साधना की तीव्र लगन और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रख असाध्य रोग में भी भावपूर्ण साधना कर ‘सनातन के १०७ वें (समष्टि) संतपद’ पर आरूढ हुए अयोध्या के पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) !

रामनाथी (गोवा) – यहां के सनातन आश्रम में निवास करनेवाले डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) का दीर्घकालीन रोग के कारण ११ मई २०२१ की संध्या को निधन हुआ । वे मूलत: अयोध्या (उत्तर प्रदेश) निवासी थे ।

राजस्थान के स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी का देहत्याग !

ओजस्वी वक्ता, धर्मध्वजा संवाहक, गीतामर्मज्ञ, लेखक, आध्यात्मिक गुरु एवं अधिष्ठाता श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर, शिवमठ बीकानेर स्थित शिवबाडी मठ के स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी (आयु ७८ वर्ष) ने १८ मई २०२१ को बीकानेर में देहत्याग किया ।

‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप द्वारा निर्गुण स्थिति प्राप्त करने में सहायता होना

मन जब तक कार्यरत है तब तक मनोलय नहीं होता। मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि कितने भी प्रयास किए, तो भी मन कार्यरत रहता है । परंतु ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप अखंड करने पर मन को अन्य कुछ स्मरण नहीं होता ।

आपको परम पूज्‍य कहूं या भगवान । परम पूज्‍य हैं एक भगवान ॥

‘विगत ३० वर्षों से परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ‘गुरुकृपायोग’ नामक साधनामार्ग के माध्‍यम से मुझसे साधना करवा रहे हैं । उनकी कृपा से मेरी शारीरिक, मानसिक एवं आध्‍यात्मिक स्‍तर की समस्‍याएं दूर होकर मैं आनंदित हूं ।

‘यज्ञसंस्‍कृति’ को पुनर्जीवित करनेवाले मोक्षगुरु परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘इहलोक में अर्थात पृथ्‍वी पर धर्मसंस्‍थापना करने हेतु ही, हे श्रीमन्‍नारायण, आपने जन्‍म लिया ।

‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप द्वारा निर्गुण स्‍थिति प्राप्‍त करने में सहायता होना

‘मन जब तक कार्यरत है तब तक मनोलय नहीं होता । मन निर्विचार करने हेतु स्‍वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, भावजागृति इत्‍यादि कितने भी प्रयास किए, तो भी मन कार्यरत रहता है । उसी प्रकार किसी देवता का नामजप अखंड किया, तो भी मन कार्यरत रहता है और मन में देवता की स्‍मृति, भाव इत्‍यादि आते हैं ।

स्‍वभावदोष और अहं निर्मूलन का ‘ऑनलाइन’ सत्‍संग लेनेवाली ६१ टक्‍के आध्‍यात्मिक स्‍तर की कु. मधुलिका शर्मा में हुए परिवर्तन !

चैत्र शुक्‍ल पक्ष चतुर्दशी (२६.४.२०२१) को झारखंड की साधिका कु. मधुलिका शर्मा का तिथिनुसार जन्‍मदिन है । इसी दिन उनके द्वारा लिए जा रहे सत्‍संग को भी एक वर्ष पूर्ण हो रहा है । परात्‍पर गुरु डॉ. आठवले जी की कृपा से मुझे पिछले दो वर्षों से मधुलिका दीदी के साथ सेवा का अवसर मिला ।

स्‍वभावदोष निर्मूलन सत्‍संग की सेवा करते हुए सीखने को मिले सूत्र और स्‍वयं में अनुभव हुए परिवर्तन !

‘श्रीगुरु की कृपा से संचारबंदी (लॉकडाउन) की कालावधि में चैत्र शुक्‍ल पक्ष चतुर्दशी (७.४.२०२०) को झारखंड, बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के साधकों के लिए स्‍वभावदोष निमूर्लन सत्‍संग आरंभ हुआ । पिछले एक वर्ष से यह साप्‍ताहिक सत्‍संग चल रहा है । २६.४.२०२१ को इस सत्‍संग को एक वर्ष पूर्ण हो रहा है ।

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुआें के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

अंत में हमें अपना तन, मन एवं धन सबकुछ ईश्‍वर को अर्पण करना होता है । प्रत्यक्ष रूप से वह उनका ही है, अपना कुछ नहीं है । हम कहते हैं, ‘यह मेरा घर है’ । हम वहां रहते हैं एवं एक दिन मर जाते हैं । हमारे आने से पूर्व एवं पश्‍चात भी वह ईश्‍वर का ही होता है ।

‘उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाने पर होनेवाले अपेक्षित लाभ एवं संभावित हानि तथा सनातन संस्था के माध्यम से साधना करने के कारण हुए लाभ’, इस संबंध में देवद आश्रम के श्री. अरुण डोंगरे की हुई विचार-प्रक्रिया !

‘आईआईटी (IIT)’ कानपुर से ‘बीटेक’ करने के उपरांत वर्ष १९७५ में यदि मैं पहले निश्‍चित किए अनुसार अमेरिका में ‘मैसेच्‍युसेट्‍स इन्‍स्‍टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (MIT) में ‘एमएस’ व ‘Sc.D.’ करने गया होता, तो होनेवाले लाभ एवं हानि तथा सनातन संस्‍था के माध्‍यम से साधना की ओर मुडने से हुए लाभ आगे दिए हैं ।