके पिछले जन्म के विषय में बोध होता है । पिछले जन्म में व्यक्ति का स्वभाव, क्षमता, कौशल, कार्यक्षेत्र, प्रारब्ध, साधना इत्यादि के संदर्भ में जानकारी मिलती है । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की रेखाओं का विश्लेषण आगे दिया गया है –

१ अ. पिछले जन्म में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी की साधना में आरंभ में निरंतरता न होना; परंतु उसके उपरांत गुरुकृपा से उनसे तीव्र साधना होना : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ की भाग्यरेखा (अध्यात्मरेखा) मध्य में टूटी हुई है, साथ ही वह सीधी नहीं है; परंतु अंत में स्पष्ट है । इससे यह ध्यान में आता है कि पिछले जन्म में आरंभ में उनकी साधना में निरंतरता नहीं थी; परंतु उसके उपरांत गुरुकृपा के कारण उन्होंने गहन साधना की थी ।

(‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी की कृपा से मैं गहन साधना करने लगा ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)

१ आ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का अनेक जन्मों से साधनारत होना : उनके बाएं हाथ की भाग्यरेखा (अध्यात्मरेखा) जीवनरेखा के नीचे से आरंभ हो रही है । ‘वे पिछले अनेक जन्मों से साधना कर रहे हैं’, इससे ऐसा ध्यान में आता है ।

(‘वर्ष २००० में सातारा में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की विशाल सभा थी । उस समय एक साधक ने बताया, ‘डॉ. पिंगळेजी बैठक में कुछ नहीं बोलते ।’ इस विषय में सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी ने कहा, ‘‘डॉ. पिंगळेजी ने उनके पूर्व के ३-४ जन्मों में व्यष्टि साधना के अंतर्गत ध्यानमार्ग से साधना की है । अब इस जन्म में उनकी समष्टि साधना होने के लिए हम उन्हें बोलने का अवसर देंगे ।’’ इसलिए मेरे संदर्भ में यहां लिखा गया सूत्र सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के दैवी शब्दों से मेल खानेवाला है । मुझमें जो क्षमता एवं गुण हैं, साथ ही गुरुसेवा एवं धर्मप्रसार करते समय मैं खुलेमन से जो बोल सकता हूं, वह केवल गुरुदेवजी की कृपा के बल पर ही !’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)

हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला

१ इ. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के हाथ पर उनकी आध्यात्मिक उन्नति दर्शानेवाले चिह्नों का होना : सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ पर भाग्यरेखा की सहायता से ‘मत्स्य’ (मछली के) आकार के २ चिह्न उभरे हुए हैं । ये पवित्र चिह्न सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी की आध्यात्मिक उन्नति दर्शाते हैं ।

(‘मुझे ऐसा लगता है कि सामान्य मनुष्य की अथवा साधक की ‘भाग्यरेखा’ उसके पूर्वजन्म में उसपर स्थित ईश्वर की कृपा अथवा गुरु की कृपा दर्शाती है । जैसे मनुष्य को उसके पूर्वजन्मों के कर्माें के कारण प्रारब्ध एवं संचित प्राप्त होता है, साथ ही ईश्वर की अथवा गुरु की कृपा भी प्राप्त होती है । इसलिए व्यक्ति के भाग्य का अर्थ है पूर्वजन्मों के उसके कर्माें के कारण उसपर हुई ईश्वर अथवा गुरु की कृपा !’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)

सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी की बाईं हथेली का छायाचित्र

१ ई. सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का पूर्वजन्म में अध्यात्म की ओर मुडने के कारण : उनके बाएं हाथ की हृदयरेखा स्पष्ट तथा घनी होने से वे स्वभाव से अन्यों के प्रति सहानुभूति रखनेवाले, अन्यों की चिंता करनेवाले, स्नेहिल एवं दयालु थे । इसलिए अनेक लोग उनके साथ जुडे हुए थे । उनके विचार तथा निर्णय प्रथम हृदय से (मन से) तथा उसके उपरांत बुद्धि से आते थे; परंतु उनके इस भावनात्मक, सहानुभूतिपूर्ण तथा दयालु आचरण का कदाचित लोगों ने अपलाभ (गैरफायदा) उठाया होगा । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी की हृदयरेखा को अनेक छोटी रेखाओं ने भेद दिया है । इससे यह ध्यान में आता है कि उन्हें आई निराशा के कारण अथवा मन को हुई पीडाओं के कारण वे अध्यात्म की ओर मुडे होंगे ।

(१. ‘मेरे संबंधी शिक्षित एवं व्यावहारिक जीवन में स्थिर हैं; पर अपने स्वभावदोष एवं अहं के कारण उन्होंने मेरी मां के साथ तथा एक-दूसरे के साथ जो व्यवहार किया, उसे देखकर मैं उनसे अलग हो गया । उस समय मेरे मन में किसी के भी प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं आई ।

२. कुछ लोगों का ऊपरी आचरण अच्छा; परंतु परस्पर-विरोधी कृतियां देखकर मेरे मन में उनके प्रति जो अपेक्षाएं थीं, वे अल्प हो गईं ।

३. मैं जब महाविद्यालयीन शिक्षा ले रहा था, उस समय मेरे कुछ मित्रों ने मेरे पैसों पर मजे किए; परंतु जब मुझे पैसे की आवश्यकता पडी, तब उन्होंने मेरी सहायता करने में असमर्थता दर्शाई । तब भी हमारी मित्रता में बाधा नहीं आई तथा मुझे उनसे किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं रही ।

४. ऐसे और भी कुछ प्रसंग होंगे; परंतु आगे जाकर साधना करते समय मेरे ध्यान में आया कि इन सभी प्रसंगों के कारण मेरे प्रारब्ध के अनुसार लेन-देन का जो हिसाब चुकाया गया, साथ ही ये सभी प्रसंग, ‘भविष्य में अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ कर मैं गुरुचरणों की शरण में आऊं’, इसका दैवी नियोजन ही था ।

५. वर्ष १९९६ में जब मैंने पहली बार सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का नाम सुना, उस समय मुझे ‘इसी दैवी विभूति की प्रतीक्षा थी’, इसका अंतर्मन से भान हुआ । गुरुदेवजी की कृपा से मैं चिकित्सकीय व्यवसाय न कर पूर्णकालीन साधक बनने का निर्णय ले पाया । उन्होंने ही मुझे अपने चरणों में बुलाकर मुझपर कृपा की । उन्होंने मुझे प्रत्येक व्यक्ति में गुरुतत्त्व देखना सिखाया । ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, ये तीनों मोक्षगुरु मेरे लिए एक ही हैं तथा उनकी चरणसेवा कर उनके दैवी कार्य का पूरे विश्व में प्रसार करने के लिए ही मेरा जन्म हुआ है’, ऐसा मुझे लगता है ।’- सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)

१ उ. आरंभ में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी को आध्यात्मिक कष्ट होना : कुछ आध्यात्मिक कष्टों के कारण सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के बाएं हाथ के शुक्र ग्रह के उभार पर कर्मबंधन दर्शानेवाली घनी रेखाएं हैं । उनकी तर्जनी मध्य (शनि की) उंगली की ओर मुडी है तथा कष्ट के कारण उसपर कुछ चिह्न हैं ।

(‘वर्ष १९९९ से वर्ष २०१० की अवधि में मुझे अनिष्ट शक्तियों का कष्ट हुआ । वह मेरे जीवन के परिवर्तन का समय था । अनिष्ट शक्तियों के मेरे कष्ट लोगों को दिखाई दे रहे थे; परंतु मुझे गुरुदेवजी की कृपा दिखाई दे रही थी तथा मैं उसका अनुभव कर रहा था । अध्यात्म के क्षेत्र में गुरुदेवजी का अधिकार देखकर उनके प्रति मेरी श्रद्धा दृढ होती जा रही थी । मुझे लगता है कि ‘साधना के कारण मुझमें बढी क्षमता के रूप में गुरुदेवजी मेरे अंतःकरण में स्थिर हैं ।’ सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी जब किसी साधक को ‘सेवक’ के रूप में स्वीकार करते हैं, उस समय उस साधक की सीमित क्षमता असीमित क्षमता में रूपांतरित हो जाती है ।’ – सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी)   

(क्रमशः)

– सुनीता शुक्ला, हस्तरेखा विशेषज्ञ, उत्तराखंड. (६.५.२०२४)