महाराष्ट्र के धर्मादाय चिकित्सालयों की सरकार से धोखाधडी !
– श्री. प्रीतम नाचणकर, मुंबई
मुंबई, २७ जुलै (वार्ता.) – वित्तिय वर्ष २०२३-२४ में राज्य के ४५८ धर्मादाय चिकित्सालयों हेतु प्रावधित ‘निर्धन रोगी कोष’ में ४ सहस्र ३०० करोड रुपए जमा हुए; परंतु उसमें से केवल ३-४ प्रतिशत धनराशि का उपयोग ही उपचारों के लिए किया गया है । ‘सनातन प्रभात’के प्रतिनिधि को एक अधिकारी से यह चौंकानेवाली जानकारी प्राप्त हुई है । ‘सरकार की ओर से निर्धन रोगियों को निःशुल्क एवं अल्पराशि में उपचार मिलने हेतु इस कोष का व्यय किया जाए’, ऐसा राज्य सरकार का आदेश होते हुए भी अधिकतर धर्मादाय चिकित्सालय सरकार के आदेश की उपेक्षा कर रहे हैं । राज्य के धर्मादाय चिकित्सालय सरकार से सरेआम धोखाधडी कर रहे हैं ।
निर्धन रोगियों को निःशुल्क तथा छूट के दरों पर उपचार मिले, इसके लिए धर्मादाय चिकित्सालयों को सरकार की ओर से आयकर में ३० प्रतिशत छूट दी जाती है । पिछले वित्तिय वर्ष में एक राज्य के एक बडे चिकित्सालय को २ करोड रुपए का लाभ मिला । इसके अतिरिक्त इन चिकित्सालयों को बिजली एवं पानी के देयकों में सरकार की ओर से अलग से छूट दी जाती है । राज्य के अनेक धर्मादाय चिकित्सालय सरकार की ओर से मिलनेवाली छूट का लाभ उठाते हैं; परंतु वे रोगियों को इस योजना का लाभ नहीं दिलाते, यह वास्तविकता है ।
धनराशि कैसे जमा होती है ?
इस योजना में प्रत्येक धर्मादाय चिकित्सालय को रोगियों के कुल देयक की धनराशि में से २ प्रतिशत धनराशि को ‘निर्धन रोगी कोष’ के रूप में अलग रखना अनिवार्य है । इस कोष से गरीब रोगियों पर निःशुल्क तथा छूट के दरों में उपचार किए जाते हैं ।
नई शाखाओं में योजना का लाभ न दिए जाने की घटनाएं !
धर्मादाय चिकित्सालयों ने यदि अलग शाखा आरंभ की हो, तो उन्हें उस शाखा में भी इस योजना के अंतर्गत निर्धन रोगियों पर इस योजना के अंतर्गत उपचार करना अनिवार्य है; परंतु कुछ चिकित्सालयों की शाखाओं में यह लाभ नहीं दिया जाता है, ऐसा सरकार के ध्यान में आया है । धर्मादाय चिकित्सालय में क्या आर्थिक दृष्टि से दुर्बल रोगियों को निःशुल्क उपचार दिए जा रहे हैं ?, इसका अवलोकन करने हेतु गठित राज्यस्तरीय विशेष सहायता कक्ष के दल को ऐसी अनियमितताएं दिखाई दी हैं ।
ऐसे बनी यह योजना !
हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर के प्रयासों से यह योजना महाराष्ट्र राज्य में लागू हुई । वर्ष २००४ में अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर जब उनके पिता स्व. गजानन पुनाळेकर का स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें मुंबई के जनलोक चिकित्सालय ले गए; परंतु चिकित्सालय में पूछताछ करने पर भी उन्हें उस चिकित्सालय में सरकार की ओर से मिलनेवाली छूट के दरों पर उपचार नहीं मिले । इस विषय में अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर ने जनलोक चिकित्सालय सहित अन्य कुछ चिकित्सालयों को पत्र लिखकर निर्धन रोगियों को उपचार मिलने के संबंध में जानकारी पूछी; परंतु किसी भी चिकित्सालय ने उस पत्र का उत्तर नहीं दिया; इसलिए अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । इस याचिका के आधार पर न्यायालय ने विशेषज्ञों की समिति गठित की । इस समिति की अनुशंसा पर न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को धर्मादाय चिकित्सालयों में निर्धन रोगियों को निःशुल्क तथा छूट के दरों में उपचार मिलें; इसके लिए योजना बनाने का आदेश दिया । इससे यह योजना बनी; परंतु वर्तमान समय में आर्थिक लाभ के पीछे दौड रहे चिकित्सालय इस योजना को अपनाते नहीं हैं । इसके लिए सरकार की ओर से ऐसे चिकित्सालयों पर कठोर कार्यवाही करने की आवश्यकता है । इसके लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अधीन विधि एवं न्याय विभाग के अंतर्गत इस योजना के कार्यान्वयन हेतु राज्यस्तरीय विशेष कक्ष बनाया गया है । इसके अंतर्गत सरकार को रोगियों को इस योजना का लाभ न दिलानेवाले चिकित्सालयों पर कठोर कार्यवाही करने की आवश्यकता है ।