वैश्‍विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव तृतीय दिन (२६ जून) : भारतीय शिक्षणपद्धति

बच्चों को धर्मशिक्षा मिलने के लिए संत पहल करें ! – गुरु माँ भुवनेश्वरी पुरी, संस्थापक, श्रीकुलम् आश्रम और श्रीविद्या वन विद्यालय, उदयपुर, राजस्थान

गुरु माँ भुवनेश्वरी पुरी

विद्यार्थी अन्य काफी बातें सीखते हैं; परंतु उन्हें धर्मशिक्षा नहीं मिलती । छोटी आयु में ही विद्यार्थियों को धर्मशिक्षा देना चाहिए । नमस्कार की योग्य पद्धति, जपमाला कैसे करें ? परिक्रमा कैसे करें ? कुलदेवता का जप कैसे करना चाहिए ? हमारे राष्ट्रपुरुष कौन ? देवी-देवता कौन से हैं ? इसकी जानकारी बच्चों को बचपन में ही देनी चाहिए । धर्मशिक्षा के लिए छोटे-छोटे अभ्यासक्रम (कैप्सूल कोर्स) तैयार करने चाहिए । कॉन्वेंट अथवा प्राईवेट विद्यालयों में जानेवाले विद्यार्थियो को प्रमुखरूप से धर्मशिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है; कारण उन्हें धर्मशिक्षा देने की कोई भी व्यवस्था नहीं है । धर्मशिक्षा के साथ ही छोटे-छोटे गुरुकुलों की निर्मिति करनी चाहिए ।
हमने ३ बच्चों से गुरुकुल शुरू किया था । अब हमारे गुरुकुल में आने के लिए अभिभावक कतार लगाते हैं । वर्तमान में अभिभावकों को लगता है कि अंग्रेजी बोलने की अपेक्षा बच्चों पर अच्छे संस्कार हों । विद्यार्थियों को धर्मशिक्षा की नितांत आवश्यकता है । हिन्दू बच्चों को धर्मशिक्षा मिले, इसलिए सभी संत अपना योगदान दें । प्रत्येक को कम से कम ५ जनों को धर्मशिक्षा देनी चाहिए । बच्चों को धर्मशिक्षा न देने पर मिशनिरियों के द्वारा धर्मांतर का कार्य अपनेआप बंद हो जाएगा ।

सनातन संस्था द्वारा शास्त्रीय भाषा में दी जाती है धर्मशिक्षा !

अनेक संस्थाओं द्वारा धर्मशिक्षा दी जाती है; परंतु उसमें धर्मविषयक संपूर्ण जानकारी नहीं होती । अधिकांश स्थानों पर संप्रदायों की ही जानकारी होती है । केवल सनातन संस्था के अतिरिक्त परिपूर्णता और शास्त्रीय आधार पर धर्मशिक्षा दी जाती है’, ऐसे गौरवोद्गार गुरु माँ भुवनेश्वरी पुरी ने कहे ।


ईश्वर का स्मरण करते हुए किया कार्य सफल होता है ! – स्वामी समानंदगिरी महाराज  

स्वामी समानंदगिरी महाराज

भारत एक आध्यात्मिक देश है । यहां कार्य ईश्वरीय शक्ति से चल रहा है । यहां एक दिव्य संकल्प कार्यरत है । भगवान श्रीकृष्ण ने यज्ञ के माध्यम से अच्छा जीवन जीने की पद्धति मानव को प्रदान की है । भगवान श्रीकृष्ण ने वेदों का ज्ञान भगवद्गीता के माध्यम से सभी तक पहुंचाया । यज्ञ, दान और तप के माध्यम से मानव ईश्वर से जुड सकता है और आध्यात्मिक उन्नति साध सकता है; परंतु यदि मानव ये मूल छोडकर जीने लगा, तो उसका जीवन भटक सकता है । आध्यात्मिक शक्ति के बल पर चल रहा कार्य अधिक गति से बढता है । ईश्वर का स्मरण करते हुए किए गए कार्य को असीम सफलता मिलती है, ऐसे उद्गार महेश्वर, मध्यप्रदेश के संवित् गंगायन ट्रस्ट, हरिद्वार के ट्रस्टी स्वामी समानंदगिरी महाराज ने यहां किए ।
उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय संस्कृति ऋषियों द्वारा बनाई गई प्रगत संस्कृति है । कोई भी दिव्य कार्य करने के लिए शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति लगती है । शास्त्र के अनुरूप कार्य करने पर हम गुरु की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं । सात्विक कार्य करने से ईश्वर की शक्ति हममें संक्रमित होती है । मन तेजस्वी बनता है । कोई भी कार्य श्रद्धापूर्वक और कारणमीमांसा जानकर करने से वह कार्य फलश्रुत होता है ।


हिन्दू राष्ट्र को लगा ग्रहण दूर करना होगा ! – डॉ. देवकरण शर्मा, संस्थापक, सप्तर्षि गुरुकुल, उज्जैन

डॉ. देवकरण शर्मा

भारत सृष्टि की स्थापना से ‘हिन्दू राष्ट्र’ था, वह आज है और जब तक चंद्र, सूर्य और हिमालय रहेंगे, तब तक वह हिन्दू राष्ट्र ही रहेगा । हिन्दू राष्ट्र सूर्य समान है । जिस प्रकार सूर्य को ग्रहण लगने से अथवा उनके सामने बादल आने से उसका प्रकाश मिलना बंद हो जाता है, उसीप्रकार हिन्दू राष्ट्र को ग्रहण लगा है । उसे दूर करना आवश्यक है, ऐसा प्रतिपादन सप्तर्षि गुरुकुल के संस्थापक डॉ. देवकरण शर्मा ने ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’के तीसरे दिन किया ।
डॉ. शर्मा बोले, ‘‘शिक्षा बिगड गई, तो दर्शन बिगड जाता है, दर्शन से विचार बिगड जाते हैं और विचार से कर्म बिगड जाते हैं । जब शिक्षाव्यवस्था अच्छी थी, तब भारत जगद्गुरु था । जब भारत में मेकॉले शिक्षापद्धति आरंभ हुई, तब से शिक्षा का पतन हो गया और इसकारण देश का भी पतन हुआ । मुगलों के काल में भी राजा छत्रसाल, छत्रपति शिवाजी महाराजजी के राज्य ‘हिन्दू राष्ट्र’ थे । ‘वसुधैव कुटुंबकम्’, ऐसा हिन्दुओं के अतिरिक्त कोई नहीं बोल सकता । उतना उदार मन और व्यापकत्व संपूर्ण जग में नहीं । आध्यात्मिक शक्ति द्वारा ही क्षमा, शांति और अहिंसा का ज्ञान होता है । ये बातें श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्र से सीखनी चाहिए । उन तत्वों को समझना, शिक्षा है । भारत में गुरुकुल शिक्षापद्धति आरंभ होगी । तब हिन्दू राष्ट्र में निखार आएगा ।’’


‘कर्ता भगवान है !’, श्रीकृष्ण का यह वचन ध्यान में रखकर धर्मकार्य करें ! – रस आचार्य डॉ. धर्मयश, संस्थापक, धर्म स्थापनम् फाउंडेशन, इंडोनेशिया

रस आचार्य डॉ. धर्मयश

विद्याधिराज सभागृह – भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता में कहा है, ‘तुम केवल निमित्तमात्र हो ।’ धर्मकार्य करते समय भगवान श्रीकृष्ण के ये वचन हिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए । भगवान पर दृढ विश्वास रखकर ही हिन्दुओं को धर्मकार्य करना चाहिए । इंडोनेशिया में एक बार धर्मप्रसार के लिए जंगल से ग्रंथ ले जाते समय ३०० लोगों ने पत्थर और शस्त्र लेकर मुझ पर आक्रमण किया; परंतु उस परिस्थिति में केवल भगवान ने ही मेरी रक्षा की । धर्मकार्य करते समय भगवान को न भूलें । केवल हिन्दू धर्म ही जगत का कल्याण करनेवाला धर्म है । ऐसे धर्म का हमें प्रसार करना चाहिए । साधु-संतों ने भी इस धर्म का पालन किया । अध्यात्म समझकर,साधु-संतों का अनुसरण करना चाहिए ।
इंडोनेशिया में हम भगवद्गीता का प्रसार कर रहे हैं । ८ से १० सहस्र नागरिक एकत्र आकर हम भगवद्गीता का पठन करते हैं । धर्म का पालन करने से अर्थ, काम और यश प्राप्त होता है; परंतु उनकी कामना करते हुए धर्मपालन न करें । सनातन धर्म की सेवा निरपेक्षता से करनी चाहिए । हमारे पूर्वजों ने जिस संस्कृति का पालन किया, उस संस्कृति का हम इंडोनियाशिया में प्रसार कर रहे हैं । सवेरे स्नान करने के पश्चात ही भोजन बनाना, ईश्वर की आराधना करके ही कार्य का प्रारंभ करना आदि अपनी संस्कृति का हम प्रसार कर रहे हैं ।

संत सम्मान !

मध्यप्रदेश के संवित् गंगायन ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी महंत स्वामी समानंदगिरी महाराज का सम्मान हिन्दू जनजागृति समिति के मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्यों के समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने और उदयपुर (राजस्थान) की श्रीकुलम आश्रम एवं श्रीविद्या वन विद्यालय की संस्थापिका गुरु माँ भुवनेश्वरी पुरी का सम्मान सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडये ने किया ।