सनातन की पुणे की संत पू. (श्रीमती) मालती शाह (आयु ८६ वर्ष) का देहत्याग !
सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडयेजी ने ४ अगस्त २०२२ को उन्हें ‘संत’ के रूप में घोषित किया था ।
सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडयेजी ने ४ अगस्त २०२२ को उन्हें ‘संत’ के रूप में घोषित किया था ।
‘२२.१.२०२४ को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के नवनिर्मित श्रीराम मंदिर में श्री रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई । इस मूर्ति को देखने पर मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई श्रीराम की इस मूर्ति की निम्न गुणविशेषताएं मेरे ध्यान में आईं ।
अब हम ‘सनातन धर्मराज्य’ की ओर मार्गक्रमण कर रहे हैं, जिसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ भी कह सकते हैं । इस कालावधि में ‘अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होकर ‘श्रीराममूर्ति’ की प्राणप्रतिष्ठा होना’, ईश्वरीय नियोजन है ।
प्रभु श्रीराम का तत्त्व अब अधिकाधिक कार्यरत हुआ है । रामभक्तो, स्वयं द्वारा की जा रही प्रत्येक कृति को रामभक्ति से जोडकर अंतःकरण में भक्ति के दीप प्रज्वलित करेंगे ।
प्रभु श्रीराम के काल में संपूर्ण प्रजा धर्मपालक तथा रामभक्त थी; इसलिए उसे श्रीराम जैसे धर्मपालक राजा एवं रामराज्य मिला । भारत को भी पुनः रामराज्य का गतवैभव प्राप्त कराने हेतु हिन्दू समाज को धर्मपालन एवं रामभक्ति कर आध्यात्मिक बल बढाना होगा ।
कलियुग में भक्तियोग के अनुसार साधना कर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करना संभव है । इसके लिए ‘गुरुकृपायोग’ भक्तियोगप्रधान है । गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करते समय साधक को आवश्यकता के अनुसार अन्य साधनामार्ग भी सिखाए जाते हैं ।
साधना होने के लिए कष्ट करने की तैयारी होनी चाहिए । हम केवल कर्म करते हैं; परंतु वे कर्म साधना के रूप में ही होने चाहिए । साधना के रूप में न करने से हम पीछे रहते हैं ।
अभी तक श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने आध्यात्मिक क्षेत्र में बहुत बडा कार्य किया है तथा इसके आगे भी उनके द्वारा बहुत बडा अद्वितीय एवं दैवीय कार्य होनेवाला है !
नामजप स्थूल ध्वनि, अव्यक्त ध्वनि, साथ ही प्रकाश ऊर्जा से चित्तशुद्धि कर मनुष्य को केवल स्वास्थ्य ही नहीं, अपितु आनंदप्राप्ति का मार्ग साध्य कराता है । यह कलियुग की सर्वश्रेष्ठ साधना सिद्ध होती है ।