अति सयाने बुद्धिप्रमाणवादी !

‘साधना कर सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान होना आरंभ होने पर, यज्ञ का महत्व समझ में आता है । यह न समझ पाने के कारण अति सयाने बुद्धिप्रमाणवादी बडबडाते रहते हैं, “यज्ञ में वस्तु जलाने की अपेक्षा गरीबों को दो ।”

कहां किसान और कहां सरकारी कर्मचारी !

‘किसानों के लिए छुट्टी नहीं है । वे सप्ताह के सातों दिन खेत में परिश्रम करते हैं, तब भी गरीब हैं । इसके विपरीत सरकारी कर्मचारी सप्ताह के पांच दिन ही काम करते हैं, परिश्रम नहीं; तब भी ‘गरीबी क्या है’, यह उन्हें ज्ञात नहीं ।’

साधना विहीन पुलिस की स्थिति !

‘श्रीराम रावण द्वारा श्रीलंका में ले जाई गई सीता को खोज पाए; परंतु पुलिस किसी गांव के छोटे-मोटे चोरों को नहीं पकड पाती !’

बच्चों को बचपन से साधन न सिखाने के कारण देश सभी क्षेत्रों में रसातल तक पहुंचा है !

साधना न सिखाने के कारण बच्चे नीतिमान नहीं होते । इस कारण बडे होकर वे बलात्कार, भ्रष्टाचार, गुंडागिरी इत्यादि करते हैं । इसलिए अपराध होने के कारणों के मूल तक जाकर उपाय करना चाहिए, अर्थात साधना सिखानी चाहिए । – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘सुख पाने से जुडी सभी बातें सिखानेवाले माता-पिता और सरकार बच्चों को अच्छा एवं सात्त्विक कुछ नहीं सिखाते । इस कारण देश दुर्दशा की उच्चतम सीमा तक पहुंच गया है । इसका एक ही उपाय है और वह है हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !’

पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी की सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति दृढ श्रद्धा एवं उनका भक्तिभाव

जयपुर की ८३ वीं संत पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी का ८१ वां जन्मदिन ५ सितंबर को था । इस निमित्त उनकी भक्ति से संबंधित कुछ प्रसंग यहां प्रस्तुत हैं !

निरर्थक बुद्धिप्रमाणवादी एवं सर्वधर्म समभाव के समर्थक !

‘शोध कार्य हेतु उपयोग किए जानेवाले उपकरणों को हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता समझ में आती है, जबकि बुद्धिप्रमाणवादी एवं सर्वधर्म समभाव के समर्थक यह नहीं समझ पाए, इस ओर ध्यान दें।’

हिन्दुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय होने का कारण !

हिन्दुओं को धर्म के विषय में प्रेम और अभिमान तथा धर्म के लिए संघर्ष करना कभी नहीं सिखाया जाता । ऊपर से बुद्धिप्रमाणवादी धर्मविरोधी विचार हिन्दुओं के मन पर अंकित करते हैं । इस कारण हिन्दुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है । – – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले