शस्त्रों की आवश्यकता होने की बात भी स्पष्ट की !
चित्रकूट (उत्तरप्रदेश) – संत तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कोई विशेष अंतर नहीं है । संत मंदिर में पूजा करते हैं, जबकि संघ के कार्यकर्ता बाहर रह कर उसकी सुरक्षा में लिप्त रहते हैं । संतों के कार्य में कोई भी बाधा न आने हेतु डंडा हाथ में लेकर संतों की रक्षा करना संघ का काम है । हमें शस्त्रों की आवश्यकता है । इसके अलावा उन्हें धारण करनेवाले के विचार भी राम के समान होने चाहिए । प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने यहां एक कार्यक्रम में मार्गदर्शन करते समय ऐसा कहा ।
प.पू. सरसंघचालक ने कहा कि,
१. जब सत्य का समय आता है, तब संत संयम से बात करते हैं । यद्यपि संतों के दैवीय विचार सुनने पर उनके शब्द कडवा चूर्ण (पाउडर) समान प्रतीत होते हैं, परंतु तब भी जीवन सुधरता है ।
२. कुछ शक्तियां भारत को दबाने का प्रयास कर रही हैं; परंतु सत्य कभी दबाया नहीं जा सकता ।
३. सनातन धर्म के शिष्य केवल भारत में ही नहीं, अपितु विदेश में भी सनातन धर्म का गौरव फैला रहे हैं । कर्तव्य के मार्ग में डंटे रहें तथा सत्य के लिए कार्यरत रहें । असत्य कुछ समय कोलाहल फैला सकता है; परंतु अन्ततः सत्य की ही जय होती है ।
४. यदि प्रत्येक परिवार में राष्ट्रवाद तथा एकता की भावना जागृत की गई, तो देश निश्चित ही शक्तिसंपन्न होगा ।