गुरुपूर्णिमा पर वर्णसुमन रचित अभिनंदन !
श्री : श्री हैं आप, श्रीहरि के सगुण अवतार हैं आप श्रीमन्,
श्री : श्रेष्ठतम साधना का उपहार दिया है हमें आपने श्रीमन्,
श्री : श्री हैं आप, श्रीहरि के सगुण अवतार हैं आप श्रीमन्,
श्री : श्रेष्ठतम साधना का उपहार दिया है हमें आपने श्रीमन्,
प.पू. भक्तराज महाराजजी का मूल नाम श्री. दिनकर सखाराम कसरेकर था । गुरुप्राप्ति के उपरांत श्रीगुरु ने अर्थात प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी ने उनकी भक्ति देखकर उनका नामकरण ‘भक्तराज’ किया ।
‘भजन’ बाबा का सर्वाधिक प्रिय विश्राम का माध्यम है ! बाबा अर्थात भजन और भजन अर्थात बाबा ।
‘भजन, भ्रमण और भंडारा’, इन ३ ‘भ’कारों से भक्तों का उद्धार करनेवाले मेरे गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी की आज १०१ वीं जयंती है !
पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी को रक्त का कर्करोग है, यह पता चलने पर भी वे गुरुदेवजी के प्रति दृढ श्रद्धा के कारण स्थिर रह पाए ।
यह सिद्ध हो चुका है कि ‘नामजप न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूरक है, वह विविध विकारों के निर्मूलन के लिए लाभदायक भी है । वर्तमान कोरोना महामारी के काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होने के लिए योगासन, प्राणायाम, आयुर्वेदीय उपचार इत्यादि प्रयास समाज के लोग कर रहे हैं ।
डॉ. नंदकिशोर वेद से हमारा लगभग १७ वर्षाें से निकट का संबंध था । हम सभी प्रेम से उन्हें ‘नंदकिशोर काका’ कहते थे । मैं उत्तर भारत में सेवा हेतु आया, तब से अयोध्या केंद्र का दायित्व उन्हीं के पास था ।
२३.४.२०२१ को पू. माधव साठेजी ने देहत्याग किया । इस अवसर पर कल्याण के जिज्ञासुओं और धर्मप्रेमियों के ध्यान में आई पू. साठेजी की गुणविशेषताएं और उनसे सीखने मिले महत्त्वपूर्ण सूत्र इस लेख में प्रकाशित कर रहे हैं ।
कल्याण, जिला ठाणे – यहां के श्री. माधव साठे वर्ष १९९८ से सनातन के मार्गदर्शन में साधना कर रहे थे । परात्पर गुरु डॉक्टरजी पर उनकी अपार श्रद्धा थी । साधना की तीव्र लगन के कारण उन्होंने मन लगाकर व्यष्टि और समष्टि साधना की । वर्ष २०१२ में उनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत घोषित किया गया था ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी जैसे ‘गुरु’ पृथ्वी पर अन्य कोई नहीं । पृथ्वी पर स्वयं को ‘गुरु’ कहलानेवालों में किंचित ही सही किंतु स्वार्थ होता है; परंतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी स्वार्थ संबंधी कोई भी विचार नहीं करते ।