सनातन की गुरुपरंपरा !

कुलार्णवतन्त्र, उल्लास १४, श्लोक ३७ के अनुसार मादा कछुआ केवल मन में चिंतन कर भूमि के नीचे रखें अंडों को उष्मा देती है, बच्चों को बडा करती है और उनका पोषण करती है, उसी प्रकार गुरु केवल संकल्प द्वारा शिष्य की शक्ति जागृत करते हैं तथा उसमें शक्ति का संचार करते हैं ।

‘आपातकाल’ भी भगवान की एक लीला होने के कारण परात्पर गुरु डॉक्टरजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों में शरणागत होकर आपातकाल का सामना करें !

वर्तमान आपातकाल में साधक अनेक स्तरों पर संघर्ष कर रहे हैं । कोई पारिवारिक, कोई सामाजिक, कोई आर्थिक, कोई शारीरिक, कोई मानसिक, तो कोई बौद्धिक संघर्ष कर रहा है !

सरल साधनामार्ग उपलब्ध करानेवाले गुरुदेवजी के प्रति अपने भीतर कृतज्ञभाव जागृत कीजिए !

इस चैतन्यदायी भारतभूमि को ईश्‍वरप्राप्ति हेतु धूप-वर्षा आदि में से किसी भी बाधा की चिंता किए बिना कठोर तपस्या करनेवाले ऋषि-मुनियों की परंपरा प्राप्त है ।