NCERT : गुजरात दंगा और बाबरी गिराना, ये घटनाएं विद्यालयीन छात्रों को सीखाने की आवश्यकता नहीं ! – राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद

  • ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ की कक्षा १२ वी की राज्यशास्त्र की पुस्तक में बाबरी का उल्लेख ‘३ गुंबजों की वास्तु’ !

  • पाठ्यक्रम का ‘भगवाकरण’ होने का आरोप किया अस्वीकार !

एन्.सी.ई.आर्.टी. के संचालक दिनेश प्रसाद सकलानी

नई देहली – ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ की (‘एन्.सी.ई.आर्.टी.’ के) कक्षा १२ वी की राज्यशास्त्र की पुस्तक में बाबरी का उल्लेख ‘३ गुंबजों की वास्तु’ ऐसा किया गया है । अयोध्या मामले के लिए २ पृष्ठ दिए गए है । सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर पाठ्यक्रम में अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है । विद्यालयीन पाठ्यक्रम में किए परिवर्तन का समर्थन करते समय ‘एन्.सी.ई.आर्.टी.’ ने ऐसी भूमिका ली है कि, ‘गुजरात दंगा और बाबरी गिराना, ऐसी  घटनाएं विद्यालयीन छात्रों को सीखाने की आश्यकता नहीं है’ । पाठ्यक्रम का ‘भगवेकरण’ हो रहा है, इस आरोप का एन्.सी.ई.आर्.टी. के संचालक दिनेश प्रसाद सकलानी ने ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ इस समाचारसंस्था को दिए विशेष साक्षात्कार में खंडन किया ।

दिनेश सकलानी ने कहा कि,

१. क्या हम ऐसी शिक्षा देना चाहते हैं, जिससे छात्र आक्रमक हो और समाज में तनाव उत्पन्न हो ? छात्रों को दंगे के संदर्भ में सीखाने की क्या आवश्यकता है ? बडे हो जाने पर वे इस संदर्भ में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं; परंतु पाठ्यपुस्तक से क्यों सीखाना चाहते है ? वर्ष १९८४ में सिक्ख विरोधी दंगों संबंधी पाठ्यक्रम पाठ्यपुस्तक से निकाल देने पर भी इतना आक्रोश नहीं हुआ था ।

२. यदि सर्वोच्च न्यायालय ने इसपर निर्णय दिया होगा, तो वह पाठ्यक्रम का भाग क्यों नहीं होना चाहिए ? इसमें समस्या क्या है ? कोई सूत्र कालबाह्य हुआ हो, तो उसमें परिवर्तन होना चाहिए । मुझे नहीं लगता कि इसमें कहीं ‘पाठ्यक्रम का ‘भगवाकरण’ है’ । छात्रों को सत्य की जानकारी हो; इसलिए हम इतिहास सीखाते है, युद्धभूमि सिद्ध करने के लिए नहीं ।

३. हम सकारात्मक नागरिक विकसित करना चाहते है और यही इन पाठ्यपुस्तकों का उद्देश्य है । हमारी शिक्षा का उद्देश्य हिंसक और हीन भाव रखनेवाले नागरिक बनाना, यह नहीं है । द्वेष और हिंसा ये सीखाने के विषय नहीं हैं ।

पुस्तक में किए गए परिवर्तन

अ. ‘१६ वी शताब्दि में मुघल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बांकी ने बाबरी का निर्माण किया’, ऐसा संदर्भ कक्षा १२ वी की पुराने पुस्तक में था । इसमें परिवर्तन कर अब अब लिखा गया है कि वर्ष १५२८ में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर ३ गुंबजों का ढांचा खडा किया गया था; परंतु इस ढांचे के भीतर और बाहर हिन्दू देवताओं की आकृतियां  स्पष्ट दिख रही थी ।

आ. पहले की पुस्तक में उल्लेख किया गया था कि फैजाबाद (अब की अयोध्या) जिला न्यायालय ने फरवरी १९८६ में बाबरी का ताला खोलने की अनुमति दी । इसके पश्चात दोनों (हिन्दू और मुसलमान) पक्षों ने बीती हुई गतिविधियों की जानकारी दी थी । साथही जातीय हिंसाचार, रथयात्रा, वर्ष १९९२ में हुआ बाबरी का पतन, तदुपरांत जनवरी १९९३ में हुए हिंसाचार संबधी जानकारी दी थी ।

नई पुस्तक में इन संदर्भों को निकाल दिया गया है । अयोध्या विवाद का उल्लेख एक परिच्छेद में किया गया है । ‘वर्ष १९८६ में फैजाबाद जिला न्यायालय ने ३ गुंबजों के ढांचे का ताला खोलने का आदेश दिया । इससे लोगों को वहां पर प्रार्थना करने का अवसर मिला । माना जाता है कि यह ३ गुंबजों की वास्तु प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर निर्माण की गई है । श्रीराम मंदिर का शिलान्यास हुआ; परंतु आगे श्रीराम मंदिर के निर्माण की अनुमति नहीं थी । हिन्दू समुदाय इससे चिंतित था, तो मुसलमान समुदाय इस वास्तु पर नियंत्रण करने की मांग कर रहा था । इस स्थान के अधिकारों को लेकर दोनों समुदायों में तनाव बढ जाने के उपरांत मामला न्यायालय में गया । वर्ष १९९२ में प्रस्तुत वास्तु का पतन होने पर अनेक समीक्षकों ने कहा था कि यह भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों को बडा झटका लगा है । इसका उल्लेख इस परिच्छेद में किया गया है ।

ब. नई पुस्तक में अयोध्या विवाद के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का भी उल्लेख किया गया है । ९ नवंबर २०१९ को सर्वोच्च न्यायालय के खंडपिठ ने निर्णय दिया कि यह भूमि हिन्दू पक्षकारों की है ।

पुरानी पुस्तक में ७ दिसंबर १९९२ को छापकर आए समाचारों की कतरनें भी दी गई थी । इस समाचार का शीर्षक था, ‘बाबरी मस्जिद का पतन’, ‘केंद्र द्वारा कल्याण सरकार बरखास्त’ । साथही १३ दिसंबर १९९२ की एक कतरन थी, जिसमें भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के कथन का उल्लेख था कि, ‘अयोध्या में भाजपा का गणित चूक गया’ । नई पुस्तक में ये कतरनें निकाल दी गई हैं ।