‘संयम रखकर सफलता की प्रतीक्षा करना’ तपस्या ही है !
आज की अंधकारभरी रात के गर्भ में ही कल का उषःकाल छिपा होता है । हमने यदि दृढतापूर्वक उस उषःकाल की प्रतीक्षा की, तभी जाकर हमें साधना के आगे के प्रयासों का भी मार्ग दिखाई देने लगता है । अतः साधक श्रद्धा एवं संयम रखकर साधना में अग्रसर रहें ।