भारत की गुरु-शिष्य परंपरा संपूर्ण संसार में वंदनीय है । जब भारत में गुरु-शिष्य परंपरा थी, तब भारत विश्वगुरु था । अब इस नाते पर भी कलियुग का साया पड गया है । कानपुर में कक्षा १० वीं में पढनेवाले विद्यार्थी के अभिभावक ने एक अध्यापिका पर आरोप लगाया है कि उसने विद्यार्थी से यौन संबंध के लिए सहायता मांगी तथा उसके धर्मांतरण के लिए प्रयत्न किया । इस प्रकरण में उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय में हाल ही में सुनवाई हुई है । उससे संबंधित विश्लेषण इस लेख में देखते हैं ।
१. १० वीं के विद्यार्थी से यौन संबंध की अपेक्षा रखनेवाली अध्यापिका पर अपराध प्रविष्ट
केंट, कानपुर, (शहर) स्थित ‘संत एलोयसिस माध्यमिक विद्यालय’ के १० वीं के विद्यार्थी के पिता ने उसकी अध्यापिका के विरोध में फौजदारी अपराध प्रविष्ट किया था । उनके मतानुसार उनका पुत्र १० वीं कक्षा में पढता है तथा उसकी कक्षा अध्यापिका उनके पुत्र से यौन सहायता मांग रही थी तथा उसे ईसाई धर्म में धर्मांतरित करने के लिए कह रही थी । ३०.९.२०१३ को पुत्र का चल-दूरभाष देखते समय यह बात उनके ध्यान में आई । उसके चल-दूरभाष में उन्हें कुछ आपत्तिजनक ‘वॉट्सएप’ एवं ‘चैट्स’ (संभाषण) दिखाई दिए । उसमें लडके की अध्यापिका उसे यौन सहायता मांगते दिखाई दी । इससे संबंधित समाचार मीडिया में प्रसारित हुआ । इस संबंध में ‘चाइल्ड वेल्फेयर कमिटी, कानपुर’ में एक शिकायत प्रविष्ट हुई । उस शिकायत का निवारण नहीं हुआ । इसलिए उस विद्यार्थी के पिता ने निजी अपराध शिकायत प्रविष्ट की । उसमें ‘फौजदारी प्रक्रिया संहिता, १५६ (३) के अनुसार आदेश दिया गया ।
२. प्राचार्य की उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका
उसके पश्चात बंदी न बनाया जाए अथवा फौजदारी प्रक्रिया आगे न बढे, इसलिए विद्यालय के प्राचार्य ने उच्च न्यायालय में फौजदारी स्वरूप की याचिका प्रविष्ट की । उन्होंने कहा कि विद्यालय में वार्षिक स्नेहसम्मेलन होता है । उस अवधि में विद्यार्थी ने अध्यापिका का क्रमांक लिया । उस नाम पर एक नकली आई.डी. बनाकर उससे संभाषण किया । अध्यापिका ने कभी भी उस लडके से यौन संबंधों की मांग नहीं की अथवा उसे धर्मांतरित होने के लिए नहीं कहा । विद्यालय ने स्वतंत्र ३ सदस्यों की समिति नियुक्त की है । उसमें पुलिस अधिकारी, एक समाजसेवक एवं दूसरे विद्यालय के प्राचार्य थे । उन्होंने पूछताछ की तब ध्यान में आया कि विद्यार्थी तथा उसके पिता का कुल व्यवहार संदेहास्पद है । इसमें प्राचार्य का कोई दोष नहीं है । लडके ने नकली खाता बनाया, इतना ही पता चलता है ।
३. उच्च न्यायालय का प्राचार्य को दिलासा
सुनवाई के समय उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण के कागजात साइबर सेल को भेजने के लिए कानपुर पुलिस आयुक्त से कहा । विद्यार्थियों ने अध्यापिका के नाम से नकली आई डी बनाई है क्या ?, इस संबंध में भी पूछताछ करने के लिए कहा । इस प्रकरण की अगली सुनवाई १०.७.२०२४ को निश्चित की गई है । तब तक न्यायालय ने ‘महिला प्राचार्य के विरोध में किसी प्रकार की फौजदारी प्रक्रिया न की जाए’ (बंदी न बनाया जाए) ऐसा कहा है ।
४. ईसाई विद्यालयों में धर्मांतरण के प्रयत्नों की पूछताछ होना आवश्यक !
यदि ईसाई विद्यालय हिन्दू विद्यार्थियों को धर्मांतरित होने के लिए प्रोत्साहित करते हों, तो इसकी भी पूछताछ होनी चाहिए । अगली सुनवाई के समय इस विषय पर भी उच्च न्यायालय में अवश्य पूछताछ होनी चाहिए । इस देश में अच्छे अंक, अच्छी नौकरी, अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का प्रलोभन देकर भी अनेकों का धर्मांतरण हुआ है । संक्षेप में, सभी ओर से गहन अन्वेषण हो, ऐसी समस्त हिन्दू समाज की अपेक्षा है ।
श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय (२७.५.२०२४)